काशी का सुप्रसिद्ध अस्सी घाट... इसी घाट पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फावड़ा चलाकर-झाडू लगाकर राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान का शुभारंभ किया था। तबसे लेकर अब तक गंगा की लहरों के साथ सियासत की लहरें भी खूब हिलोरें मार रही हैं। घाट के रास्ते पर चाय की चुस्कियां ले रहे बीएचयू के छात्रों के बीच मौजूदा सियासत पर चल रही बहस में साथी के तर्क पर बीएचयू के छात्र शिवम श्रीवास्तव भड़क उठे और एक साथ ‘बदलते बनारस’ को उंगलियों पर उतार दिया। बोले, सात साल में बनारस ही नहीं बदला, बनारसियों ने खुद को भी बदल डाला।
रोड किनारे दुकानदार अमित और बच्चा यादव भी हां में हां मिलाते हुए बोले, भइया तबके बनारस और अबके बनारस में बहुत अंतर आ गइल हौ..., विश्वनाथ मंदिर बनले के बाद भीड़ बढ़ गइल बा... चार साल पहले इसी जगह दुकान लगावत रहली तब सौ दो रूपया मुश्किल से हाथ में बचत रहल... आज एतना कमा लेत हई कि परिवार अच्छे से चल जात हौ...। ये अलग बात है की पास खड़े राकेश पांडेय बनारस की गलियों की अपनी मौलिकता खोने से खुश नहीं हैं। उनका इशारा काशी विश्वनाथ कोरिडोर की ओर है। वे अस्सी नाले का कोई स्थाई समाधान न निकलने से भी खुश नहीं हैं।
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इन दिनों बनारस की फिजा में गजब का उत्साह दिखायी दे रहा। हर-हर महादेव के साथ हर-हर मोदी की गूंज सुबह से शाम तक बाजारों-चट्टी चैराहों पर सुनाई दे रही। कहते हैं कि महाभारत की अंतिम लड़ाई कुरुक्षेत्र में लड़ी गई। ऐसे में यूपी विधानसभा के अंतिम चरण में होने वाली चुनावी महाभारत का असल रण छठवें और सातवें चरण में आने वाली वाराणसी समेत 10 जिलों की 61 सीटों को माना जा रहा है।
बीजेपी के चक्रव्यूह को भेदने के लिए विपक्ष भी खासी तैयारी में है। वह इस इलाके की ज्यादा से ज्यादा सीटों पर लड़ाई को सीधा और भाजपा के लिए मुश्किल कर देना चाहता है क्योंकि इस दौर के नतीजों के संदेश भी अलग होंगे और संकेत भी। यही कारण है कि अखिलेश यादव-ममता बनर्जी, राहुल गांधी-प्रियंका गांधी सहित तमाम विपक्षी दिग्गजों का यहां 3 से 5 मार्च के बीच जमावड़ा होने जा रहा है।
भाजपा अपने दुर्ग को बचाए रखने की पुरजोर कोशिश में है और इसके लिए स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद मोर्चा सम्भाल रखा है। वह भी इस दौरान वाराणसी में ही रहने वाले हैं। यानी अंतिम चरण का रण ग्रैंड फिनाले की तर्ज पर होने जा रहा है।
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वाराणसी में इस बार सर्वाधिक चर्चा में है शहर दक्षिणी विधानसभा सीट। वजह यह कि पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट काशी विश्वनाथ धाम कोरीडोर के आकार लेने के बाद यह पहला चुनाव है। यह इसी क्षेत्र में आता है। पूरे चुनाव के दौरान भाजपा की रैलियों में इस प्रोजेक्ट की गूंज सुनाई दी। दस दिन पहले तक बनारस में विपक्ष चार विधानसभा सीटों पर शहर दक्षिणी, कैंट, पिंडरा व सेवापुरी में कड़ी चुनौती देता दिख रहा था, लेकिन पीएम मोदी ने बूथ कार्यकर्ताओं के साथ संवाद के दौरान काशी में उनके ‘मृत्यु की कामना’ को लेकर जो बयान दिया, वह माहौल बदलने की बड़ी कोशिश के तौर पर सामने आया है।
2017 के प्रदर्शन को दोहराने के लिए भाजपा ने अपने सभी सियासी पत्ते खोल दिए हैं। अमित शाह से लेकर तमाम दिग्गज नेता यहीं डेरा डाले हुए हैं।
रिटायर्ड शिक्षक सुनील मिश्र कहते हैं जिसने काशी का दिल जीता काशी उसी की हो गई। बाबा विश्वनाथ की नगरी ऐसी ही निराली है। कहते हैं- पहले नरेन्द्र मोदी के ‘मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है’ वाले बयान पर काशी फिदा हो गई थी। वह मानते हैं कि काशी को क्योटो बनाने का दावा भले ही पूरा न हो पाया हो, लेकिन यहां के दैनिक जीवन में तो बड़ा बदलाव आया ही है।
