हालात

यूक्रेन से लौटे और वहां अब भी फंसे छात्रों की गुहार सुनो सरकार, सुरक्षित देशों में पहुंचने के बाद मत बांटो गुलाब...

कीव और खारकीव सीमा के नजदीकी शहर हैं। इन दोनों शहरों में छात्र किसी तरह बंकरों में छिपे हुए हैं और उन्हें कई दिन से बाहर निकलने का भी मौका नहीं मिला है। लगातार बमबारी हो रही है, और छात्रों का कहना है कि दूतावास के अधिकारी उनकी कोई मदद नहीं कर रहे हैं।

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मोदी सरकार के दावों के उलट, अब यह साफ होने लगा है कि यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों के निकालने के लिए सरकार ने कोई कारगर योजना बनाई ही नहीं थी। यूक्रेन में भारतीय दूतावास द्वारा जारी की गई सारी एडवाइजरी में सिर्फ इतनी ही सलाह थी कि भारतीय छात्र किसी तरह नजदीकी बॉर्डर तक पहुंच जाएं, भले ही इसके लिए उन्हें पैदल चलना पड़े।

कीव और खारकीव उत्तरी यूक्रेन में रूसी सीमा के नजदीकी शहर हैं। इन दोनों शहरों में तमाम छात्र किसी तरह बंकरों में छिपे हुए हैं और उन्हें कई दिन से बाहर निकलने का भी मौका नहीं मिला है। इन दोनों शहरों पर लगातार बमबारी हो रही है, और अधिकतर छात्रों की शिकायत है कि दूतावास के अधिकारी उनकी कोई मदद नहीं कर रहे हैं।

वे छात्र जो यूक्रेन के दक्षिण-पश्चिमी शहर ओडेसा ने निकल सके हैं, वे मोलोदोवा बॉर्डर पहुंचे हैं। क्योंकि यही सीमा नजदीक थी। इन छात्रों की शिकायत है कि उन्हें घंटों तक पैदल चलना पड़ा और जब वे बॉर्डर पर पहुंचे तो उन्हें तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ा क्योंकि वहां कोई भारतीय अधिकारी मौजूद ही नहीं था।

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ऐसी ही एक छात्रा पारुल ने बताया, “हमने कई दिनों तक बिना खाना-पानी के वक्त गुजारा, हमें ओडेसा से मोलोदोवा बॉर्डर तक पहुंचने के लिए खुद ही कारों और बसों का इंतजाम करना पड़ा और बॉर्डर पर यूक्रेनी सैनिकों ने हमें गालियां सुनाई। हमने उनसे विनती की कि हमें बॉर्डर क्रॉस करने दें। वे लोगों को पीट रहे थे। किसी तरह जब हम रोमानिया पहुंच गए तो वहां हमें भारतीय अधिकारी नजर आए। लेकिन उसका क्या फायदा है।”

तमाम सोशल मीडिया ग्रुप्स में छात्रों के संदेश आ रहे हैं और वे कीव और खारकीव से किसी तरह निकालने जाने की अपील कर रहे हैं। वे भारत सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि कुछ तो इंतजाम किया जाए। पूर्वी यूक्रेन बॉर्डर के नजदीकी शबर सुमी में करीब एक हजार छात्र फंसे हुए हैं। उन्होंने अपील की है कि बमबारी के बीच वे आठ दिन से फंसे हुए हैं, कुछ तो मदद करें। लेकिन कहीं से उनकी मदद नहीं हो पा रही है।

