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कोलकाता हिंसा: जानें कौन हैं ईश्वर चंद्र विद्यासागर, जिनकी तोड़ी गई प्रतिमा पर अब हो रही है सियासत

कोलकाता में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान हुई हिंसा में समाज सुधारक ईश्वर चंद विद्यासागर की मूर्ति को तोड़ने की खबर है। इसको लेकर टीएमसी में काफी नाराजगी है और इसके लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया है।

फोटो: सोशल मीडिया 
फोटो: सोशल मीडिया  

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान हुई हिंसा पर बवाल बढ़ता जा रहा है। टीएमसी ने बीजेपी पर हिंसा के दौरान समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर की मूर्ति तोड़ने का आरोप लगाया है। ममता बनर्जी समेत टीएमसी के नेताओं ने अपने ट्विटर एकाउंट पर ईश्वर चंद विद्यासागर की तस्वीर को प्रोफाइल फोटो बना लिया है। वहीं विद्यासागर की मूर्ति तोड़े जाने के खिलाफ गुरूवार को ममता बनर्जी ने एक विरोध रैली की घोषणा भी की है। आईए जानते है कौन हैं ईश्वर चंद्र विद्यासागर

Published: 15 May 2019, 12:20 PM IST

मशहूर बांग्ला लेखक और समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर बंगाल के पुनर्जागरण के स्तम्भों में से एक थे। इनका जन्म बंगाली ब्राह्मण परिवार में 26 सितम्बर 1820 को हुआ था। उनके पिता का नाम ठाकुरदास बन्धोपाध्याय और माता का नाम भगवती देवी था। इनके बचपन का नाम ईश्वर चन्द्र बन्दोपाध्याय था, लेकिन उनकी विद्वता के कारण ही उन्हें विद्यासागर की उपाधि दी गई थी। विद्यासागर को गरीबों और दलितों के संरक्षक के रुप में जाना जाता था। उन्होंने स्त्री शिक्षा और विधवा विवाह के खिलाफ आवाज उठाई थी।

Published: 15 May 2019, 12:20 PM IST

पढ़ने में विद्वान ईश्वर चंद्र विद्यासागर साल 1839 में विद्यासागर ने कानून की पढ़ाई पूरी की। 21 साल की उम्र में साल 1841 में उन्होंने फोर्ट विलियम कॉलेज में पढ़ाना शुरू कर दिया था। समाज सुधार योगदान के तहत ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने स्थानीय भाषा और लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूलों की एक श्रृंखला के साथ कोलकाता में मेट्रोपॉलिटन कॉलेज की स्थापना की। इन स्कूलों को चलाने का पूरा खर्चा उन्होंने खुद उठाया। इसके लिए वह बंगाली में लिखी गई किताबों जिन्हें कि विशेष रूप से स्कूली बच्चों के लिए लिखा जाता था, उसकी बिक्री से फंड जुटाते थे।

Published: 15 May 2019, 12:20 PM IST

जब उन्हें संस्कृत कालेज का प्रिंसिपल बनाया गया तो उन्होंने सभी जाति के बच्चों के लिए कॉलेज के दरवाजे खोल दिए। उनके लगातार प्रचार का नतीजा था कि विधवा पुनर्विवाह कानून-1856 पारित हुआ। उन्होंने खुद एक विधवा से अपने बेटे की शादी करवाई थी। उन्होंने बाल विवाह के खिलाफ भी आवाज उठाई थी। उनका निधन 29 जुलाई 1891 को हुआ था।

Published: 15 May 2019, 12:20 PM IST

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Published: 15 May 2019, 12:20 PM IST

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