चुनाव से पहले राजनीतिक दलों की मुफ्त योजनाओं की घोषणा के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज अहम सुनवाई हुई। सभी पक्षों की जोरदार बहस के दौरान कोर्ट ने संकेत दिया कि वह इस मामले को बड़ी बेंच में भेज सकता है। कल बुधवार को फिर सुनवाई होगी।
मुफ्त योजनाओं पर रोक लगाने की मांग करने वाले याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने बहस करते हुए कहा कि मुफ्त वादों के चलते देश दिवालिया होने की स्थिति में है। इस पर रोक लगनी चाहिए। वहीं सुनवाई के दौरान मामले में न्याय मित्र के तौर पर कपिल सिब्बल, आम आदमी पार्टी के लिए अभिषेक मनु सिंघवी पेश हुए। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस एनवी रमना की पीठ में हुई, जिसमें जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली भी शामिल हैं।
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चुनाव में फ्री घोषणाओं के असर की बात करें तो आंकड़ों से साफ है कि 2014 में बीजेपी और कांग्रेस की तरफ से कुछ योजनाओं का वादा किया गया था, जिनमें कुछ मुफ्त दिया जाना था। वहीं 2019 के आम चुनाव में दोनों ही पार्टियों ने ऐसा कोई ऐलान नहीं किया, जिन्हें सीधे तौर पर मुफ्त योजना कहा जा सके। हालांकि, दोनों ही बार बीजेपी बड़े अंतर से चुनाव जीती।
वहीं पिछले 8 राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों में मुफ्त स्कीम्स की भूमिका को देखें तो मिलाजुला असर दिखता है। सबसे पहले बात करते हैं हाल में हुए उत्तर प्रदेश चुनाव की। इसी साल हुए चुनाव में बीजेपी, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस तीनों ने ही मुफ्त योजनाओं की घोषणाएं की थी। नतीजे आए, तो कुल 430 सीटों में से बीजेपी को 255 सीटें मिलीं, जबकि एसपी ने 111 सीटें हासिल कीं। इस चुनाव में फ्री राशन स्कीम की बड़ी भूमिका मानी जा रही है।
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उत्तर प्रदेश से पहले 2020 के आखिर में बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ। मुख्य रूप से चुनावी मैदान में आरजेडी, जेडीयू, बीजेपी और कांग्रेस पार्टियां थीं। इनमें आरजेडी और कांग्रेस साथ थे, तो बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन था। जेडीयू को छोड़कर बीजेपी समेत सभी दलों ने नौकरी, पेंशन, कर्ज माफी, बेरोजगारी भत्ता जैसे वादे किए थे। नतीजे आए तो कुल 243 सीटों में से आरजेडी 76 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी, जबकि बीजेपी 75 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही। जेडीयू को 45 सीटें मिलीं। बीजेपी औऱ जेडीयू ने मिलकर सरकार बनाई थी। हालांकि हाल में नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़कर आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली।
इससे पहले पिछले साल पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हुआ। यहां ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने किसानों को सालाना 10 हजार रुपए देने, एससी-एसटी महिलाओं को सालाना 12 हजार रुपए और ओबीसी महिलाओं को सालाना 6 हजार रुपए देने का वादा किया था। वहीं बीजेपी ने मछुआरों को सालाना 6 हजार रुपए देने और महिलाओं को 33% आरक्षण और विधवा पेंशन 3 हजार रुपए करने का वादा किया था। नतीजे आए, तो राज्य की 294 सीटों में से टीएमसी ने 215 पर जीत हासिल की। वहीं, बीजेपी को 77 सीटें हासिल हुईं।
