‘कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी प्रमुख डी के शिवकुमार के लिए यह सबसे अच्छा बर्थडे गिफ्ट होगा...।’ कर्नाटक में कांग्रेस की शानदार जीत पर टिप्पणी करते हुए यह बात शिवकुमार के एक नजदीकी ने कही। डी के शिवकुमार का बर्थडे 15 मई को है और वे अब 61 साल के हो जाएंगे। शनिवार को आए कर्नाटक विधानसभा चुनाव नतीजों में कांग्रेस ने 136 सीटों के साथ एक मजबूत बहुमत के साथ जीत हासिल की है।
इस तरह सत्तारूढ़ बीजेपी के अजेय होने का भ्रम जो लोगों के मन में बिठा दिया गया था उस पर भी विराम लगा है और 224 सीटों वाली विधानसभा में बीजेपी अब महज 65 सीटों पर सिमट गई है। वहीं त्रिशंकू विधानसभा की उम्मीद में किंगमेकर बनने की जुगत लगाए बैठी एच डी देवेगौड़ा की जेडीएस भी पिछली बार के मुकाबले आधी सीटें हारकर मात्र 19 सीटों पर ही जीत सकी है। इसके अलावा 4 निर्दलीय हैं, जिनकी भी अहमियत अब वह नहीं है जो बहुत कम अंतर से हुई जीत-हार की स्थिति में होती।
लेकिन, जिस तरह के ध्रुवीकरण की कोशिश बीते कुछ वर्षों में बीजेपी ने कर्नाटक में की है उस पर भी एक तरह का पूर्ण विराम भी कर्नाटक में लगा है। संभवत: इसी संदर्भ में कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने मीडिया से अपनी संक्षिप्त बातचीत में कहा कि, “नफरत का बाजार बंद और मुहब्बत की दुकान खुली है...।”
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कर्नाटक में कांग्रेस की जीत उन मुख्य 10 एक्जिट पोल के नतीजों से भी आगे रही है। इनमें से 4 ने तो त्रिशंकू विधानसभा की संभावना जताते हुए कांग्रेस के सबसे बड़ी पार्टी होने का अनुमान लगाया था। 4 एक्जिट पोल ने कांग्रेस पूर्ण बहुमत मिलने का भी अनुमान पेश किया था। इसके अलावा दो में से एक ने कहा था कि बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आएगी जबकि एक ने बीजेपी की जीत का अनुमान लगाया था। इन सभी 10 एक्जिट पोल के नतीजे देखें तो कांग्रेस के खाते में 108, बीजेपी के खाते में 91 और जेडीएस के खाते में 22 सीटें जा सकती थीं।
इस दक्षिण भारत का द्वार कहे जाने वाले कर्नाटक में बीजेपी की हार सिर्फ सत्ता विरोधी लहर का ही नतीजा नहीं है, बल्कि पार्टी की अंदरूनी कलह भी काफी हद तक इसके लिए जिम्मेदार है। बीते तीन दशक में यह पहला मौका है जब लिंगायत समुदाय ने बीजेपी से मुंह मोड़ा है। आमतौर पर लिंगायत समुदाय बीजेपी को एकमुश्त वोट देता आया है। खासतौर से किट्टूर कर्नाटक (मुंबई कर्नाटक), कल्याण कर्नाटक (हैदराबाद कर्नाटकक) और मध्य कर्नाटक में तो लिंगायत समुदाय को काफी प्रभावशाली माना जाता है। माना जा रहा है कि लिंगायत समुदाय के मजबूत नेता बी एस येदियुरप्पा को जुलाई 2021 में मुख्यमंत्री के पद से हटाने से लिंगायत समुदाय बीजेपी से नाराज हो गया था। इस गुस्से की आग में घी का काम किया आरक्षण के गणित में फेरबदल ने जिसे बीजेपी ने अपनी समझ से काफी होशियारी से किया था।
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उधर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा ओल्ड मैसुरु रीजन में दूसरे मजबूत समुदाय वोक्कालिगा को साधने की कोशिश भी नाकाम ही साबित हुई है। इस रीजन में हमेशा से ही मुकाबला कांग्रेस और जेडीएस के बीच रहा है। 2018 के चुनाव में जेडीएस ने इस क्षेत्र की 57 में से अधिकतर सीटों पर जीत दर्ज की थी। लेकिन इस बार कांग्रेस ने इनमें से अधिकतर सीटें उससे छीन ली हैं।
सिर्फ एक ही रीजन ऐसा है जहां बीजेपी को उम्मीद के मुताबिक नतीजे हासिल हुए हैं। और वह है तटीय कर्नाटक। इसी रीजन में बीजेपी कांग्रेस से आगे रही है। बेंग्लुरु शहर की 28 सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी दोनों के बीच मुकाबला कांटे का रहा है। वैसे इस चुनाव में बीजेपी ने गुजरात में पिछले महीनों में हुई अपनी जीत से उत्साहित होकर 75 नए चेहरों को मैदान में उतारा था, लेकिन यह दांव भी फेल हो गया।
