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महाराष्ट्र को मजदूरों की कमी से उबारेंगे भूमिपुत्र, उद्धव सरकार ने राज्य को पटरी पर लाने के लिए कसी कमर

प्रवासी मजदूर महाराष्ट्र के शहरों और औद्योगिक विकास की रीढ़ की तरह हैं। लेकिन कोरोना संकट में लाखों मजदूरों के लौट जाने से संकट खड़ा हो गया है। ऐसे में सीएम उद्धव ठाकरे ने स्थानीय युवाओं से अपील की है कि वे राज्य के उद्योगों में कामगारों की कमी न होने दें।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

महाराष्ट्र से लाखों की तादाद में प्रवासी मजदूर अपने गृह प्रदेश लौट रहे हैं। इसका सीधा असर यहां के शहरों और औद्योगिक विकास पर पड़ेगा। इसे देखते हुए राज्य की महा विकास अघाड़ी सरकार के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कोरोना महामारी पर काबू पाने के साथ-साथ राज्य की अर्थव्यवस्था और उद्योग-धंधों को भी पटरी पर लाने की दिशा में काम करना शुरू कर दिया है।

सीएम उद्धव ठाकरे ने राज्य के सभी जिलाधिकारियों से कहा है कि वे अपने इलाके के उद्योग-घंधों में मजदूरों की कमी का पता लगाएं और वहां मजदूरों की कमी को पूरा करने के लिए स्थानीय युवाओं को काम दिलाएं। इसके साथ ही उन्होंने भूमिपुत्रों (स्थानीय युवा) से भी भावनात्मक रूप से अपील की है कि वे रोजगार के लिए इस बेहतर अवसर का लाभ उठाएं। उन्होंने कहा कि भूमिपुत्र राज्य के उद्योग धंधों में कामगारों की कमी न होने दें।

महाराष्ट्र के शहरों और औद्योगिक विकास में प्रवासी मजदूर रीढ़ की तरह हैं। इसलिए लॉकडाउन की वजह से फंसे प्रवासी मजदूरों को राज्य सरकार की ओर से रोकने के भरपूर प्रयास हुए और उनके सामने काम देने का भी प्रस्ताव रखा गया। लेकिन कोरोना के डर ने प्रवासी मजदूरों को अपने गृह प्रदेश जाने के लिए मजबूर कर दिया। वैसे, कुछ मजदूरों ने यह आश्वासन जरूर दिया है कि वे छह महीने के बाद महाराष्ट्र फिर लौटेंगे। वजह साफ है कि उन्हें यहां रोजी-रोटी मिलती है। वैसे कुछ मजदूर रूके भी हैं, जिनकी सैलरी कंपनियों ने बढ़ा दी है।

लेकिन महाराष्ट्र से अब तक सात लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान, ओड़िशा, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और कर्नाटक लौट चुके हैं। प्रवासी मजदूरों के गृह प्रदेश लौटने का सिलसिला अभी भी जारी है। राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख कहते हैं, '20 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूरों ने अपने गृह प्रदेश जाने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है और उन्हें श्रमिक ट्रेनों और बसों से भेजा जा रहा है, जिसका खर्च महा विकास आघाड़ी सरकार वहन कर रही है।'

देशमुख आगे बताते हैं कि राज्य में सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर उत्तर प्रदेश और बिहार के हैं। बता दें कि प्रवासी मजदूरों को ट्रेनों से भेजने के लिए कांग्रेस ने भी ट्रेनों का भाड़ा वहन किया है। महा विकास आघाड़ी सरकार ने भी प्रवासी मजदूरों को ट्रेन से जाने के लिए ट्रेन भाड़े के रूप में मुख्यमंत्री राहत कोष से अब तक 67 करोड़ 19 लाख 55 हजार 490 रूपए दिए हैं। इसमें मुंबई उपनगर जिला, अहमदनगर, सतारा, सांगली, सोलापुर और कोल्हापुर जिलों को अतिरिक्त राशि दी गई है। क्योंकि यहां से ज्यादा प्रवासी मजदूर अपने गांव जा रहे हैं।

महा विकास आघाड़ी सरकार की ओर से राज्य को आर्थिक संकट से उबारने के लिए उद्योग धंधों, फार्मा उद्योगों और कृषि उद्योगों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। लॉकडाउन की वजह से बंद उद्योगों को शुरू करने के लिए इजाजत मांगी जा रही है। राज्य के उद्योग मंत्री सुभाष देसाई बताते हैं, “रेड जोन को छोड़कर ग्रीन और ऑरेंज जोन में अब तक 70 हजार उद्योगों ने काम करने के लिए एमआईडीसी से ऑनलाइन परमिशन लिया है, जिसमें से तकरीबन 50 हजार उद्योगों में उत्पादन शुरू हो गया है और वहां लगभग 12 लाख मजदूर काम कर रहे हैं। अत्यावश्यक सेवा देने वाले हजारों उद्योगों को शुरू रखकर आर्थिक चेन को भी बरकरार रखने की कोशिश की जा रही है।”

