केरल के कथित ‘लव जिहाद’ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हदिया बालिग है और उसने अपनी मर्जी से शादी की है, इसलिए वह अपने पति के साथ रहने को आजाद है और उसकी शादी की जांच एनआईए नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट ने एनआईए को कहा कि जहां तक लड़के के आपराधिक पृष्ठभूमि का मामला है तो उसकी जांच हो सकती है, लेकिन वह विवाद विवाह से परे है। इस मामले की अगली सुनवाई 22 फरवरी को होगी।
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सुप्रीम कोर्ट में चली सुनवाई के दौरान हदिया ने कहा था कि वह अपने पति शफीन के साथ रहना चाहती हैं। जब जस्टिस चंद्रचूड ने हदिया से भविष्य के सपनों के बारे में पूछा, तो उसने कहा था कि मुझे स्वतंत्रता चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि बालिग को उसके माता-पिता के साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता और हदिया ही अपने विकल्पों पर फैसला ले सकती है।
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हदिया के पिता केएम अशोकन का आरोप था कि उनकी बेटी अखिला अशोकन को गलत तरीके से धर्म परिवर्तन कराया गया। उन्होंने शफीन पर लव जिहाद का आरोप लगाया था। इस पर प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा कि एक व्यस्क व्यक्ति अपना भला-बुरा खुद देख सकता है और हदिया को भी अपने फैसले लेने का अधिकार है।
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सुप्रीम कोर्ट हदिया के पति शफीन जहां की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा है जिसमें केरल हाईकोर्ट ने इनके विवाह को रद्द कर दिया था। हदिया के पिता केएम अशोकन ने केरल हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर शादी रद करने की गुहार लगाई थी। याचिका में शफीन का संबंध आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट से बताया गया था। केरल हाईकोर्ट ने इस शादी को अवैध घोषित करते हुए हदिया को उसके पिता के हवाले करने का आदेश दिया था। अखिला अशोकन उर्फ हादिया ने धर्म परिवर्तन कर शफीन जहां नाम के युवक से निकाह किया था। लेकिन मामले की जांच के दौरान यह सच्चाई सामने आई कि उसने अपने पति से मिलने के बहुत पहले ही धर्म परिवर्तन कर लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि एक कोर्ट किसी के विवाह को कैसे रद्द कर सकता है और वो भी तब जब महिला और पुरुष दोनों वयस्क हैं।
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