नतीजे स्पष्ट होने के बाद मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा भी, “मैं इस हार की जिम्मेदारी लेता हूं। इसके बहुत से कारण हैं और हमर उनका पता लगाकर नए सिरे से लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटेंगे।” उधर बी एस येदियुरप्पा ने भी कहा कि हम आत्ममंथन करें कि आखिर पार्टी की हार के क्या कारण रहे हैं।
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बोम्मई सरकार के कम से कम आठ ऐसे मंत्री हैं जिन्हें अपने समुदाय का दिग्गज माना जाता था। लेकिन वे अपनी सीट नहीं बचा पाए। इनमें बी श्रीरामुलु, गोविंद करजोल, मुरुगेश निरानी, बी सी पाटिल, जे सी मधुस्वामी, वी सोमन्ना, के सुधाकर और एम टी नागराज शामिल हैं।
उधर कांग्रेस की जीत के भी कुछ रोचक पहलू हैं। कांग्रेस ने कई नए क्षेत्रों में पैठ की है, लेकिन उसके लिए बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए लिंगायत नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टर की हार है। शेट्टर ने बीजेपी से टिकट न मिलने पर बीजेपी और संघ दोनों से नाता तोड़कर कांग्रेस का हाथ थामा था। उन्हें कांग्रेस ने हुबली-धारवाड़ सेंट्रल सीट से मैदान में उतारा था लेकिन वे बीजेपी के महेश तेंगिनकई से हार गए।
कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि शेट्टर की हार अप्रत्याशित है क्योंकि वे इस इलाके से 1994 से जीतते रहे थे। हालांकि शेट्टर के कभी मेंटर रहे बीएस यदियुरप्पा को पता था कि शेट्टर हार जाएंगे, उन्होंने तो यहां तक कहा था कि वे अपने खून से लिखकर दे सकते हैं कि शेट्टर चुनाव नहीं जीत पाएंगे। इसके विपरीत अन्य लिंगायत नेता और शेट्टर के साथ ही कांग्रेस में शामिल होने वाले पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी ने आसानी से जीत हासिल की है। उन्होंने विधान परिषद की सदस्यता छोड़कर कांग्रेस का हाथ पकड़ा था।
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चुनावी नतींजों पर प्रतिक्रिया में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि इस जीत से साफ हो गया है कि अगर सब एकजुट होकर लड़े तो कांग्रेस में जीतने की क्षमता है। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि यह मोदी और शाह के खिलाफ जनादेश है। उन्होंने कहा, “मेरे विचार से यह एक अहम चुनाव था। यह 2024 के लोकसभा चुनाव की तरफ बढ़ा पहला कदम है।”
वहीं इन चुनावी नतीजों पर बेहद भावुक हो उठे डी के शिवकुमार ने उन क्षणों को याद किया कि जब उन्हें ईडी ने एक कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया था तो सोनिया गांधी उनसे मिलने आई थीं। उन्होंने कहा कि, “मैंने सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और खड़गे साहब को भरोसा दिलाया था कि मैं कर्नाटक जीतकर दिखाऊंगा।” याद दिला दें कि डी के शिवकुमार को सितंबर 2019 में गिरफ्तार किया गया था और अक्टूबर 2019 में जमानत मिलने के बाद वे जेल से बाहर आए थे। इसके बाद मई 2020 में उन्हें कर्नाटक कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया था।
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इधर जेडीएस खेमे में मिली-जुली प्रतिक्रिया है। कहीं खुशी कहीं गम टाइप का माहौल है। पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी तो चन्नापटना से चुनाव जीत गए, लेकिन उनके पुत्र निखिल पड़ोस की रामानगरम सीट से हार गए। उन्हें कांग्रेस के एच ए इकबाल अंसारी ने शिकस्त दी। निखिल की यह दूसरी चुनावी हार है। वे 2019 के लोकसभा चुनाव में मांडया सीट से निर्दलीय उम्मीदवार और अभिनेता सुमलथा अंबरीश के हाथों हार का मुंह देख चुके हैं।
हासन सीट पर भी कुछ रोचक किस्सा रहा है। इस सीट से देवेगौड़ा की बहु और जेडीएस विधायक रेवन्ना की पत्नी चुनाव लड़ना चाहती थीं, लेकिन उनके बजाए पार्टी कार्यकर्ता एच पी स्वरूप को टिकट दिया गया, जिन्होंने बीजेपी विधायक प्रीतम जे गौड़ा को हराकर जीत दर्ज की है।
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