लॉकडाउन में सर्वाधिक असर छोटे और मझोले उद्योगों पर हुआ है। सरकार इन्हें संकट से उबारने का प्रयास कर रही है। राज्य में बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिए उद्योग, श्रम और कौशल विभाग के सहयोग से औद्योगिक कामगार ब्यूरो का गठन करने का फैसला लिया गया है और इसी ब्यूरो के जरिए आवश्यकता के आधार पर उद्योगों में कुशल और अकुशल भूमिपुत्रों को भर्ती किया जाएगा।

प्रवासी मजदूरों के गांव जाने से उद्योगों में मजदूरों की कमी को पूरी करने के लिए भूमिपुत्रों से रोजगार पाने का आह्वान भी किया गया है, जिसका मजदूर संगठनों ने स्वागत किया है। राज्य सरकार को भरोसा है कि औद्योगिक क्षेत्रों में निवेशक आएंगे। इसलिए विदेशी निवेश लाने के लिए टास्क कमेटी का गठन किया गया है। उद्योग मंत्री बताते हैं, “40 हजार हेक्टर भूखंड देसी-विदेशी निवेशकों के लिए आरक्षित रखा गया है।” केंद्र की तर्ज पर उद्योग के लिए राहत पैकेज लाने की योजना पर भी काम चल रहा है। सुभाष देसाई ने मुंबई में जापान के वाणिज्य दूत मिचाओ हारडा से मुलाकात की और नए उद्योग लगाने को लेकर चर्चा की। राज्य में पहले से ही कई जापानी कंपनियों की औद्य़ोगिक ईकाइयां काम कर रही हैं।

महाराष्ट्र देश का औद्योगिक राज्य है। यहां सूक्ष्म, लघु और मझोले इंटरप्राइजेज (एमएसएमई) सेक्टर में ही 17 लाख से ज्यादा यूनिट्स रजिस्टर्ड हैं। प्रवासी मजदूरों के लगातार जाने से निर्माण कार्य, औद्योगिक कारखाने, ऑटो मोबाइल कंपनियों, सीमेंट उद्योग, सेवा क्षेत्र, फार्मा कंपनियों, छोटे-मोटे उद्योगों में मजदूरों की कमी हो गई है। असंगठित मजदूर भी बड़ी संख्या में महाराष्ट्र छोड़ रहे हैं। नासिक जिले में लगभग 5 लाख असंगठित मजदूर बताए जाते हैं।

पश्चिम विदर्भ की तुलना में पूर्वी विदर्भ में प्रवासी मजदूरों की संख्या ज्यादा है। क्योंकि, वहां सीमेंट प्रकल्प और अन्य कारखाने हैं। सूखा की वजह से मराठवाड़ा के ग्रामीण क्षेत्र से भी रोजगार के लिए मजदूर शहर में आते हैं। औद्योगिक नगरी औरंगाबाद में मराठवाड़ा के साथ जालना, बिहार और उत्तर प्रदेश के मजदूर काम करते हैं। यहां लगभग सवा दो लाख मजदूर काम कर रहे थे। इसमें से अधिकांश मजदूर अपने गृह प्रदेश चले गए हैं।

राज्य के पुणे, पिंपरी चिंचवड़ के अलावा भिवंडी में पावरलूम कारखानों और मुंबई के धारावी में भी मजदूरों की भारी कमी है। भिवंडी में पावरलूम शुरू तो हुआ है, लेकिन मजदूरों का संकट है, क्योंकि, पावरलूम के 80 फीसदी मजदूर अपने गृह प्रदेश (उत्तर प्रदेश और बिहार) लौट गए हैं। पुणे जिले के चाकन औद्योगिक क्षेत्र में सैकड़ों छोटी-मोटी कंपनियां हैं, जहां तीन लाख मजदूर काम करते हैं। इस क्षेत्र में ऑटोमोबाइल के अलावा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के भी उद्योग हैं। चाकन और पिंपरी चिंवड़ के औद्योगिक क्षेत्रों में 11 हजार में से 6000 कंपनियों में फिर से उत्पादन शुरू हो गया है। लेकिन यहां भी मजदूरों का संकट खड़ा है। क्योंकि, चाकन से 50 हजार मजदूर चले गए हैं।

कृषि क्षेत्र में भी राज्य में खरीफ की फसल की कटाई के लिए मजदूरों का संकट बढ़ गया है। हालांकि, अधिकांश प्रवासी मजदूरों ने छह महीने बाद महाराष्ट्र लौटने की बात कही है। शायद उन मजदूरों को अपने गृह प्रदेश (खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार) में रोजगार की स्थिति का अंदाजा है। उन्हें अपने गृह प्रदेश में रोजगार मिलने की उम्मीद कम है। क्योंकि, वहां पहले से ही बेरोजगारों की संख्या बड़ी है।

इधर महाराष्ट्र में कम से कम छह महीने तक मजदूरों का संकट रहेगा। ऐसे समय में भूमिपुत्रों को संकटमोचक बनाने का प्रयास हो रहा है। लेकिन मजदूर नेता अजित अभ्यंकर कहते हैं, 'फिलहाल तो प्रवासी मजदूरों के जाने से निर्माण और औद्योगिक क्षेत्रों में मजदूरों की भारी कमी को पूरी करने के लिए काफी महेनत करनी पड़ेगी।'

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