मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने आरक्षण की संवैधानिक सीमा की काट के तहत पूरे मराठा समुदाय को कुनबी प्रमाणपत्र की पेशकश करके महाराष्ट्र को जातीय संघर्ष की आग में झोंक दिया है।
कुनबी किसानों का एक अनूठा समुदाय है जो पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और हिन्दू उच्च जाति- दोनों होने का लाभ चाहता है। यह समुदाय मराठों का एक उपसमूह है। लेकिन जैसा कि उप मुख्यमंत्री अजीत पवार ने एक बार कहा था, ‘जब वे अपनी बेटियों की शादी करना चाहते हैं, तो ‘मराठा’ होने का दावा करते हैं और जब वे अपने बेटों के लिए स्कूलों में दाखिला चाहते हैं, तो खुद को ओबीसी बताते हैं।’
मराठों में शीर्ष पर छह ‘शाही परिवार’ हैं जो खुद को सबसे श्रेष्ठ मानते हैं। ये हैंः बड़ौदा के गायकवाड़, इंदौर के होल्कर (मूल रूप से चरवाहे), ग्वालियर के सिंधिया, भोसले, जाधव और देशमुख। पहले तीन राजवंश छत्रपति शिवाजी महाराज के अधीन सरदार थे जबकि भोसले खुद को शिवाजी का वंशज बताते हैं। जाधव अपना वंश शिवाजी की मां जीजाबाई से बताते हैं। शिवाजी के राज में देशमुख मुख्य मुखिया होते थे। इनके अलावा 90 अन्य कुल या कबीले हैं जो खुद को राजपूताना के चौहानों और सिसौदियाओं से जोड़ते हैं। वे भी अपने ‘शाही’ मूल की बात करते हैं।
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फिर भी, वैसे मराठों की बड़ी आबादी है जो शाही मूल का दावा नहीं करती। इनमें एनसीपी के दिग्गज शरद पवार भी शामिल हैं। इन कुलों को ‘कुनबी दर्जे’ में ‘डाउनग्रेड’ किए जाने में समस्या नहीं दिखती होगी। दरअसल, पिछले दो महीनों में इनमें से कई मराठों ने कुनबी प्रमाणपत्र हासिल भी कर लिया है और इससे ओबीसी श्रेणी के अन्य लोग उत्तेजित हो रहे हैं कि ये नए कुनबी उनके हिस्से के कोटे में हिस्सेदार हो जाएंगे।
इसीलिए महाराष्ट्र सरकार में खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री छगन भुजबल और महेश जारांगे पाटिल में वाकयुद्ध छिड़ गया है। भुजबल खुद को बड़ा ओबीसी नेता मानते हैं जबकि पाटिल खुद को मराठों का नेता। भुजबल और पाटिल- दोनों ने एक-दूसरे के खिलाफ जैसे-जैसे अपशब्द कहे हैं, वह महाराष्ट्र के सार्वजनिक जीवन में पहले कभी नहीं देखा गया। ताजा हमला, पिछले हफ्ते तब शुरू हुआ जब भुजबल ने मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र जारी करने पर रोक लगाने का आह्वान किया और जारांगे पाटिल ने चेतावनी दी कि अगर ऐसा हुआ तो आंदोलन तेज़ हो जाएगा। भुजबल ने पाटिल के लिए गडवा (गधा) और अकल से पैदल जैसी अभिव्यक्तियों का इस्तेमाल किया।
वैसे, बीजेपी के साथ भुजबल की नजदीकियां रंग ला रही हैं क्योंकि वह और उनके भतीजे समीर भुजबल को उनके खिलाफ चल रहे तमाम मामलों से मुक्त कर दिया गया है।
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एक और विवाद जो गहरा होता जा रहा है, वह है नवाब मलिक से जुड़ा मामला। मलिक महाराष्ट्र सरकार के लिए पहेली साबित हुए हैं।
