सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए के सीकरी ने सरकार की पेशकश ठुकरा दी है जिसमें उन्हें सीसैट यानी कॉमनवेल्थ सेक्रेट्रिएट आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल का सदस्य बनाया जा रहा था। जस्टिस सीकरी ने यह कदम उस विवाद के बाद उठाया है जिसमें कहा गया था कि उन्हें यह पद इसलिए मिल रहा है क्योंकि उन्होंने सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा को हटाने के लिए सरकार का साथ दिया।
जस्टिस ए के सीकरी लंदन स्थित सीसैट यानी कॉमनवेल्थ सेक्रेट्रिएट आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के सदस्य नहीं बनेंगे। खबर है कि उन्होंने सरकार के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। सरकार ने करीब एक महीना पहले उन्हें इस पद पर नियुक्त करने की पेशकश की थी और सूत्रों का कहना है कि उन्होंने इसे स्वीकार भी कर लिया था।
लेकिन, एक अंग्रेजी वेबसाइट ने खबर दी कि आलोक वर्मा को सीबीआई से हटाने में सरकार का साथ देने के लिए मोदी सरकार ने तोहफे के तौर पर जस्टिस सीकरी को यह पद दिया है। इसके बाद इस खबर की चौतरफा चर्चा होने लगी। इसी के बाद खबर आ रही है कि जस्टिस सीकरी ने इस पद को ठुकरा दिया है।
गौरतलब है कि सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति और हटाने के लिए जो तीन सदस्यीय उच्चाधिकार प्राप्त कमेटी है उसमें प्रधानमंत्री के अलावा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल हैं। लेकिन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गोगोई ने इस समिति से खुद को अलग करते हुए जस्टिस सीकरी को इस समिति की बैठक में भेजा था, जिसके बाद समिति ने आलोक वर्मा को सीबीआई से हटाने का फैसला लिया था।
खबर है कि जस्टिस सीकरी ने कानून मंत्रालय को पत्र लिख कर सरकार की पेशकश को ठुकरा दिया है। सरकार ने दिसंबर, 2018 में जस्टिस सीकरी से संपर्क कर उन्हें सीसैट में भेजने के बारे में बात की थी और उनकी सहमति के बाद उन्हें सीसैट में भेजने का फैसला किया था।
सीसैट के सदस्यों में कॉमनवेल्थ देशों के प्रतिनिधि होते हैं और उनका चुनाव नैतिकता के आधार पर किया जाता है। सदस्यों की नियुक्ति चार साल के लिए होती है और इसे एक बार बढ़ाया जा सकता है। जस्टिस सीकरी 6 मार्च को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हो जाएंगे।
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