मध्य प्रदेश के किसानों का कर्ज माफ करने के बाद प्रदेश सरकार ने एक और बड़ा फैसला लिया है। एससी/एसटी एक्ट में किए गए संशोधन के मुद्दे पर भारत बंद के दौरान मध्य प्रदेश में दर्ज किए गए केस वापस लिए जाएंगे। राज्य के कानून मंत्री पीसी शर्मा ने इस बात की पुष्टि की है। यही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि इसी तरह के मामले जो बीजेपी सरकार के 15 साल के कार्यकाल के दौरान दर्ज कराए गए थे उन्हें भी वापस लिया जाएगा।
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बीते साल एससी/एसटी में संशोधन के विरोध में दलित समाज द्वारा भारत बंद बुलाया गया था। भरत बंद के दौरान मध्य प्रदेश में कई जगहों पर उग्र प्रदर्शन हुए थे। इस दौरान तत्कालीन शिवराज सरकार ने बड़ी संख्या में लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए थे। बीएसपी प्रमुख मायावती ने कई लोगों को गलत तरीके से इन मामलों में फंसाने का आरोप लगाया था। उन्होंने कमलनाथ सरकार से अपील की थी कि वह इस तरह के मामलों को वापस ले।
गौरतलब है कि अनुसूचित जाति, जनजाति कानून में बदलाव किए जाने के खिलाफ देशभर के दलित संगठनों ने 2 अप्रैल, 2018 को देशव्यापी बंद बुलाया था। बंद के दौरान देश भर में दलित संगठनों ने प्रदर्शन किया था। एससी/एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को लेकर देश के दलित नाराज थे।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग पर फैसला सुनाते हुए तुरंत गिरफ्तारी के बजाए शुरुआती जांच का आदेश दे दिया था। जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की पीठ ने एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग पर पर चिंता जताई थी। इस मामले में पीठ ने सात दिनों के भीतर शुरुआती जांच जरूर पूरी करने का निर्देश दिया था।
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दलित और आदिवासी संगठनों में नाराजगी देखने को मिली थी। उनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश दलितों के खिलाफ था। कोर्ट के उस फैसले से दलितों को निशाना बनाना और आसान हो जाता। हालांकि, दलितों के विरोध के आगे मोदी सरकार ने घुटने टेक दिए थे। बाद में सरकार एससी/एसटी एक्ट को लेकर संसद में बिल लेकर आई थी। एससी/एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट ने जिसे लेकर फैसला दिया था। सरकार ने उसे दोबारा बहाल कर दिया था। तब जाकर देश में दिलतों का गुस्सा शांत हुआ था।
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