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वायनाड में हुए भूस्खलन का अरब सागर में तापमान बढ़ने से है संबंध, जलवायु वैज्ञानिक का दावा

अरब सागर तट पर एक गहरी ‘मेसोस्केल’ मेघ प्रणाली का निर्माण हुआ जिसके कारण वायनाड, कालीकट, मलप्पुरम और कन्नूर में अत्यंत भारी बारिश हुई, जिसके चलते भूस्खलन हुआ। उन्होंने कहा कि बादल बहुत घने थे, ठीक वैसे ही जैसे 2019 में केरल में आई बाढ़ के दौरान नजर आए थे।

वायनाड में हुए भूस्खलन का अरब सागर में तापमान बढ़ने से है संबंध, जलवायु वैज्ञानिक का दावा
वायनाड में हुए भूस्खलन का अरब सागर में तापमान बढ़ने से है संबंध, जलवायु वैज्ञानिक का दावा फोटोः सोशल मीडिया

केरल के वायनाड में हुए भीषण भूस्खलन को लेकर कोचीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (सीयूएसएटी) में वायुमंडलीय रडार अनुसंधान आधुनिक केंद्र के निदेशक एस. अभिलाष ने दावा किया है कि अरब सागर में तापमान बढ़ने से घने बादल बन रहे हैं, जिसके कारण केरल में कम समय में भारी बारिश हो रही और भूस्खलन होने का खतरा बढ़ रहा है।

इस बीच, वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने भूस्खलन पूर्वानुमान तंत्र और जोखिम का सामना कर रही आबादी के लिए सुरक्षित आवासीय इकाइयों के निर्माण का मंगलवार को आह्वान किया। केरल के पर्वतीय क्षेत्र वायनाड जिले में मंगलवार तड़के अत्यधिक भारी बारिश के कारण भूस्खलन की कई घटनाएं हुईं, जिसमें 90 से अधिक लोगों की मौत हो गई। वहीं, कई लोगों के मलबे में दबे होने की आशंका है।

कोचीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (सीयूएसएटी) में वायुमंडलीय रडार अनुसंधान आधुनिक केंद्र के निदेशक एस. अभिलाष ने कहा कि सक्रिय मानसूनी अपतटीय निम्न दाब क्षेत्र के कारण कासरगोड, कन्नूर, वायनाड, कालीकट और मलप्पुरम जिलों में भारी वर्षा हो रही है, जिसके कारण पिछले दो सप्ताह से पूरा कोंकण क्षेत्र प्रभावित हो रहा है। उन्होंने बताया कि दो सप्ताह की वर्षा के बाद मिट्टी भुरभुरी हो गई।

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अभिलाष ने कहा कि सोमवार को अरब सागर में तट पर एक गहरी ‘मेसोस्केल’ मेघ प्रणाली का निर्माण हुआ और इसके कारण वायनाड, कालीकट, मलप्पुरम और कन्नूर में अत्यंत भारी बारिश हुई, जिसके परिणामस्वरूप भूस्खलन हुआ। अभिलाष ने कहा, "बादल बहुत घने थे, ठीक वैसे ही जैसे 2019 में केरल में आई बाढ़ के दौरान नजर आए थे।" उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों को दक्षिण-पूर्व अरब सागर के ऊपर बहुत घने बादल बनने की जानकारी मिली है। उन्होंने कहा कि कभी-कभी ये प्रणालियां स्थल क्षेत्र में प्रवेश कर जाती हैं, जैसे कि 2019 में हुआ था।

अभिलाष ने कहा, "हमारे शोध में पता चला कि दक्षिण-पूर्व अरब सागर में तापमान बढ़ रहा है, जिससे केरल समेत इस क्षेत्र के ऊपर का वायुमंडल ऊष्मगतिकीय (थर्मोडायनेमिकली) रूप से अस्थिर हो गया है।" वैज्ञानिक ने कहा, "घने बादलों के बनने में सहायक यह वायुमंडलीय अस्थिरता जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हुई है। पहले, इस तरह की वर्षा आमतौर पर उत्तरी कोंकण क्षेत्र, उत्तरी मंगलुरु में हुआ करती थी।"