कुख्यात डॉन दाऊद इब्राहिम की कथित स्वामित्व वाली संपत्ति से जुड़े वित्तीय लेनदेन के लिए ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) द्वारा गिरफ्तारी के बाद मलिक स्वास्थ्य आधार पर जमानत पर बाहर हैं। हालांकि ईडी ने अदालत में आरोपों को साबित नहीं किया है और किसी भी अदालत ने मलिक को अब तक किसी भी अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया है, फिर भी, मलिक दो कारणों से भाजपा के निशाने पर हैं- विभिन्न भाजपा नेताओं के ड्रग कार्टेल से रिश्तों के बारे में उनका खुलासा करना और शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को फंसाने के मामले में मुंबई के पूर्व नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो प्रमुख समीर वानखेड़े को बेनकाब करना। आर्यन को बाद में अदालत में बेकसूर पाया गया।
अब शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी और कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण मलिक के बचाव में खुलकर सामने आ गए हैं और उन्होंने मलिक को अपमानित करने के लिए उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस को आड़े हाथों लिया है। एनसीपी सांसद और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने फडणवीस पर प्रशासनिक तौर पर अपंग होने का आरोप लगाते हुए कहा- वह मलिक के नशीली दवाओं के आरोपों की जांच इसलिए नहीं कर सके क्योंकि वह ड्रग कार्टेल के अलावा बीजेपी से जुड़े प्रभावशाली लोगों को बचा रहे थे। सुप्रिया ने कहा, ‘हम नवाब मलिक का अपमान बर्दाश्त नहीं करेंगे जिन्होंने वर्षों की कड़ी मेहनत से अपना कॅरियर बनाया।’
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लेकिन सुले मलिक का बचाव क्यों कर रही हैं जबकि हिरासत से रिहा होने के बाद से मलिक प्रतिद्वंद्वी राकांपा गुट के नेता अजीत पवार के पक्ष में हैं? दरअसल, 7 दिसंबर को महाराष्ट्र विधानमंडल के शीत सत्र के पहले दिन जब अजित पवार सत्ता पक्ष में अपनी सीट पर बैठे तो मलिक ने उन्हें समर्थन पत्र की पेशकश की। शायद मलिक ने सोचा था कि वह अपने खिलाफ मामलों के दाग से छुटकारा पाने के लिए भाजपा की ‘वॉशिंग मशीन’ का इस्तेमाल कर लेंगे? लेकिन तब फडणवीस ने अजित पवार को पत्र लिखकर कहा कि सरकार दाऊद इब्राहिम से जुड़े अपराधी को बर्दाश्त नहीं करेगी।
अब अटकलें लगाई जा रही हैं कि मलिक ने दरअसल शरद पवार के कहने पर अजित का पक्ष लिया था- आखिरकार, सरकार में कई कैबिनेट मंत्री हैं जिनके मामलों को रोक दिया गया है- और यही कारण है कि सुले उनका बचाव कर रही हैं। हालांकि पृथ्वीराज चव्हाण ने फडणवीस से ज्यादा जरूरी सवाल पूछा: ‘क्या आप मलिक का अपमान सिर्फ इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वह मुस्लिम हैं? अगर आपको मलिक के सत्तासीन होने पर कोई आपत्ति थी, तो आप अजित पवार को एक तरफ ले जाकर मलिक के बारे में अपनी आपत्तियों से अवगत करा सकते थे। जब उनके खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं हुआ है और किसी अदालत ने उन्हें दोषी नहीं ठहराया है तो पत्र क्यों लिखा और इसे सोशल मीडिया पर प्रसारित क्यों किया?’