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होटल कारोबारी प्रतिमेश शर्मा कहते हैं कि किसी शहर की जीवनशैली, स्वभाव एवं कार्यव्यवहार को बदलने में कई पीढ़ियां बदल जाती हैं, मगर मोदी के भरोसे एवं विश्वास ने बनारस के लोगों को बदल दिया। तर्क देते हैं कि पहले लोग जहां-तहां पान की पीक फेंक देते थे। कूड़ा फेंक देते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। लोग सचेत हुए हैं। हां, यह सही है कि अभी बहुत कुछ बदलना बाकी है।
मुस्लिम बाहुल्य रेवड़ी तालाब के मो जावेद भी मानते हैं कि काशी विश्वनाथ धाम बनने से हर वर्ग को फायदा मिला। व्यवसाय बढ़ा, हालांकि बुनकरों के लिए सिंगल विंडो सिस्टम की जैसी बात हुई थी, अब भी वैसा नहीं हुआ। हां, पर्यटक जरूर बढ़े हैं और इससे बनारसी साड़ियों की मांग बढ़ी है। दालमंडी के मो असलम साफगोई से कहते हैं कि विश्वनाथ धाम निर्माण को लेकर तो कभी भी मुसलमानों को आपत्ति नहीं रही, क्योंकि ज्ञानवापी मस्जिद जस की तस है।वे मौलिक सुविधाओं पर और काम करने की जरूरत बताते हैं।
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हालांकि इन सब बातों के साथ चुनावी माहौल की जमीन पर नजर डालें तो काशी जितनी सरल है… सहज है… यहां का चुनावी इतिहास उतना सरल-सहज कभी नहीं रहा। काशी सबका इम्तिहान लेती रही है। इस बार भी यह नहीं कहा जा सकता कि पूरा बनारस पीएम मोदी के लिए समर्पित है।
2019 लोकसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि साढ़े तीन लाख लोगों ने मोदी के खिलाफ मतदान किया था। यहां अपनादल (अनुप्रिया पटेल) एवम सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भी ग्रामीण इलाके के विधानसभा क्षेत्र में मजबूत पकड़ है। यही कारण है की शिवपुर विधानसभा सीट पर कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर को सुभाषपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर से चुनौती मिल रही है। वहीं शहर दक्षिणी सीट पर मंत्री नीलकंठ तिवारी को सपा के युवा नेता किशन दीक्षित से खासी कड़ी चुनौती मिल रही है।
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शहरी इलाके की तीनों सीटों पर अल्पसंख्यक के अलावा बंगाली मतदाताओं की बहुतायत है। अखिलेश यादव के साथ ममता बनर्जी इसी क्षेत्र में प्रचार करने वाली हैं। दोनों नेता चार मार्च को इधर रोड शो करेंगे। कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी भी वाराणसी की दो सीटों पर फोकस रखते हुए प्रचार करेंगी। उनकी नजर में पहली सीट पिंडरा है जहां से पांच बार विधायक रहे कद्दावर नेता अजय राय चुनाव लड रहे हैं। अजय राय की यह सीट कांग्रेस के लिए मजबूत दावेदारी वाली मानी जा सकती है। वहीं कैंट सीट पर पूर्व सांसद राजेश मिश्र कांग्रेस के टिकट से प्रत्याशी हैं। यह सीट भी इन दिनों चर्चा में है। कांग्रेस यहां अपने लिए पूर्वांचल की दूसरी बड़ी सम्भावना देख रही है।
राजनीतिक विश्लेषक विजय नारायण कहते हैं पूर्वांचल में इस बार 2017 जैसे सियासी हालात नहीं हैै। पांच साल में जनता के बीच भजपा की क्या छवि रही यह चुनाव उसकी कसौटी होने जा रहा है। बहरहाल, तीन दिनी काशी प्रवास के दौरान पीएम मोदी वाराणसी के सभी आठों विधानसभा सीट की धरा को भाजपा के पक्ष में करने की कोशिश करेंगे। सारी नजरें अब इसी गुणा गणित में हैं कि पीएम की यह कोशिश चुनावी बिसात पर क्या करिश्मा दिखाती है।
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