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वर्ष 2022 में ‘एनपीजे क्लाइमेट एंड एटमॉस्फेरिक साइंस’ पत्रिका में प्रकाशित अभिलाष और अन्य वैज्ञानिकों के शोध में कहा गया है कि भारत के पश्चिमी तट पर वर्षा अधिक ‘‘संवहनीय’’ होती जा रही है। संवहनीय वर्षा तब होती है जब गर्म, नम हवा वायुमंडल में ऊपर उठती है। ऊंचाई बढ़ने पर दबाव कम हो जाता है, जिससे तापमान गिर जाता है। भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, त्रिशूर, पलक्कड़, कोझीकोड, वायनाड, कन्नूर, मलप्पुरम और एर्नाकुलम जिलों में कई स्वचालित मौसम केंद्रों में 19 सेंटीमीटर से 35 सेंटीमीटर के बीच वर्षा दर्ज की गई।

अभिलाष ने कहा, "क्षेत्र में आईएमडी के अधिकांश स्वचालित मौसम केंद्रों में 24 घंटों में 24 सेंटीमीटर से अधिक बारिश दर्ज की गई। किसानों द्वारा स्थापित कुछ वर्षा मापी केंद्रों पर 30 सेंटीमीटर से अधिक बारिश दर्ज की गई।" मौसम कार्यालय ने कहा कि अगले दो दिन में राज्य के कुछ स्थानों पर बहुत भारी वर्षा होने की संभावना है।

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इस बीच, वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने मंगलवार को भूस्खलन पूर्वानुमान तंत्र और जोखिम का सामना कर रही आबादी के लिए सुरक्षित आवासीय इकाइयों के निर्माण का आह्वान किया।केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव माधवन राजीवन ने कहा कि मौसम एजेंसियां ​​अत्यधिक भारी वर्षा होने का पूर्वानुमान तो कर सकती हैं, लेकिन भूस्खलन के बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता।

राजीवन ने कहा, ''भारी बारिश से हर बार भूस्खलन नहीं होता है। हमें भूस्खलन का पूर्वानुमान करने के लिए एक अलग तंत्र की जरूरत है। यह मुश्किल तो है लेकिन संभव है।'' उन्होंने कहा, “मिट्टी का स्वरूप, मिट्टी की नमी और ढलान समेत भूस्खलन का कारण बनने वाली स्थितियां ज्ञात हैं और इस सारी जानकारी से एक तंत्र तैयार करना जरूरी है। दुर्भाग्य से, हमने अब तक ऐसा नहीं किया है।" राजीवन ने कहा, "जब कोई नदी उफान पर होती है, तो हम लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाते हैं। भारी और लगातार बारिश होने पर भी हम यही काम कर सकते हैं। हमारे पास वैज्ञानिक जानकारियां हैं। हमें बस इसे एक तंत्र में तब्दील करना है।"

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केरल स्थानीय प्रशासन संस्थान के आपदा जोखिम प्रबंधन विशेषज्ञ श्रीकुमार ने को बताया कि दो से तीन दिन तक 120 मिलीमीटर से अधिक बारिश दक्षिणी तटीय राज्य के पर्वतीय इलाके में भूस्खलन का कारण बनने के लिए पर्याप्त है। श्रीकुमार ने कहा, "वायनाड में कई भूस्खलन संभावित क्षेत्र हैं। एकमात्र चीज जो हम कर सकते हैं वह है लोगों को सुरक्षित क्षेत्रों में ले जाना। अधिकारियों को ऐसे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए मानसून से बचाव करने वाले आवास बनाने चाहिए।"

भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने कहा कि केरल के लगभग आधे हिस्से में पहाड़ियां और पर्वतीय क्षेत्र हैं जहां ढलान 20 डिग्री से अधिक है, जिससे भारी बारिश होने पर इन स्थानों पर भूस्खलन का खतरा होता है। उन्होंने कहा, "केरल में भूस्खलन संभावित क्षेत्रों का मानचित्रण किया गया है। खतरनाक क्षेत्रों में स्थित पंचायतों को चिह्नित किया जाना चाहिए और वहां रहने वाले लोगों को जागरुक किया जाना चाहिए। हमें इन क्षेत्रों में बारिश के आंकड़ों की निगरानी करने और खतरनाक क्षेत्रों को ध्यान में रखकर प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली स्थापित करने की जरूरत है।"

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