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कासगंज हिंसा: चंदन गुप्ता की मौत की उलझती गुत्थी

चंदन गुप्ता का वीडियो सामने आने के बाद कासगंज में कई तरह की बातें हो रही हैं। वीडियो के वायरल होने के बाद चंदन गुप्ता के मौत के कारणों पर नए सिरे से बहस होने लगी है। 

फोटो: स्क्रीनशॉट
फोटो: स्क्रीनशॉट चंदन गुप्ता की मौत से जुड़े कई नए पहलू आ रहे हैं सामने

कासगंज हिंसा के मामले में पुलिस ने सलीम जावेद नाम के एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है। वह चंदन गुप्ता की हत्या में नामजद अभियुक्त है। यह मामला हिंसा में मारे गए चंदन गुप्ता के पिता सुभाष गुप्ता की ओर से दर्ज कराया गया था। पूरे मामले में ऐसा दिखाया जा रहा है कि सलीम जावेद ही इस मामले मे मुख्य अभियुक्त है, लेकिन ऐसा नहीं है। सलीम का भाई वसीम इस मामले में मुख्य अभियुक्तों में से एक है। चंदन के परिजनों के मुताबिक, चंदन की मौत वसीम की चलाई गोली से हुई थी। सलीम, वसीम का बड़ा भाई है। 30 जनवरी को इनके घर पर पुलिस ने कुर्की का नोटिस चिपका दिया था। उसके दूसरे दिन यानी 31 जनवरी को सलीम को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। कुछ लोगों का यह भी कहना है सलीम खुद पुलिस के पास गया था। सलीम और वसीम के अलावा उनका तीसरा भाई भी इस मामले में नामजद है।

कासगंज हिंसा मामले में सलीम की गिरफ्तारी से पुलिस को पूरी तरह तो नहीं, लेकिन थोड़ी राहत जरूर मिली है। एडीजीपी अजय आंनद ने कासगंज हिंसा मामले में सलीम को मीडिया के सामने सबसे बड़ी कार्रवाई के तौर पर पेश किया।

सलीम की गिरफ्तारी पर लोगों का कहना है कि यह एक सामान्य कार्रवाई है, इस गिरफ्तारी से यह तय नहीं होता कि चंदन गुप्ता की मौत सलीम की गोली से हुई थी। तीन दिन पहले पुलिस ने सलीम के घर से एक पिस्टल बरामद किया था। पुलिस ने चंदन की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट भी अभी सार्वजनिक नहीं की है।

चंदन गुप्ता का वीडियो सामने आने के बाद कासगंज में कई तरह की बातें हो रही हैं। वीडियो के वायरल होने के बाद यह बहस होने लगी है कि जब हिंदू संगठनों से जुड़े लोग अंधाधुंध गोली चला रहे हैं तो इस बात की पूरी संभावना है कि उन्हीं गोली से चंदन की मौत हुई होगी।

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इस पक्ष को लेकर सोशल मीडिया पर बहस चल रही है। इलाहाबाद के सामाजिक कार्यकर्ता अमरेश मिश्र ने सोमवार को दावा किया था कि चंदन की मौत उसके साथ वाले लड़को की गोली से ही हुई है। यह या तो गलती से हुआ या फिर किसी षड्यंत्र के तहत हुआ। वीडियो के सामने आने के बाद उनका कहना था कि यह तिरंगा यात्रा नहीं थी, बल्कि दंगा कराने के लिए की जा रही यात्रा थी। स्थानीय मुसलमान भी मान रहे हैं कि चंदन की मौत उसके साथियो की ही गोली से हुई। फईम अख्तर कहते है, "बड्डूनगर मोहल्ले मे गोलीबाजी की कोई घटना नहीं हुई, वहां तो नारेबाजी और पथराव हुआ। तहसील रोड पर फायरिंग हुई और अब उसका वीडियो भी सामने आ गया है। सारे गोली चला रहे युवक हिन्दू संगठनों से जुड़े थे। फईम सवाल करते हैं, "कानून को शर्मसार करने वाला मुसलमानों का एक भी वीडियो नहीं है। उनके गलत नारों, पथराव, आगजनी या फायरिंग का कोई सबूत नही है। यह जबरदस्ती मुसलमानों पर थोपा जा रहा बवाल था। उन्हें उकसाया जा रहा था।”

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क्या यह संभव है कि चंदन को किसी 'अपने' की गोली लगी हो? इस मसले पर रईस अहमद कहते हैं, “अब गोली लगी या दंगा कराने के लिए मारी गई, यह हम नहीं जानते। लेकिन यह साफ है हिंदू संगठनों के लड़के बड़े पैमाने पर हथियार लिए हुए थे, जबकि मुसलमानों के पास हथियार नहीं था।” यहां यह जानना जरूरी है कि जिस दिन चंदन गुप्ता की मौत हुई, उसी दिन संकल्प फाउंडेशन के अध्यक्ष अनुकल्प चौहान का एक वीडियो यूट्यूब पर अपलोड किया गया था। इस वीडियो में अनुकल्प ने चंदन की मौत का बदला लेने के लिए मुसलमानों को घर से निकाल कर मारने का ऐलान किया था। अनुकल्प की इस संस्था में चंदन काफी सक्रिय था। अनुकल्प ने दावा किया था कि तिरंगा यात्रा मे सभी लोग निहत्थे थे। जब अनुकल्प यह वीडियो रिकॉर्ड कर रहा था तो कुछ लोग सामने से उसे यह बता रहे थे कि वह क्या कहे। अनुकल्प चौहान ने इस वीडियो मे दूसरे युवक राहुल उपाध्याय के मारे जाने की बात भी कही थी, जो बाद मे झूठी निकली। अगर अनुकल्प से पूछताछ हो तो बहुत सारा सच सामने आ सकता हैं।

चंदन गुप्ता के कत्ल की प्राथमिक जांच इंस्पेक्टर रिपुदमन सिंह कर रहे हैं, हालांकि यह जांच एसआईटी को दी जा सकती है। वे बताते हैं, "हिंदू संगठनों के इन युवाओं की गोलीबाजी की यह हरकत रोजनामचा में दर्ज है और पुलिस की तरफ से रिपोर्ट भी लिखी गयी है।"

हमने कानून के जानकार एडवोकेट जानिशार से यह जानना चाहा कि अगर किसी मुकदमे में किसी कारण से कोई गलत नामजदगी हो जाये तो उसमें क्या हो सकता है? उन्होंने हमें बताया, "अक्सर ऐसा होता रहता है और दबाव और तनाव कों देखकर पुलिस फौरी तौर पर कोई फैसला कर लेती है, मगर बाद में नए तथ्य सामने आने पर पहले गिरफ्तार किये गये आरोपी के पक्ष में 169 की कार्रवाई की जाती हैं और वह रिहा हो जाता हैं।”

कासगंज हिंसा के मामले में ऐसा कहना बहुत जल्दबाजी है, मगर पुलिस को यह ‘अधिकार’ है और वह इसका इस्तेमाल गलत नामजदगी के खिलाफ कर सकती है।

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