प्रधानमंत्री, पार्टी अध्यक्ष, आधे से ज्यादा मंत्रिमंडल, 10 मुख्यमंत्री, 500 सांसद-बीते 45 दिनों से कर्नाटक में डटे रहे। वह भी तब, जब कर्नाटक में उत्तर प्रदेश के मुकाबले आधी सीटें हैं और आबादी और वोटर भी एक तिहाई ही हैं।
तो क्या वजह है कि बीजेपी ने इस चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी? क्या कर्नाटक की जमीनी हकीकत बीजेपी को नजर आ रही है, जिससे संकेत मिलतें हैं कि कर्नाटक के लोग ने नफरत और झूठ की राजनीति को समझ गए हैं?
पहले एक नजर डालते हैं प्रधानमंत्री की रैलियों पर। शुरु में तय था कि प्रधानमंत्री कर्नाटक में 15 रैलियां करेंगे। लेकिन जैसे जैसे चुनाव नजदीक आते गए, सभी ओपीनियन पोल में बीजेपी दूसरे नंबर पर खिसकती नजर आई, रैलियों में हर बड़े बीजेपी नेता का उपहास उड़ने लगा, अनुवादकों ने गुड़ का गोबर किया, पार्टी में टिकट बंटवारे पर सिर-फुटव्वल सामने आने लगा, बीजेपी के हाथ-पांव फूल गए। प्रधानमंत्री को रैलियां बढ़ानी पड़ी, 15 के बजाए 21 रैलियां करना पड़ीं।
उत्तर प्रदेश में 30 करोड़ आबादी और 403 विधानसभा सीटों के लिए पीएम ने 24 रैलियां की थीं, लेकिन कर्नाटक में करीब 7 करोड़ आबादी और 224 सीटों के लिए 21 रैलियां करना पड़ीं।
बीते करीब दो महीने से कर्नाटक में डेरा डाले बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह मठों-मठों घूमकर संतों और महंतों को रिझाते दिखे, और जब इससे भी काम नहीं चला तो बाकायदा रोड शो के नाम पर सड़कों पर उतरना पड़ा। अमित शाह ने 27 रैलियां और 26 रोड शो किए, और कर्नाटक में करीब 50 हजार किलोमीटर की दूरी तय की। इतने से भी जब हालात काबू में आते नहीं दिखे, तो आंधी-तूफान में जान-माल के नुकसान को अनदेखा कर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ समेत करीब 10 मुख्यमंत्रियों को मैदान में उतारा। इतना ही नहीं मोदी सरकार की आधे से ज्यादा कैबिनेट को भी इस चुनावी समर में डुबकी लगाने के निर्देश दिए गए। साथ ही देश भर से करीब 500 सांसद-विधायकों को भी वोटरों को रिझाने के लिए उतारा गया। कुल मिलाकर बीजेपी नेताओं ने 400 से ज्यादा रैलियां या जनसभाएं कीं।
प्रचार खत्म होने की तारीख करीब आते-आते आरोपों का दौर भी शुरु हो गया। लेकिन हालात काबू में आते नहीं दिखे। साम-दाम-दंड-भेद, हर वह हथकंडा अपनाया गया जिसके लिए बीजेपी जानी जाती है। जमीनी स्तर पर काम भले ही नहीं हुआ, लेकिन प्रचार ऐसा किया गया कि गली-गली में कार्यकर्ताओं को घर-घर पहुंचाया जा रहा है। इतना सब होने पर भी सर्वे एजेंसियों को न तो मोदी मैजिक नजर आ रहा है, और न ही कोई लहर।
घबराहट का आलम यह कि केंद्र सरकार को पॉवर हाउस बताने की कोशिश में अनुवादक जला हुआ ट्रांसफार्मर पेश करते दिखे, तो पार्टी अध्यक्ष अपनी ही पार्टी के सीएम उम्मीदवार को सबसे भ्रष्ट बताने लगे। पीएम ने तो एक नया इतिहास ही रच दिया। शहीद भगत सिंह से लेकर जनरल थिमैया और जनरल करियप्पा तक समय से पहले सेनाध्यक्ष और कृष्णा मेनन वक्त से पहले रक्षा मंत्री बना दिए गए।
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ऐन चुनाव के मौके पर कब्र से निकले जिन्ना भी किसी काम न आ सके, और उन्हें वापस कब्र में भेजना पड़ा, हनुमान जी को कन्नड़ साबित किया गया, और जिहाद तो पूरे विमर्श में शामिल रहा ही।
दूसरी तरफ राहुल गांधी ने बहुत पहले से कर्नाटक के माहौल को भांप लिया था। शालीनता के दामन छोड़े बिना उन्होंने राजनीतिक विमर्श की मर्यादा का ध्यान रखा। उन्होंने 20 रैलियां और 40 रोड शो और नुक्कड़ सभाएं की। उन्होंने 55 हजार किमी की यात्रा की। उन्होंने उत्तर प्रदेश में 20 रैलियां और 8 रोड शो किए थे। यूपी में सोनिया गांधी ने प्रचार नहीं किया था, लेकिन कर्नाटक में वे वोट मांगने गईं।
अब प्रचार को शोर थम चुका है, कानाफूसी में रणनीतियों की चर्चा और उस पर अमल की योजनाएं बनाई जा रही हैं। शनिवार को मतदान होगा।
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