पिछले एक सप्ताह में तबलीगी जमात को निशाना बनाते हुए कई तरह की नकारात्मक खबरें प्रकाश में आई हैं। इन्हें मीडिया के एक वर्ग में खूब प्रचार मिला है। धीरे-धीरे अब इनकी सच्चाई सामने आने लगी है और मीडिया के वर्ग का बेहद घिनौना चेहरा सामने आया है। मुम्बई में पुलिसकर्मी पर थूकने वाली सच्चाई सामने आने के बाद नफरत वाली ब्रिगेड पहले ही मुंह की खा चुकी थी कि अब सहारनपुर, मेरठ और देहरादून की घटनाओं का सच सामने आ गया है। यही नहीं, गाजियाबाद और कानपुर में तबलीगी जमात के लोगों पर लगाए गए घिनौने आरोपों की कहानी में भी कई झोल है।
रविवार को धर्मगुरुओं के साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान भी सहारनपुर के मौलाना महमूद मदनी ने मीडिया द्वारा फैलाई जा रही झूठी ख़बरों पर चिंता जाहिर की थी। उन्होंने कहा था मीडिया ने इन दिनों बेहद गैरजिम्मेदाराना रिपोर्टिंग की है, जिससे समाज मे वैमनस्य फैल रहा है। हालांकि, इस पर सीएम योगी की तरफ से कोई उत्साहजनक जवाब नहीं मिला।
हालांकि, सिलसिलेवार आई ऐसी घटनाओं और खबरों की हुई जांच बहुत कुछ साफ कर देती है। आइए इन पर एक-एक कर नजर डाल लेते हैं।
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यह मामला मेरठ के कंकरखेड़ा थाना क्षेत्र के लखवाया गांव का था। शनिवार रात में यहां तबलीगी जमात से जुड़े एक स्थानीय शख्स नईमुद्दीन का अपने एक पड़ोसी दूकानदार अरुण से बीड़ी के बंडल का 10 रुपये की बजाय 12 रुपये लेने को लेकर विवाद हो गया था। इसके बाद अरूण पक्ष ने नईमुद्दीन की पिटाई कर दी, जिसकी शिकायत करने नईमुद्दीन थाने चला गया। इसके बाद अरुण भी थाने पहुंचा और उसने बताया कि नईमुद्दीन ने उस पर थूका और हाथ मे काट लिया, जिससे उसे संक्रमण हो जाए। अरुण ने यह भी कहा कि नईमुद्दीन मानव बम है और वो ज्यादा से ज्यादा हिंदुओं को संक्रमित करने की धमकी दे रहा था।
लेकिन पुलिस की ईमानदाराना जांच में यह सामना आया कि अरुण को ऐसा करने के लिए एक स्थानीय नेता तरुण गुर्जर ने भड़काया था। उसी ने सिक्के से अरुण के हाथों पर चोट के निशान बनाए थे। इसके बाद पुलिस ने षड्यंत्र रचने और समाज मे कटुता फैलाने की साजिश के आरोप में अरुण और तरुण सहित उनके एक और साथी को गिरफ्तार कर लिया।
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सहारनपुर जनपद के रामपुर मनिहारन थाना क्षेत्र में भी तबलीगी जमात के कुछ लोगों को क्वारंटाइन किया गया है। शनिवार को मीडिया के एक खास वर्ग ने इनके बारे में एक खबर बनाकर प्रकाशित की, जिसमें कहा गया कि इन लोगों ने नॉनवेज खाना न मिलने पर खाना फेंक दिया और खुले में शौच कर दिया। कई बड़े मीडिया समूहों ने भी बगैर जांच के इस खबर को प्रमुखता से दिखाया।
लेकिन मामले की जांच करने वाले रामपुर के कोतवाल छोटे सिंह ने बताया कि यह पूरी तरह झूठी खबर थी। उन्होंने कहा कि वह इस खबर का खंडन करते हैं। हुआ बस यह था कि एक जमाती ने खाना खाने के बाद डिसपोजेबल प्लेट डस्टबिन में न डालकर खिड़की के बाहर डाल दी थी। उसी पर बात का बतंगड़ बन गया। बाद में जनपद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की ओर से भी इस खबर को झूठा बताते हुए खंडन जारी किया गया।
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उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के दून मेडिकल कॉलेज में तबलीगी जमात के कुछ लोगों को क्वारंटाइन किया गया है। अभी इनकी रिपोर्ट आनी बाकी है। कई स्थानीय अखबारों ने खबर प्रकाशित की थी कि यहां भर्ती जमात के एक-एक लोग 25-25 रोटी खा रहे हैं। लेकिन अस्पताल के प्राचार्य आशुतोष स्याना ने इसका खंडन किया है। उन्होंने कहा कि स्थानीय अखबारों ने उनसे बात किए बिना ही अपनी मर्जी से सबकुछ लिख दिया। उन्होंने बताया कि “हमारे यहां एक मरीज को चार रोटी दी जाती है। मांगने पर 2 और दी जाती है। इससे ज्यादा किसी की खुराक नहीं होती है। 25 रोटी के एक आदमी के खाने की बात ही हास्यापद है। कोई 10 रोटी भी नहीं खा सकता है। हमसे ऐसी कोई मांग नहीं की गई। यह खबर झूठ है।”
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इन घटनाओं के खुलासों से साफ है कि जानबूझकर मीडिया के एक वर्ग द्वारा इस तरह की फर्जी खबरें गढ़ी गईं और उसके बाद दिल्ली तक बड़े समाचार समूहों ने बिना जांच-पड़ताल के इन खबरों को आगे फैलाया। अब जब पुलिस की ही जांच में ये तमाम खबरें झूठी पाई गई हैं, तो सबसे बड़ा सवाल ये है कि इन खबरों को जानबूझकर एक खास एंगल देकर प्रमुखता से छापने और दिखाने वाले अखबार और टीवी चैनल क्या अपनी गलती मानते हुए माफी मांगेगे या नहीं? क्या इन झूठी खबरों को साजिश के तहत समाज में वैमनस्यता फैलाने के इरादे से छापने के लिए ऐसे अखबारों-टीवी चैनलों पर कोई कार्रवाई होगी या नहीं?
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