लोकसभा की आधे से अधिक सीटों पर मतदान हो चुका है, और कल यानी 13 मई को चौथे चरण में 10 राज्यों की 96 सीटों पर मतदान होना है। पहले तीन चरण में हुए कम मतदान और जमीनी स्तर से मिले संकेत इंगित करते हैं कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) 2019 लोकसभा चुनाव जैसा प्रदर्शन इस बार नहीं दोहरा सकेगी। इस बीच किसानों ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की तरफ से बीजेपी के उम्मीदवार अजय मिश्रा ‘टेनी’, करण भूषण सिंह और प्रज्वल रेवन्ना के खिलाफ मोर्चा खोलकर बीजेपी के संकट को और बढ़ा दिया है।
उत्तर प्रदेश की खीरी लोकसभा सीट से केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी और कैसरगंज सीट से यौन उत्पीड़न के अभियुक्त बृज भूषण शरण सिंह के बेटे करण की उम्मीदवारी को ‘किसान और महिलाओं’ के ‘अपमान’ की तरह देखा जा रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) द्वारा इनकी उम्मीदवारी के विरुद्ध एक पोस्टर जारी किया गया है जिससे बीजेपी की नींद उड़ गई है।
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किसान आंदोलन 2020-21 में सक्रिय भूमिका निभाने वाले संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने पोस्टर में बीजेपी को “बेनक़ाब कर दंडित” करने की बात कही है। एसकेएम द्वारा जारी पोस्टर में भारतीय कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष और बीजेपी सांसद बृज भूषण शरण सिंह, कर्नाटक में बीजेपी की सहयोगी जनता दल (सेकुलर) के नेता प्रज्वल रेवन्ना और नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्री अजय मिश्र ‘टेनी’ की तस्वीरें हैं। इसके अलावा पोस्टर पर लिखा है कि- “बृज भूषण के बेटे, प्रज्वल रेवन्ना और अजय मिश्र टेनी को चुनाव मैदान में उतारने से महिलाओं और किसानों का गुस्सा भड़का।”
बीजेपी सरकार और किसानों के बीच तनाव काफी लंबे समय से चल रहा है। किसानों ने बीजेपी सरकार के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के विरुद्ध, राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर एक साल से अधिक आंदोलन किया था। आंदोलन के दबाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तीनों विवादास्पद कृषि कानून लेने पड़े थे तब जाकर किसान आंदोलन खत्म हुआ था। एक समझौता भी हुआ था जिसके दो मुख्य बिंदु थे, फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी और लखीमपुर कांड के आरोपी आशीष मिश्रा के पिता टेनी की केंद्रीय मंत्री मंडल से बर्खास्तगी थे।
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ध्यान दिला दें कि लखीमपुर खीरी के तिकुनिया के पास 3 अक्टूबर 2021 को तीन कृषि कानूनों के ख़िलाफ प्रदर्शन कर लौट रहे चार किसानों और एक पत्रकार को एक कार ने कुचल मार दिया गया। इस घटना का आरोप मोदी सरकार के मंत्री टेनी के बेटे आशीष पर है। किसानों का आरोप है कि इस पूरे प्रकरण का षडयंत्र मंत्री टेनी द्वारा स्वयं रचा गया था। लेकिन बीजेपी ने अभी तक न तो एमएसपी पर कोई फैसला लिया है और न ही टेनी को बर्खास्त किया गया। बल्कि किसानों के जले पर नमक छिड़कते हुए तीसरी बार टेनी को खीरी लोकसभा सीट से बीजेपी का उम्मीदवार बना दिया है।
हालांकि राजनीति के जानकर मानते है कि मोदी सरकार ने तीन विवादास्पद कृषि कानून इसलिए वापस लिए क्योंकि उसे इनके कारण उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में भारी नुकसान का आभास हो गया था। लेकिन चुनाव जीतने के बाद किसानों की मांगें सरकार ने ठंडे बस्ते में दाल दीं। देश की राजनीति पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार कुमार भावेश चंद्र कहते हैं कि बीजेपी के प्रतिबद्ध वोटरों को इस तरह के फैसले पसंद आते हैं, इसीलिए मोदी किसानों और महिलाओं की बातें नजर-अंदाज कर कथित अपराधियों को टिकट देने में संकोच नहीं कर रहे हैं।
