हरियाणा में कोरोना की दूसरी लहर से जूझते मरीजों के लिए अस्पतालों की लूट एक और त्रासदी बन चुकी है। मरीजों से निजी अस्पतालों की यह लूट इसलिए और भयावह है, क्योंकि पूरे प्रदेश के साथ प्रशासनिक राजधानी पंचकूला में भी इसे लगातार अंजाम दिया जा रहा है। पूरा प्रशासनिक अमला यहां बैठा होने के बावजूद कोरोना मरीजों से हो रही मनमानी वसूली पूरे तंत्र की विफलता की कहानी कह रही है। अराजकता की स्थिति इतनी भयावह है कि यहां निजी अस्पताल ने दिन-रात मिलाकर होने वाले 24 घंटे के लिए 36 घंटे का बिल बना दिया।
यह मामला पंचकूला के एल्केमिस्ट अस्पताल का है। अस्पताल ने एक मरीज को 11 घंटे ऑक्सीजन लगाकर 36 घंटे का बिल बना दिया, जबकि पूरे दिन-रात में 24 घंटे होते हैं। इसी प्रकार रेमडेसिविर के 9 टीकों की रकम बिल में जोड़ी गई, जबकि यह इंजेक्शन 6 से ज्यादा नहीं लगाए जा सकते। इस बार भी खुलासा स्थानीय विधायक और विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता ने किया है। उन्होंने मुख्यमंत्री से मिलकर सख्त एक्शन की मांग की है। इससे पहले पारस अस्पताल के खिलाफ भी उन्होंने कार्रवाई की मांग की थी, लेकिन सरकार में खामोशी है।
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आश्चर्य की बात यह है कि सरकार की गठित कमेटी ही निजी अस्पतालों की लूट को उजागर कर रही है, लेकिन सरकार की तरफ से कोई उदाहरण पेश करने वाला एक्शन न लिया जाना हैरान कर रहा है। हरियाणा के पंचकूला समेत अनेक जिलों में निजी अस्पतालों द्वारा कोविड मरीजों से हो रही अधिक वसूली की जांच के लिए गठित कमेटी की रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। इस रिपोर्ट में मरीजों का बड़े स्तर पर आर्थिक शोषण के मामले सामने आए हैं। कमेटी ने शुक्रवार सुबह ही विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता को रिपोर्ट सौंपी है। गुप्ता ने देर शाम मुख्यमंत्री मनोहर लाल से मुलाकात कर मामले की गंभीरता से अवगत भी करा दिया।
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कोरोना मरीजों के उपचार के लिए पंचकूला के पारस और एल्केमिस्ट समेत अनेक अस्पतालों के बिलों को चेक करने के लिए पंचकूला के अतिरिक्त जिला उपायुक्त मोहम्मद इमरान रजा के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया गया था। इसमें पाया गया कि अस्पतालों ने सरकारी आदेशों का उल्लंघन कर अनाप-शनाप बिल बनाए। इतना ही नहीं दवा और सेवाओं के मार्केट से अलग मनमर्जी के रेट निर्धारित किए। इसके बाद इन रेटों को भी धता दिखाते हुए कई गुणा ज्यादा वसूली की गई।
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ज्ञान चंद गुप्ता ने सीएम खट्टर से मुलाकात कर इन अस्पतालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की सिफारिश की है। उन्होंने कहा कि सरकारी आदेशों के उल्लंघन के मामले में इनके खिलाफ संबंधित अधिनियमों के तहत एफआईआर दर्ज की जाए। इसके साथ ही जिन रोगियों से अधिक वसूली की गई, उन्हें उनकी रकम वापस दिलाने की मांग भी गुप्ता ने की है। मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में उन्होंने कहा कि दोषी अस्पतालों के लाइसेंस रद्द कर उन्हें सरकारी पैनल से हटाना चाहिए।
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गौरतलब है कि राज्य सरकार ने निजी अस्पतालों की सेवाओं के लिए अधिकतम दरें तय कर रखी हैं, जिसका अनुपालन न करने पर सख्त कार्रवाई का फरमान है। गैर नाभ (नेशनल एक्रिडिटेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स एंड हेल्थ प्रोवाइडर्स) अस्पतालों में आइसोलेशन बेड के अधिकतम 8000 प्रतिदिन और 10000 प्रतिदिन नाभ अस्पतालों में, बिना वेंटिलेटर के आईसीयू बेड गैर नाभ अस्पतालों में 13000 रुपये प्रतिदिन और 15000 प्रतिदिन नाभ अस्पतालों में, वेंटिलेटर के साथ आईसीयू बेड के 15000 प्रतिदिन गैर नाभ अस्पतालों में और 18000 प्रतिदिन नाभ अस्पतालों के लिए दरें निर्धारित हैं। इसी तरह लैब टेस्ट से लेकर निजी अस्पतालों में हर सर्विस के लिए भी दरें तय हैं, लेकिन निजी अस्पताल इन्हें मानने के लिए तैयार नहीं हैं।
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