लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में मंगलवार को बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से पांच सीट झंझारपुर, अररिया, सुपौल, मधेपुरा और खगड़िया में भी मतदान होना है। इन सीटों पर मतदान को लेकर सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है। बिहार में तीसरे चरण के चुनाव में कुल 98.60 लाख मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर 54 उम्मीदवारों के राजनीतिक भविष्य का फैसला करेंगे। इस चरण में 9,848 मतदान केंद्र बनाए गए हैं। चुनाव से एक दिन पहले उम्मीदवार और पार्टियां मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए हर मुमकिन कोशिश में लगी हुई हैं।
इस चरण में मतदाता जेडीयू के रामप्रीत मंडल, बीजेपी के प्रदीप कुमार सिंह सहित 54 उम्मीदवारों के राजनीतिक किस्मत का फैसला मतदाता करेंगे। इनमें तीन महिला प्रत्याशी शामिल हैं। इस चरण में 19 प्रत्याशी निर्दलीय भी हैं। इस चरण में सर्वाधिक 15 उम्मीदवार सुपौल और सबसे कम मधेपुरा में आठ प्रत्याशी मैदान में हैं। बिहार निर्वाचन आयोग के मुताबिक इस चरण में सभी मतदान केंद्रों पर सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध हैं। मतदान के मद्देनजर नेपाल की सीमा को सील कर दिया गया है।
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बिहार में इस चरण में प्रमुख प्रत्याशियों की बात करें तो सभी पांच क्षेत्रों में मुख्य मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच माना जा रहा है। इस चरण में एनडीए के सामने अपनी सीट बचाने की बड़ी चुनौती है। इन सभी सीटों पर 2019 के संसदीय चुनाव में एनडीए ने परचम लहराया था। इस चुनाव में एनडीए ने जहां इन सभी सीटों को बरकरार रखने को लेकर पूरी ताकत झोंक दी है। वहीं, महागठबंधन भी इन सीटों पर जीत को लेकर जोर लगाए हुए है। इन पांच सीटों में इस बार तीन सीटों पर एनडीए के मुकाबले आरजेडी, जबकि एक सीट पर विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) और एक अन्य पर सीपीएम के उम्मीदवार हैं।
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मधेपुरा सीट पर जेडीयू ने एक बार फिर दिनेश चंद्र यादव को उतारा है, जिनका मुकाबला आरजेडी के प्रो. कुमार चंद्रदीप से है। दिनेशचंद्र यादव ने ही 2019 के चुनाव में शरद यादव को तीन लाख से अधिक मतों से हराया था। मधेपुरा कभी समाजवादियों का गढ़ था। यहां के बारे में कहा जाता है कि रोम पोप का और मधेपुरा गोप का। ऐसे में यहां जेडयू के सामने सीट बचाने और लालू यादव के सामने अपने यादव मतदाताओं पर फिर से अपनी पकड़ बनाने की चुनौती है।
झंझारपुर में जेडीयू ने एकबार फिर रामप्रीत मंडल को चुनावी मैदान में उतारा है। मंडल ने पिछले लोकसभा चुनाव में यहां आरजेडी के गुलाब यादव को तीन लाख 22 हजार से ज्यादा मतों से हराया था। लेकिन इंडिया गठबंधन ने इस बार यह सीट मुकेश सहनी की वीआइपी को दी है। वीआईपी के सुमन कुमार महासेठ इस बार यहां से ताल ठोंक रहे हैं। मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच माना जा रहा था, लेकिन गुलाब यादव के बीएसपी से आने से लड़ाई त्रिकोणीय हो गई है। क्योंकि गुलाब यादव आरजेडी के विधायक रह चुके हैं। उनकी पत्नी एमएलसी हैं और बेटी जिला परिषद अध्यक्ष हैं। ऐसे में यहां मुकाबला दिलचस्प हो गया है।
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खगड़िया संसदीय सीट की बात करें तो यहां से दोनों गठबंधन ने नए उम्मीदवार उतारे हैं। एलजेपी (रामविलास) ने राजेश वर्मा को उतारा है। महागठबंधन की ओर से सीपीएम के संजय कुशवाहा मैदान में हैं। यहां बाहरी और स्थानीय की चर्चा है। राजेश को लोग बाहरी और संजय को स्थानीय बता रहे हैं। वहीं टिकट कटने के बाद कैसर के आरजेडी में आने से महागठबंधन मजबूत दिख रहा है। बीते चुनाव में एलजेपी के महबूब अली कैसर ने जीत हासिल की थी। इस बार टिकट नहीं मिलने पर कैसर आरजेडी में चले गए हैं। जेडीयू की पूर्व सांसद रेणु कुशवाहा ने भी आरजेडी में चली गई हैं। ऐसे में राजेश वर्मा के सामने एनडीए का गढ़ बचाए रखने की चुनौती है।
सुपौल सीट भी काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। यहां इस बार 15 प्रत्याशी हैं। जेडीयू ने फिर से दिलेश्वर कामत को उतारा है। वहीं आरजेडी ने चंद्रहास चौपाल को टिकट दिया है। सुपौल में जहां दिलेश्वर कामत अपनी सीट बचाने के लिए जोर लगाए हैं, वहीं चंद्रहास चौपाल उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं। इन सबके बीच बैद्यनाथ मेहता ने निर्दलीय उतरकर दोनों की चिंता बढ़ा दी है। सुपौल में इस बार की सियासी लड़ाई भी जातियों समीकरणों के आसपास भी घूम रही है।
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कभी तस्लीमुद्दीन की गढ़ रही सीमांचल की सीट अररिया में बीजेपी के प्रदीप सिंह और आरजेडी के शाहनवाज आलम के बीच कड़ा मुकाबला है। बीजेपी उम्मीदवार और निवर्तमान सांसद प्रदीप सिंह के सामने अपनी सीट बचाने की बड़ी चुनौती है। वहीं आरजेडी के शाहनवाज आलम परंपरागत मतदाताओं के सहारे इस सीट पर जीत के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं। शाहनवाज तस्लीमुद्दीन के ही बेटे हैं।
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