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किसान नेताओं का कहना है कि सत्ता में बने रहने के लिए बीजेपी आपराधिक गिरोहों के दबाव में है। किसानों के अलावा एसकेएम ने आम जनता से भी ‘राजनीति के अपराधीकरण’ का पुरजोर विरोध करने की अपील की है। एसकेएम सेंट्रल कोआर्डिनेशन कमेटी के वरिष्ठ सदस्य आशीष मित्तल कहते हैं कि 10 वर्षों से देश की सत्ता पर काबिज बीजेपी, आगे भी सत्ता में बने रहने के लिए अपराधियों को संरक्षण और बढ़ावा दे रही है।
किसान आंदोलन को याद करते हुए मित्तल कहते हैं कि ऐतिहासिक किसान संघर्ष के दौरान, लखीमपुर ‘जनसंहार’ हुआ था, जिसमें चार किसानों और एक पत्रकार की हत्या हो गई थी। उन्होंने आरोप लगाया की टेनी के बेटे, आशीष मिश्रा और उसके गिरोह ने इस कांड को अंजाम दिया था और इस कांड के ‘मास्टरमाइंड’ केंद्रीय मंत्री टेनी स्वयं थे। किसान नेता मित्तल कहते हैं कि टेनी पर इतने संगीन आरोपों के बावजूद बीजेपी ने उनको चुनाव मैदान में फिर से उतार दिया है, इससे उसकी नीति और नियति दोनों साफ हो जाते हैं।
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इसके अलावा किसान बृजभूषण शरण सिंह के बेटे को टिकट देने से भी नाराज हैं। किसान नेता मित्तल कहते हैं कि बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण पर महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न का आरोप तो है ही, दिल्ली की एक अदालत ने उन पर आरोप भी तय कर दिए है और उनके खिलाफ काफी सबूत भी मिले हैं। वह कहते हैं ऐसे में बृजभूषण के बेटे को चुनाव में उतारना राजनीतिक रूप से ‘अनैतिक’ है और देश की महिला समुदाय का ‘अपमान’ है।
एसकेएम नेता के अनुसार, ‘यह निर्णय आपराधिक गिरोहों का दबाव झेलने में एक राजनीतिक दल के रूप में बीजेपी की कमजोरी तो उजागर करता ही है, चुनावी प्रक्रिया के खुले अपराधीकरण का भी उदाहरण है।’
मित्तल कहते हैं इतना ही नहीं बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने प्रज्वल रेवन्ना को कर्नाटक के हासन से उम्मीदवार बनाया है, जिस पर सैकड़ों महिलाओं से छेड़छाड़ और बलात्कार के आपराधिक आरोप हैं। वह कहते हैं, “बीजेपी द्वारा राजनीतिक नैतिकता के इस तरह के घोर उल्लंघन से पूरे भारत में किसानों, महिलाओं और लोगों का गुस्सा भड़कना तय है।” उन्होंने कहा कि राजनीति के इसी अपराधीकरण और किसान विरोधी नीतियों के कारण एसकेएम ने पूरे देश में बीजेपी के विरोध के लिए किसान संगठनों से ‘ग्रामीण भारत’ में बीजेपी के खिलाफ अभियान तेज करने का आह्वान किया है।
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अखिल भारतीय किसान सभा (उप्र) के अध्यक्ष मुकुट सिंह भी सवाल करते हैं कि ‘13 महीने लंबे ऐतिहासिक किसान संघर्ष के दौरान उठाए गए ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा के लिए प्रधानमंत्री ने कभी भी किसान प्रतिनिधियों को क्यों नहीं बुलाया?’
किसानों में बीजेपी की कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों के खिलाफ भी गुस्सा है। किसान नेता पी कृष्णा प्रसाद कहते हैं कि ‘बीजेपी ने राम के नाम पर सत्ता हासिल कर उसे कॉर्पोरेट को सौंप दिया’। प्रसाद सवाल करते हैं कि यह कौन सा राम राज्य है जिसमें आम जनता केवल गरीब हो रही है और देश के सारे संसाधनों को कॉर्पोरेट घराने के हवाले किया जा रहा है ?
ऐसे समय में जब बीजेपी या मोदी की न कोई लहर है, न पहले जैसी लोकप्रियता, बल्कि भगवा पार्टी को एक-एक सीट के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, किसानों की यह नाराजगी बीजेपी के लिए महंगी भी पड़ सकती है। हालांकि फिलहाल बीजेपी किसानों की मांगों और नाराजगी को नजरंदाज ही कर रही है।
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