हरियाणा सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर सिलसिलेवार गंभीर सवाल खड़े करती हुई सीएजी की रिपोर्ट आखिर सामने आ ही गई। 17 प्रतिशत राजस्व घाटे वाला राज्य बना रहने पर प्रश्न पूछती रिपोर्ट विपक्ष के उन सवालों को पुख्ता कर रही है, जिसमें जनता के सामने अपनी खामियां छिपाने के मद्देनजर सरकार ने इस रिपोर्ट को समय पर नहीं आने दिया। हरियाणा विधानसभा के इतिहास में शायद पहली बार पिछले बजट सत्र में सीएजी की रिपोर्ट सदन के पटल पर नहीं रखी गई, जिसको लेकर समूचे विपक्ष ने सरकार पर गंभीर आरोप चस्पा किए थे।
हरियाणा सरकार के 31 मार्च 2018 को समाप्त हुए वित्त वर्ष के लिए प्रस्तुत रिपोर्ट में भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने लिखा है कि 14वें वित्त आयोग की ओर से अनुशंसित करने के बावजूद राज्य ने अभी तक राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंध अधिनियम में संशोधन नहीं किया है। सीएजी ने लिखा है कि यह राजस्व घाटे वाला राज्य बना हुआ है, जो 2017-18 के दौरान 17 प्रतिशत रहा। वर्तमान मूल्यों पर 2017-18 में प्रदेश का सकल राज्य घरेलू उत्पाद 6,08,471 करोड़ था।
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सीएजी के मुताबिक हरियाणा ग्रामीण विकास निधि के तहत एकत्रित 3,068.82 करोड़ की प्राप्तियां 2011-17 के दौरान राज्य की समेकित निधि में जमा ही नहीं की गईं। साल के दौरान कुल व्यय में 83 प्रतिशत राजस्व व्यय था। जिसमें 65 प्रतिशत था चार घटकों- वेतन एवं मजदूरी, पेंशन, ब्याज भुगतान और सब्सिडी पर व्यय था। कुल सब्सिडी (8,446 करोड़) का 90 प्रतिशत ( 7,624 करोड़) केवल उर्जा क्षेत्र के लिए दिया गया। पिछले वर्ष की तुलना में पूंजीगत व्यय 6,665 करोड़ ( 97 प्रतिशत) बढ़ गया। 2016-17 तक तीन बिजली वितरण कंपनियों की संचित हानियां 30,310 करोड़ थीं।
निगमों, ग्रामीण बैंकों, ज्वाइंट स्टॉक कंपनियों और सहकारिताओं में सरकार के निवेश पर औसत रिटर्न गत पांच साल में 0.04 से 0.17 प्रतिशत के बीच रहा, जबकि सरकार ने अपने उधारों पर 8 से 9.83 प्रतिशत का औसत ब्याज भुगतान किया। राज्य सरकार ने 2017-18 के दौरान 5,755.08 करोड़ रुपये के निवेश किए। ये 5,473 करोड़ के निवेश घाटे में चल रही पांच कंपनियों में किए गए।
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सीएजी ने लिखा है कि मध्यावधि राजकोषीय नीति में निर्धारित 2.84 प्रतिशत के लक्ष्य के विपरीत राजकोषीय घाटा सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 3.14 प्रतिशत रहा। राज्य की समग्र राजकोषीय देनदारी 31 मार्च 2018 को 1,64,076 करोड़ थीं, जो सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 26.97 प्रतिशत तथा राजस्व प्राप्तियों का 2.62 गुणा थी। राज्य के पास 2017-18 की समाप्ति पर नकद शेष 5,527 करोड़ की निर्धारित आरक्षित निधि से कहीं कम 4,417 करोड़ ही था।
सीएजी ने लिखा है कि यह इंगित करता है कि आरक्षित निधि का उपयोग अभिप्रेत उद्देश्यों के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए किया गया है। भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण उप-कर के अंतर्गत 31 मार्च 2017 तक 2,407 करोड़ अप्रयुक्त ही पड़े रह गए। सीएजी के मुताबिक सरकार के आंतरिक ऋण, जो 2016-17 में 1,22,617 करोड़ थे, बढ़कर 2017-18 में 1,37,813 करोड़ ( 12.39 प्रतिशत) हो गए। 2017-18 के दौरान आंतरिक ऋणों पर 10,578 करोड़ के ब्याज का भुगतान किया गया। साल 2017-18 के दौरान रिसोर्स गैप निगेटिव रहा अर्थात उधार ली गई निधियों में से आंशिक रूप से प्राथमिक व्यय वहन किया गया था। कुल 59 मामलों में वित्त वर्ष के अंत में 22,731.21 करोड़ सरेंडर किए गए। 15 मामलों में 9,158.16 करोड सरेंडर किए गए, जो वास्तविक बचतों से 345.16 करोड़ अधिक थे।