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खारकीव की नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले एक छात्र ने बताया, “हालात बहुत खराब हैं। सब तरफ से बमबारी हो रही है, हमें नहीं पता कि हम जिंदा बच पाएंगे या नहीं। खाने की कमी है। हम में से कई लोग किसी तरह रेलवे स्टेशन पहुंच तो गए लेकिन यूक्रेनी अधिकारी हमें ट्रेन में नहीं चढ़ने दे रहे हैं। हमारे पास पैसे भी नहीं हैं, हमें पीटा जा रहा है। आखिर भारत सरकार कहां है? दूतावास के अधिकारी भी नहीं हैं जो हमें निकाल सकें। वे खुद तो सुरक्षित जगहों पर चले गे हं और अब छात्रों की वापसी का श्रेय ले रहे हैं।”

खारकीव में फंसे छात्रों का एक दल किसी तरह ट्रेन में चढ़ने में कामयाब हुआ है, लेकिन ट्रेन अभी लीव के लिए निकली नहीं है। उन्हें ट्रेन में 25 घंटे से ज्यादा हो गए हैं, जबकि पश्चिमी सीमा तक पहुंचने में अधिकतम 11 घंटे लगते हैं। लीव पहुंचने के बाद उन्हें तय करना होगा कि 80 किलोमीटर दूर पोलैंड सीमा जाएं या 150 किलोमीटर दूर हंगरी की सीमा पर।

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पोलैंड में दाखिल होने में कामयाब हुई एमबीबीएस चौथे साल की छात्रा नीतू ने बताया कि, “पोलैंड बॉर्डर पर करीब 15 किलोमीटर लंबी लाइन है। हमें 35 घंटे से ज्यादा वक्त तक कतार में इंतजार करना पड़ा और इस दौरान हमारी कोई मदद नहीं की गई। हम में से कई अपने कॉलेजों से बिना किसी डॉक्यूमेंट के ही निकले हैं। बहुत से छात्रों को गालियां सुननी पड़ रही हैं। अगर दूतावास के अधिकारी बॉर्डर पर होते तो कम से कम इस तरह के हालात से तो हमें दोचार नहीं होना पड़ता।”

मोदी सरकार के मंत्री रोमानिया, स्लोवाकिया, मोलोदोवा और पोलैंड से निकलने वाली फ्लाइट के शिड्यूल तो बता रहे हैं, लेकिन यूक्रेन में फंसे छात्र इन फ्लाइट्स तक कैसे पहुंचेंगे इसे लेकर को कुछ नहीं बोल रहा। सरकार का दावा है कि उन्होंने छात्रों के लिए रहने और खाने का इंतजाम किया, लेकिन इन देशों के अधिकारी मंत्रियों के दावों की पोल खोल रहे हैं।

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केंद्रीय मंत्री जनरल वी के सिंह पोलैंड से छात्रों के रवाना होने की तस्वीरें शेयर कर रहे हैं, लेकिन बमबारी के बीच फंसे छात्र यूक्रेन से कैसे निकलेंगे, इस पर खामोश हैं। सिविल एविएशन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी रोमानिया में ऐसा ही कर रहे हैं

सिर्फ कानून मंत्री किरन रिजिजू ने जरूर इस बात की सूचना दी कि स्लोवाकिया पहुंचे छात्रों को तमाम किस्म की दिक्कतों से दोचार होना पड़ा। उन्होंने स्वीकार भी किया कि भारतीय दूतावास के अधिकारियों के लिए भी मुश्किल हालत हैं और वे लोगों को सुरक्षित निकाल नहीं पा रहे हैं।

ऐसे तमाम माता-पिता हैं जिनके बच्चे अभी तक वापस नहीं आए हैं। उनका कहना है कि दिल्ली में विदेश मंत्रालय और यूक्रेन में भारतीय दूतावास से किसी किस्म की कोई मदद नहीं मिल रही है। नलिनी का बेटा अभी वापस नहीं लौटा है। उन्होंने बताया कि, “छात्रों ने आपस में तय किया है कि कोई न कोई लगातार दूतावास से संपर्क करने की कोशिश करता रहेगा, लेकिन वहां का फोन ही नहीं लगता और वे किसी मैसेज का जवाब भी नहीं दे रहे हैं।”

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