केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने रेमडेसिवीर दवा का कोरोना वायरस के मरीजों पर आपातकाल प्रयोग की मंजूरी दे दी है। स्वास्थ्य मंत्रालय में सोमवार को हुई एक बैठक में इस दवा के वितरक जीलीड साइंसेस को मार्केट करने की मंजूरी दी गई है।
इस दवा की वितरक जीलीड साइंसेस ने दावा किया कि रेमडेसिवीर दवा के इस्तेमाल से कोरोना के मरीज ठीक हो रहे हैं। इस दवा के असर को लेकर सीडीएससीओ ने विशेषज्ञों की कमेटी में चर्चा की गई। इसके बाद फैसला लिया गया कि इस दवा का ट्रायल के रूप में और गंभीर रूप से बीमारी लोगों में इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि पहले फेल हो चुकी एंटी वायरल दवा रेमडेसिविर को अब कैसे मंजूरी मिल गई?
बता दें कि अमेरिका से इस दवा को मुंबई की एक कंपनी क्लिनेरा ग्लोबल सर्विसेज द्वारा आयात किया जाएगा। फिलहाल कोरोना मरीज़ों पर इस दवा का इस्तेमाल सिर्फ 5 दिनों के लिए होगा। कोरोना के कहर से बचाव के लिए इस दवाई पर कई देशों की निगाहें थीं। लेकिन पहले ही ट्रायल में ही फेल होने की वजह से सबकी उम्मीदें टूट गई। इससे संबंधित रिपोर्ट असावधानी से 23 अप्रैल को WHO की वेबसाइट पर क्लिनिकल ट्रायल डेटाबेस में भी आ गई थी, जिसे आनन-फानन में हटाया गया था। ट्रायल के दौरान 18 मरीजों पर साइड इफेक्ट के कारण रेमडेसिविर दवा बंद करनी पड़ी थी। महीने भर बाद इसके नतीजे बेहद खराब थे। रेमडेसिविर दिए जा रहे 13.9 प्रतिशत मरीजों की मौत हो गई थी।
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रेमडेसिविर का ट्रायल अमेरिकी बायोटेक कंपनी गिलिएड साइंसेज ने किया था जिसके नतीजे WHO की साइट पर विस्तार से आ गए थे। कंपनी का कहना था कि ट्रायल के नतीजे अंतिम नहीं थे क्योंकि इतने छोटे ग्रुप पर हुए ट्रायल से कुछ भी नतीजा नहीं निकाला जा सकता। इस तर्क को विशेषज्ञों ने भी समर्थन दिया था।
अब इस दवा के लेकर व्हाइट हाउस और कंपनी गिलिएड साइंसेज ने अलग दावे किए हैं। इसमें कहा गया है कि वायरल ड्रग रेमडेसिविर के फेज थ्री ट्रायल के नतीजों में दिखा कि 65 फीसदी मरीज ये दवा लेकर 11वें दिन बेहतर दिखे। इस कामयाबी के ऐलान के बाद अब भारत के Durg Controller General और सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDCSCO) ने अस्पताल में भर्ती कोरोना वायरस पीड़ित वयस्कों और बच्चों पर रेमडेसिविर के इस्तेमाल की इजाजत दी है। लेकिन ये दवा सभी मरीजों के लिए नहीं होगी, इससे सिर्फ गंभीर कोरोना मरीजों पर इस्तेमाल किया जाएगा और इसका इस्तेमाल लिखित प्रेस्क्रिप्शन के बाद सिर्फ अस्पतालों के अंदर ही होगा। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक रीनल और हेपेटिक समस्याओं वाले मरीजों के संदर्भ में इसे कैसे इस्तेमाल किया जाना है, इस बारे में अभी भारत अमेरिकी कंपनी से बातचीत कर रहा है।
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इसी रिपोर्ट की मानें तो CDSCO ने अनिवार्य तौर पर कहा है कि भारत में इस दवा के इस्तेमाल में अगर कोई नकारात्मक रिएक्शन पाए जाते हैं, तो उसकी सूचनाएं इकट्ठी कर सौंपना होंगी और यह प्रक्रिया एक महीने के भीतर होगी। ये भी कहा गया है कि भारत में रेमडेसिविर के इस्तेमाल और इसके मरीज़ों पर निगरानी से जुड़े नतीजे हर महीने साझा करने होंगे। ऐसे निर्देश सवाल खड़ा करते हैं कि क्या यह रेमडेसिविर के भारत में ट्रायल का दौर है?
वहीं द हिंदू की रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि रेमडेसिविर को मंज़ूरी देने की प्रक्रिया में तेज़ी का कारण नई ड्रग एंड क्लिनिकल ट्रायल नियमावली 2019 रही है, जिसमें विशेष स्थिति में क्लिनिकल ट्रायल को मंजूरी देने का प्रावधान है।
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