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सीएजी ने लिखा है कि यह इन विभागों में अपर्याप्त बजटीय नियंत्रण दर्शाता है। 23 मामलों में 8,637.78 करोड़ की बचतों में से 418.09 करोड़ की बचत सरेंडर नहीं की गईं। अनुचित विनियोजनों में दोनों प्रकार, अपर्याप्त पूरक प्रावधान तथा अनावश्यक एवं अत्यधिक विनियोजन के मामले भी पाए गए। 15 अनुदानों के अंतर्गत 21 मुख्य मदों पर किए गए 11,205.77 करोड़ के व्यय में से 3,682.69 करोड़ ( 33 प्रतिशत) का व्यय वित्तीय वर्ष के अंतिम माह मार्च 2018 में किया गया, जो वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर व्यय के वेग को इंगित करता है। यह सामान्य वित्तीय नियमों के नियम-56 के प्रावधानों के विरुद्ध है।
इसके आगे सीएजी ने राज्य सरकार पर और भी गंभीर टिप्पणियां की हैं। सीएजी ने लिखा है कि राज्य ने भारत सरकार के लेखांकन मानक संख्या-3 का अनुपालन नहीं किया है। सरकार ने ऋण एवं अग्रिमों के अतिदेय मूल धन और ब्याज की विस्तृत जानकारी नहीं दी। प्रत्येक ऋण प्राप्तकर्ता के विरुद्ध शेष राशि की पुष्टि नहीं दर्शाई गई। विभिन्न विभागों की ओर से प्रदान किए गए 7,800.80 करोड़ के ऋणों तथा अनुदानों के संबंध में 1,588 उपयोगिता प्रमाण पत्र 31 मार्च 2018 को बकाया थे। 85 स्वायत्त निकायों-प्राधिकरणों, जिन्हें राज्य की ओर से वित्तीय सहायता प्रदान की गई थी, के 216 वार्षिक लेखे 31 जुलाई 2018 को बकाया थे।
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सीएजी के मुताबिक राज्य सरकार ने सरकारी धन के दुरुपयोग और जालसाजी आदि के 71 मामले सूचित किए, जिसमें 1.34 करोड़ की सरकारी धनराशि शामिल थी। इन मामलों पर जून 2018 तक अंतिम कार्यवाही लंबित थी। 2017-18 के दौरान कुल व्यय का 13.28 प्रतिशत वित्त लेखाओं में संबंधित मदों में वर्गित करने के बजाय बहुप्रयोजन लघु शीर्ष-800 के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया, जोकि वित्तीय रिपोर्टिंग में पारदर्शिता को प्रभावित करता है।
राज्य सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर सीएजी के इतने सवाल खड़े करने के बाद विपक्ष के उन आरोपों की तस्दीक होती है कि सरकार अपने अंतिम बजट सत्र में इस रिपोर्ट को पेश न कर खामियों-नाकामियों पर चर्चा से बचना चाहती थी। पिछले महीने अगस्त में सरकार ने विधानसभा के अंतिम सत्र में उस समय सीएजी की रिपोर्ट सदन के पटल पर रखी जब विपक्ष पूरी तरह बिखरा हुआ था। इनेलो के अधिकांश विधायकों को तोडकर बीजेपी अपने पाले में ला चुकी थी और इस पर चर्चा की गुंजाइश ही नहीं बची थी।
झज्जर से विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री गीता भुक्कल का कहना है कि सरकार ने सीएजी रिपोर्ट सत्र के अंतिम दिन सदन के पटल पर रखा, जिससे किसी को इसके बारे में पता ही नहीं चला। गोहाना से विधायक जगबीर सिंह मलिक का कहना है कि वित्तीय प्रबंधन में सरकार पूरी तरह फेल है। सीएजी रिपोर्ट भी यही कह रही है। सरकार लोन भी लेती रही और पैसा पता नहीं कहां खर्च करती रही। यह जनता के पैसे का दुरुपयोग है।
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