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इसी तरह मध्य प्रदेश में 2018 में हुए चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबला था। कांग्रेस ने किसानों की कर्जमाफी का वादा किया और बेरोजगारी भत्ता देने का भी ऐलान किया था। बीजेपी ने भी बेरोजगारी भत्ते को अपनी घोषणा में शामिल किया था, लेकिन उसका नाम अनुदान रखा था। साथ ही छात्रों को स्कूटी और लैपटॉप देने जैसे वादे भी किए थे। नतीजे आए तो 230 सीटों में कांग्रेस ने 114 तो बीजेपी 109 सीटों पर जीत दर्ज की। सरकार कांग्रेस ने बनाई, जो 15 महीने बाद गिर गई और राज्य में फिर से बीजेपी की सरकार बन गई।
राजस्थान में भी उसी साल विधानसभा चुनाव हुआ था। चुनाव में कांग्रेस का वादा किसानों की कर्ज माफी और बुजुर्ग किसानों को पेंशन देने का था। वहीं, बीजेपी ने बेरोजगारों को 5 हजार रुपए बेरोजगारी भत्ता देने के साथ ही हर साल 30 हजार सरकारी नौकरियां देने की बात कही थी। चुनाव नतीजे आए तो कुल 200 सीट वाली विधानसभा में कांग्रेस ने 100 सीट पर जीत हासिल की, तो वहीं बीजेपी ने 73 सीट पर जीत हासिल की। यहां बीजेपी को सत्ता से हटाकर कांग्रेस ने सरकार बनाई।
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छत्तीसगढ़ में भी 2018 में चुनाव हुआ था, जिसमें कांग्रेस ने किसानों का कर्ज माफ करने और बिजली बिल आधा करने का वादा किया। साथ ही 10 लाख बेरोजगार युवाओं को भत्ता देने का भी वादा किया। दूसरी तरफ बीजेपी ने दो लाख किसानों को फ्री पंप कनेक्शन देने और भूमिहीन किसानों को हर महीने एक हजार रुपए पेंशन देने का वादा किया था। नतीजों में राज्य की कुल 90 सीटों में से कांग्रेस ने 63 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि बीजेपी राज्य में महज 15 सीटों पर सिमट गई। यहां बीजेपी को सत्ता से हटाकर कांग्रेस ने सरकार बनाई।
इन तीनों राज्यों से करीब एक साल पहले गुजरात में चुनाव हुआ था। इस चुनाव में कांग्रेस ने किसानों की कर्ज माफी और बिजली बिल आधे करने के वादे के साथ गरीब परिवारों के लिए 20 लाख फ्लैट बनाने का वादा भी किया था। साथ ही उच्च शिक्षा के लिए छात्रों को स्मार्टफोन और लैपटॉप देने की बात कही थी। दूसरी ओर राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी ने कोई फ्री स्कीम का वादा तो नहीं किया, लेकिन सस्ती दवा दुकानें और मोहल्ला क्लीनिक खोलने की बात कही थी। नतीजों में कुल 182 सीटों में बीजेपी ने 99 सीटें जीतीं, वहीं कांग्रेस के खाते में कुल 82 सीटें आईं। चुनाव में कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिलने के बावजूद बीजेपी ने राज्य में फिर सरकार बनाई।
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इससे पहले ओडिशा में 2019 में विधानसभा चुनाव हुआ था। इस चुनाव में बीजू जनता दल (बीजेडी) ने राज्य के भूमिहीन किसानों को हर महीने 12 हजार रुपए देने के साथ ही किसानों को भी 10 हजार रुपए की मदद का वादा किया था। राज्य के सभी स्कूल-कॉलेजों में मुफ्त वाई-फाई का वादा भी किया था। वहीं बीजेपी ने 12वीं पास करने वाली छात्राओं को स्कूटी और किसानों को हर महीने तीन हजार रुपए की पेंशन देने की बात कही थी। नतीजे आए, तो राज्य की कुल 147 सीटों में से बीजेडी ने 112 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी को 23 सीटें ही मिलीं।
ऐसे में राजनीतिक दलों की फ्री घोषणाओं पर कोर्ट के साथ देश भर में जारी बहस के बीच चुनाव नतीजों पर फ्री योजनाओं के असर की पड़ताल करने पर मिलाजुला परिणाम नजर आता है। साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव हों या देश के अलग-अलग राज्यों में हुए पिछले विधानसभा चुनाव हों, देश की दो बड़ी पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस के साथ क्षेत्रीय दलो ने भी मुफ्त योजनाओं की घोषणा की है। हालांकि नतीजों में इन घोषणाओं का असर खास नहीं रहा।
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