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83 साल के बुजुर्ग के फेसबुक पोस्ट से सहमी झारखंड सरकार, पुलिस ने फरार बता की घर की कुर्की-जब्ती

फादर स्टैन स्वामी ने पत्थलगड़ी अभियान के दौरान आदिवासियों के हक को लेकर फेसबुक पोस्ट लिखा था। झारखंड पुलिस ने इसे देशद्रोह मानते हुए जुलाई 2018 में खूंटी में उनके खिलाफ देशद्रोह और अन्य धाराओं में एफआइआर दर्ज किया था, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है।

फोटोः रवि प्रकाश
फोटोः रवि प्रकाश 

झारखंड पुलिस ने फेसबुक पोस्ट के कारण चर्चित सोशल एक्टिविस्ट फादर स्टैन स्वामी के घर की कुर्की जब्ती की है। यह उनका पैतृक घर नहीं है। रांची के नामकुम इलाके में फादर स्टैन स्वामी ‘बगईचा’ परिसर में रहते हैं, जहां आदिवासियों के लिए स्कूल, कॉलेज और हॉस्टल भी हैं। यहां सैकड़ों आदिवासी युवक-युवतियां रहते हैं। पुलिस की नजर में वे ‘फरार’ हैं, लिहाजा उनके इस निवास स्थान पर कुर्की की कार्रवाई की गई है।

आरोप है कि फादर स्टैन स्वामी ने पत्थलगड़ी अभियान के दौरान आदिवासियों के अधिकारों को लेकर फेसबुक पर पोस्ट किया था। झारखंड पुलिस उसे देशद्रोह का अपराध मानती है। जुलाई 2018 में खूंटी पुलिस ने उनके खिलाफ देशद्रोह और दूसरी धाराओं में एफआइआर दर्ज किया था, जिसे फादर स्टैन स्वामी ने हाईकोर्ट में चुनौती भी दी है। इसी दौरान महाराष्ट्र पुलिस ने भीमा-कोरेगांव मामले में उनके घर की दो बार तलाशी ली और कई-कई घंटों तक पूछताछ भी की गई। तब पुणे पुलिस ने कहा कि फादर स्टैन स्वामी अपने निवास स्थान पर मौजूद थे और पूछताछ के दौरान उन्होंने पुलिस को काफी सहयोग भी किया।

लेकिन झारखंड पुलिस ने उसी समयावधि में उन्हें ‘फरार’ करार देकर खूंटी जिला कोर्ट से कुर्की जब्ती का आदेश हासिल कर लिया। मतलब एक देश के दो राज्यों की पुलिस ने एक व्यक्ति विशेष को लेकर अलग-अलग रिपोर्ट दी। संयोग है कि इन दोनों राज्यों और केंद्र में एक ही दल बीजेपी की सरकारें काम कर रही हैं।

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क्या है पूरा मामला

खूंटी जिले के आदिवासियों ने संविधान की 5वीं अनुसूची के तहत मिले अधिकारों को लेकर पिछले साल कुछ गांवों में पत्थलगड़ी अभियान चलाया था। इन शिलालेखों (पत्थलगड़ी) के माध्यम से आदिवासियों की पुरातन स्वशासन व्यवस्था, ग्रामसभा की सर्वोच्चता और वनाधिकार कानून की वकालत की गई। इस दौरान कुछ गांवों में पत्थलगड़ी महोत्सव आयोजित किए गए। इनमें हजारों आदिवासियों का जुटान हुआ। पुलिस ने इसे रोकने की कोशिशें की, तब उन्हें गांव वालों का भारी विरोध झेलना पड़ा, जिसमें हिंसा की कुछ घटनाएं हुईं और कथित तौर पर पुलिस की गोली से एक आदिवासी युवक की मौत भी हो गई।

उसी दौरान फादर स्टैन स्वामी ने आदिवासियों के अधिकारों की हिफाजत के पक्ष में और पुलिस की कथित दमनात्मक कार्रवाई के खिलाफ फेसबुक पर कुछ पोस्ट लिखे थे। पुलिस ने उसे देशद्रोह का अपराध माना और जुलाई 2018 में उनके और कुछ और लोगों के खिलाफ एपआईआर दर्ज दर्ज कर ली गई। उनके खिलाफ आईटी एक्ट-2000 की धारा 66-ए के तहत भी आरोप लगाए गए हैं, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने साल 2015 में ही निरस्त कर दिया था।

