हालात

कश्मीर से लौटे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का दावा, पूरी तरह से सैन्य कैद में है घाटी

जम्मू-कश्मीर के दौरे से लौटी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की एक टीम ने अपनी रिपोर्ट में घाटी के हालात को लेकर गहरी चिंता जताई है। रिपोर्ट में मोदी सरकार के तरीकों को अनैतिक बताते हुए कहा गया है कि पूरा कश्मीर इस समय एक कैदखाना बना हुआ है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

मोदी सरकार द्वारा जम्मू और कश्मीर से धारा 370 खत्म कर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के फैसले के बाद घाटी के हालात का जायजा लेने गई मानवाधिककार कार्यकर्ताओं की एक टीम ने अपनी रिपोर्ट में कश्मीर के हालात को भयावह बताया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरा कश्मीर इस समय सैन्य नियंत्रण में एक जेल बना हुआ है। मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर पर लिया गया फैसला पूरी तररह से अनैतिक, असंवैधानिक और गैरकानूनी है। मोदी सरकार द्वारा कश्मीरियों को बंदी बनाने और संभावित विरोधों को दबाने के लिए अपनाए जा रहे तरीके भी पूरी तरह से अनैतिक, असंवैधानिक और अवैध हैं।

अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज, एआईपीडब्ल्यूए की कविता कृष्णन, एआईडीडब्ल्यूए की की मैमूना मोल्ला और एनएपीएम के विमल भाई की टीम ने कश्मीर के दौरे से लौटने के बाद बुधवार को एक रिपोर्ट जारी कर बताया कि राज्य में किस तरह से आम जनजीवन को पूरी तररह से घरों में कैद कर दिया गया है। इतना ही नहीं घाटी में संचार के सभी साधनों पर रोक है और यहां तक कि मीडिया भी पूरी तरह से प्रतिबंधों में है।

इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने रिपोर्ट जारी करते हुए बताया कि उन्होंने कश्मीर में बड़े पैमाने पर यात्रा करते हुए पांच दिन (9-13 अगस्त 2019) बिताए। उन्होंने कहा कि ये दौरा भारत सरकार के अनुच्छेद 370 और 35A को निरस्त करने और जम्मू और कश्मीर राज्य को भंग कर इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के फैसले के चार दिन बाद 9 अगस्त 2019 को शुरू हुआ था।

सरकार से मांग की है कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35A को तत्काल बहाल किया जाए। इसके साथ ही उन्होंने कहा,

  • हम मांग करते हैं कि जम्मू-कश्मीर की स्थिति या भविष्य के बारे में कोई निर्णय उसके लोगों की इच्छा के बिना नहीं लिया जाना चाहिए।
  • हम मांग करते हैं कि राज्य में लैंडलाइन टेलीफोन, मोबाइल सेवा और इंटरनेट समेत सभी संचार साधनों को तत्काल प्रभाव से बहाल किया जाए।
  • जम्मू-कश्मीर से भाषण, अभिव्यक्ति और विरोध की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध को तत्काल प्रभाव से हटाया जाए। राज्य के लोग पीड़ा से भरे हैं और ऐसे में उन्हें मीडिया, सोशल मीडिया, सार्वजनिक समारोहों और अन्य शांतिपूर्ण साधनों के माध्यम से अपना विरोध व्यक्त करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
  • और जम्मू-कश्मीर में पत्रकारों पर जारी प्रतिंबधों को तत्काल हटाया जाए।

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने बताया कि जब वे 9 अगस्त को श्रीनगर पहुंचे, तो उन्होंने शहर को कर्फ्यू से उजड़ा हुआ भारतीय सेना और अर्धसैनिक बलों से अटा हुआ पाया। श्रीनगर की सड़कें खाली थीं और सभी संस्थान और प्रतिष्ठान बंद थे (दुकानें, स्कूल, पुस्तकालय, पेट्रोल पंप, सरकारी कार्यालय, बैंक सभी)। केवल कुछ एटीएम और दवा की दुकानें और पुलिस स्टेशन खुले थे।

उन्होंने बताया कि “हमने पांच दिन घूम-घूम कर श्रीनगर शहर के सैकड़ों आम लोगों के साथ कश्मीर के गांवों और छोटे कस्बों में लोगों से मुलाकात की और उनसे बातचीत की। हमने महिलाओं, स्कूल और कॉलेज के छात्रों, दुकानदारों, पत्रकारों के साथ ही छोटे व्यवसायी, दिहाड़ी मजदूर, श्रमिक और यूपी, पश्चिम बंगाल और अन्य राज्यों से प्रवासियों से भी इस दौरान बात की।हमने वहां कश्मीरी पंडितों और सिखों के साथ ही कश्मीरी मुसलमानों से भी बात की जो घाटी में रहते हैं।

उन्होंने बताया कि इस दौरान हर जगह, लोग हमसे काफी सौहार्दपूर्वक तरीके से मिले। यहां तक कि भारत सरकार के खिलाफ दर्द, क्रोध और गुस्से से भरे होने के बावजूद उन्होंने काफी गर्मजोशी से हमसे बातचीत की। इस दौरान उन्होंने हमसे अपना दर्द साझा किया।

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