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अजित पवार ने भी फडणवीस को संवैधानिक प्रोटोकॉल का पाठ पढ़ाया: ‘मैं, अपनी पार्टी के नेता के रूप में, यह तय नहीं कर सकता कि मेरे विधायक कहां बैठें। यह स्पीकर का विशेषाधिकार है।’ लेकिन फिर यह शिवसेना (यूबीटी) ही थी जिसने वास्तव में फडणवीस और भाजपा के लिए विकट स्थिति पैदा की, यह बताते हुए कि विद्रोही एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल पर भी मनी लॉन्ड्रिंग और दाऊद के सहयोगियों से रिश्तों के ऐसे ही अप्रमाणित आरोप हैं। फिर भी ऐसा लगता है कि उन्हें पटेल की भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ मेलजोल से कोई दिक्कत नहीं है। यानी मलिक के पास पार्टी लाइन से ऊपर उठकर मित्र हैं। फडणवीस को इस गुगली को झेलने में मुश्किल हो सकती है।
एक समय था जब शरद पवार ने यह घोषणा करके महाराष्ट्र में एक बड़ा विवाद पैदा कर दिया था कि वाइन को सुपरमार्केट से बेचा जाना चाहिए और इसे शराब की दुकानों तक ही सीमित नहीं रखा जाना चाहिए। वह वास्तव में वाइन उद्योग का लोकतंत्रीकरण और इसके साथ ही देश के ‘अंगूर कैपिटल’ नासिक के किसानों के हितों को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे थे। नासिक के अंगूर किसानों ने लंदन, पेरिस और अन्य यूरोपीय और लैटिन अमेरिकी राजधानियों में हुए तमाम अंगूर शो में धूम मचाई थी। तब से, भारतीय वाइन भी लंदन, पेरिस, सिडनी और न्यूयॉर्क के रेस्तरां में पहुंच गई है। फिर भी भारत में वाइन केवल अभिजात वर्ग की पेय बनी हुई है जिसके कारण शराब बाजार में इसकी हिस्सेदारी बहुत कम है।
जहां नासिक में 25 साल पुराना सुला वाइनयार्ड हर साल नियमित रूप से वाइन चखाने का आयोजन करता है, वहीं अब भारतीय वाइन को सबसे अप्रत्याशित स्थानों में एक नया घरेलू आधार मिल गया है- नागपुर जो अपने संतरे और कपास के लिए बेहतर जाना जाता है।
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कुछ वर्षों से, वाइन के शौकीन महाराष्ट्र की शीतकालीन राजधानी में सालाना वाइन शो आयोजित कर रहे हैं और इसमें आम लोगों को वाइन टेस्ट कराई जाती है। नागपुर वाइन क्लब के निदेशक दीपक खनूजा और उनके दोस्त भी वाइन के शौकीन थे, यह जानने के लिए कि इसे कैसे बनाया जाता है, उन्होंने दुनिया भर में अंगूर के बागानों और वाइन क्लबों की यात्रा की। जब उन्होंने 2011 में छोटे पैमाने पर शुरुआत की, तो उन्हें वाइनरी को समय पर स्टालों के लिए अपने उत्पाद भेजने के लिए याद दिलाते रहना पड़ता। लेकिन इस वर्ष निमंत्रण भेजने के एक घंटे के भीतर सभी स्टॉल बुक हो गए और लोग अब भी दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
नागपुर वाइन क्लब ने आम लोगों को सिखाया है कि कैसे अपने भारतीय भोजन को विभिन्न वाइन के साथ जोड़ा जाए। यह अभ्यास इतना लोकप्रिय है कि नागपुर एग्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ने अब इस मामूली वाइन क्लब को अपने अधीन ले लिया है। परिणामस्वरूप, वाइन फेस्टिवल के लिए पहली विशेष इमारत 2024 के अंत तक नागपुर में बन जाएगी।
किसी ने एक बार कहा था कि वाइन बोतलबंद कविता है, संकट और आपदा के बीच पीने की सबसे अच्छी चीज- ‘यह साधु को मस्ती करना सिखा दे और गंभीर रहने वाले को हंसना।’ नागपुर, ऐसा इलाका जहां अंगूर की खेती नहीं होती लेकिन यहां के लोग निश्चित रूप से अपनी वाइनरी विशेषज्ञता का आनंद उठा सकते हैं।
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