अनुसूचित जनजाति दर्जे की मांग को लेकर कई दिन तक पश्चिम बंगाल में चला कुर्मी समुदाय का आंदोलन एक बार फिर शुरू हो सकता है। समुदाय के प्रतिनिधियों के साथ मंगलवार को हुई दो घंटे की बैठक में पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव एच.के. द्विवेदी गतिरोध तोड़ने में नाकाम रहे, जिसके बाद एक बार फिर आंदोलन शुरू होने की चर्चा है।
पांच सदस्यीय कुर्मी प्रतिनिधिमंडल के नेता राजेश महतो ने बैठक के बाद मीडियाकर्मियों से कहा कि चूंकि राज्य सरकार उन्हें उनकी मांग पूरी करने का कोई आश्वासन देने में विफल रही, इसलिए बैठक का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला। महतो ने कहा, "हम आपस में चर्चा करेंगे और आज रात तक आंदोलन के अपने अगले कदम पर फैसला करेंगे।"
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कुर्मी नेता ने बताया कि केंद्र सरकार ने स्वदेशी जनजातियों के लिए काम करने वाली राज्य सरकार की संस्था पश्चिम बंगाल कल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूबीसीआरआई) द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट पर राज्य सरकार से कुछ टिप्पणियां/औचित्य मांगा था। हालांकि, राज्य सरकार द्वारा भेजी गईं टिप्पणियां 2015 के रिकॉर्ड पर आधारित हैं।
कुर्मी नेता ने कहा कि हमने मामले की समीक्षा के लिए एक विशेष समिति के गठन की मांग की थी, जिस पर राज्य सरकार ने सहमति नहीं दी। समुदाय के प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि डब्ल्यूबीसीआरआई के साथ-साथ राज्य सरकार की अनिच्छा इस मामले में केंद्र सरकार को एक व्यापक रिपोर्ट भेजने के लिए कुर्मी समुदाय को एसटी श्रेणी के तहत मान्यता देने की प्रक्रिया में बाधा बन रही है।
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पिछले सप्ताह के दौरान तीन आदिवासी बहुल जिलों- पुरुलिया, बांकुड़ा और पश्चिमी मिदनापुर में कुर्मी समुदाय के लोगों द्वारा किए गए सड़क और रेल नाकेबंदी आंदोलन के कारण सामान्य जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ। इस दौरान लंबी दूरी की ट्रेनों सहित कई ट्रेनों को रद्द करना पड़ा, जबकि कुछ ट्रेनों के रूट या तो कम कर दिए गए या डायवर्ट कर दिए गए।
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आंदोलन के दौरान सड़क मार्ग भी बुरी तरह प्रभावित हुआ था और कई किलोमीटर तक लंबा जाम लग गया था। आखिरकार सोमवार को राज्य सरकार द्वारा चर्चा के आह्वान के बाद कुर्मी समुदाय के लोगों ने रेल रोको आंदोलन वापस ले लिया था। हालांकि, मंगलवार की बैठक गतिरोध तोड़ने में विफल रहने के बाद माना जा रहा है कि नए सिरे से आंदोलन फिर से शुरू होगा, जिससे आम लोगों की परेशानी बढ़ जाएगी।
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