विपक्ष के भारी विरोध और नारेबाजी के बीच विधानसभा में हरियाणा लोक व्यवस्था में विघ्न के दौरान क्षति वसूली विधेयक-2021 पास हो गया। इसके तहत अब हरियाणा सरकार प्रदर्शन के दौरान किसी तरह की हिंसा और तोड़फोड़ की स्थिति में नुकसान की भरपाई प्रदर्शनकारियों से ही करेगी। विधानसभा में विपक्ष ने सीधा आरोप लगाया कि किसान आंदोलन को दबाने के लिए यह बिल लाया जा रहा है। सरकार जब नहीं मानी तो सदन में जमकर हंगामा हुआ। विपक्ष के विधायक वेल में आ गए और नारेबाजी भी की।
सरकार ने 15 मार्च को यह विधेयक सदन में पेश किया था। उस दौरान भी जमकर हंगामा हुआ था। इस विधेयक की मंशा पर सवाल उठाते हुए नेता प्रतिपक्ष भूपिंदर सिंह हुड्डा ने डिवीजन की मांग की थी। कांग्रेस के विधायकों ने उस दिन भी इस बिल की मंशा के पीछे किसान आंदोलन बताया था। उस समय स्पीकर ने कहा था कि इस विधेयक को पास करते समय चर्चा करवाने के साथ डिवीजन भी करवाएंगे। लेकिन सरकार ने रणनीति के तहत 18 मार्च को बजट सत्र के अंतिम दिन सदन के स्थगन से ठीक पहले इस विधेयक को पास करवाने के लिए प्रस्तुत किया। लिहाजा, हंगामा तय था।
कांग्रेस विधायकों ने इसे ड्रैकोनिअन बताया। आरोप लगाया कि इस बिल के जरिये किसानों को डराया जा रहा है। सरकार की मंशा उनके शांतिपूर्ण आंदोलन को खत्म करने की है। सरकार का कोई भी तर्क विपक्ष मानने के लिए तैयार नहीं था। भारी हंगामे के बीच गृह मंत्री अनिल विज और मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने सफाई देने की कोशिश की कि इस बिल के पीछे कृषि कानूनों को लेकर चल रहा आंदोलन नहीं है। इस पर विपक्षी नेता किरण चौधरी ने कहा कि परसेप्शन यही है कि किसान आंदोलन को दबाने के लिए यह कानून बनाया जा रहा है। आईपीसी में पहले भी प्रावधान है। इसमें किसी को भी फंसाया जा सकता है। इसमें असीमित शक्तियां दी जा रही हैं।
वहीं निर्दलीय विधायक सोमबीर सांगवान ने कहा कि इस कानून के भय से किसान आंदोलन खत्म नहीं होगा। पूर्व स्पीकर रघुबीर कादियान ने कहा कि यह बिल ऐसे हालात में लाया गया है कि जब अभिव्यक्ति की आजादी संकट में है। देशद्रोह के मुकदमें दर्ज किए जा रहे हैं। जब सरकार नहीं मानी तो कांग्रेस के विधायक वेल में आ गए। अंतत: भारी शोर के बीच इस बिल को पारित कर दिया गया।
इस बिल के संबंध में हरियाणा सरकार का कहना है कि भीड़ की हिंसा के अतीत और हालिया उदाहरण चिंता का विषय हैं। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो और सार्वजनिक व्यवस्था बनी रहे इसके लिए यह बिल लाया गया है। इस बिल के जरिए व्यवस्था हो जाएगी कि किसी बिगड़ी परिस्थिति को संभालने के लिए राज्य के बाहर से तैनात किए गए सुरक्षा बलों की तैनाती की लागत की भरपाई के लिए आयोजकों या भड़काने वालों को उत्तरदायी बनाया जा सकता है।
इस बिल को नेता विरोधी दल भूपिंदर सिंह हुड्डा ने लोकतंत्र का गला घोटने वाला बताया है। उन्होंने कहा कि सरकार को इसे वापस लेना चाहिए। हुड्डा का कहना है कि विधेयक में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने वालों से भी वसूली का प्रावधान है, जो पूरी तरह गलत है। यह अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार का हनन करने की कोशिश है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कहना है कि कानून के उदेश्य और कारणों में साफ-साफ लिखा है कि सरकार आमजन में डर पैदा करना चाहती है। विधेयक के अंदर सेक्शन-14 में लिखा है कि वसूली सिर्फ हिंसा करने वालों से नहीं होगी, बल्कि प्रदर्शन का नेतृत्व, आयोजन करने वालों, उसकी योजना बनाने वालों, प्रोत्साहित करने वालों और उसमें भाग लेने वालों से भी होगी। यानी सरकार हर प्रदर्शनकारी को दोषी की श्रेणी में रखकर कार्रवाई करेगी।
उन्होंने कहा कि इस कानून में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2009 में दी गई डायरेक्शन का भी उल्लंघन किया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि दंगाइयों से रिकवरी के मामलों में निर्दोष लोगों को तंग ना किया जाए। वह भले ही किसी प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले नेता ही क्यों ना हों। कोर्ट ने भी आंदोलन में शांतिपूर्वक हिस्सा लेने वाले लोगों को प्रोटेक्शन देने की सिफारिश की थी, लेकिन सरकार ने इसका उल्लंघन किया है। वसूली विधेयक में प्रदर्शनकारियों की जवाबदेही और उनसे वसूली का तो प्रावधान है, लेकिन इसमें कहीं भी सरकारी और पुलिस की जवाबदेही तय नहीं की गई।
नए विधेयक पर बहस के दौरान गृहमंत्री अनिल विज ने माना कि किसान आंदोलन के दौरान कोई हिंसा नहीं हुई। इस पर नेता प्रतिपक्ष ने सरकार से पूछा कि अगर खुद गृहमंत्री ऐसा मानते हैं तो सरकार क्यों लगातार निर्दोष किसानों पर मुकदमे दर्ज कर रही है। सरकार को तमाम मुकदमे वापस लेने चाहिए।
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