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हाईकोर्ट में चुनौती

83 साल के बुजुर्ग फादर स्टैन स्वामी और दूसरे लोगों ने इस एफआईआर को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। अगस्त 2018 में इस एफआईआर को खारिज करने की अपील की गई। हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान ही खूंटी पुलिस ने इनकी गिरफ्तारी का आदेश मांगा और खूंटी जिला कोर्ट ने विगत 19 जून को पुलिस की दलील के आधार पर वारंट भी जारी कर दिया। यह वारंट आइपीसी की धारा-73 के तहत जारी किया गया।

लेकिन कानूनी जानकारों ने बताया कि धारा-73 के तहत वारंट तभी किया जाता है, जब अभियुक्त फरार हो या गिरफ्तारी से बचने का प्रयास कर रहा हो। क्योंकि इसी दौरान पुणे पुलिस फादर स्टैन स्वामी से मिलती रही थी, लिहाजा सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस वारंट की वैधता पर ही सवाल उठाए हैं। इनका तर्क है कि जब झारखंड पुलिस की मौजूदगी में महाराष्ट्र पुलिस ने फादर स्टैन स्वामी के घर पर छापा मारा, तब स्टैन स्वामी के फरार होने का मामला कैसे बनता है।

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फोटोः रवि प्रकाश

पुलिस कार्रवाई का विरोध

कई सामाजिक संगठनों के समूह झारखंड जनाधिकार महासभा ने पुलिस कार्रवाई की निंदा की है। चर्चित सोशल एक्टिविस्ट सिराज दत्ता ने कहा कि फादर स्टैन स्वामी कई सालों से आदिवासी और अन्य वंचित समूहों के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने विस्थापन, कंपनियों द्वारा संसाधनों की लूट, विचाराधीन कैदियों की स्थिति, पेसा कानून और वनाधिकार कानून को लेकर काम किया है। वे भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन की सरकारी कोशिशों का विरोध करते रहे हैं। इसलिए पुलिस उनके खिलाफ कथित झूठे आरोपों में कार्रवाई कर रही है। इसका विरोध होना चाहिए। उन्होंने कहा कि झूठे आरोपों के तहत की गई एफआईआर को रद्द कर खूंटी पुलिस के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।

ज्यां द्रेज का तर्क

सामाजिक संगठनों का आरोप है कि पत्थलगड़ी को संविधान की गलत व्याख्या बोलकर झारखंड पुलिस ने करीब 30,000 आदिवासियों पर विभिन्न थानो में देशद्रोह के आरोप में रिपोर्टे दर्ज कर रखा है। विगत जुलाई में राजभवन पर इसके खिलाफ हुए धरना को संबोधित करते हुए मशहूर सोशल एक्टिविस्ट और अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा था कि पत्थलगड़ी मुहिम के प्रति झारखंड सरकार का रवैया आदिवासियों की वाजिब और अहिंसक मांगों के प्रति असंवेदनशीलता को दर्शाता है। खूंटी में आदिवासियों की स्वशासन परंपरा का संरक्षण किया जाना चाहिए और उससे सीखना चाहिए।

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स्टैन स्वामी की प्रतिक्रिया

फादर स्टैन स्वामी ने बातचीत में कहा था कि सरकार उन्हें देशद्रोही कहती हैं, क्योंकि वह सरकार की गलत नीतियों के खिलाफ चल रहे जनसंघर्ष में शामिल हैं। जनता को जगा रहे हैं। उन्होंने कहा, “हमलोग दरअसल अपराधी बन दिए गए हैं। लेकिन, एनफ इज एनफ। अब अगर आप (मीडिया) और हम (सिविल सोसाइटी) चुप रहेंगे, तो देश विनाश की ओर चला जाएगा। हम चुप नहीं बैठ सकते। अपनी आवाज और तेज करने की जरुरत है। नहीं तो लोकतंत्र नहीं बचेगा।”

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कौन हैं स्टैन स्वामी

तमिलनाडु में जन्मे स्टेन स्वामी तीन दशक से झारखंड में रहकर आदिवासियों और दलितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं। वे मूलतः एक पादरी हैं, लेकिन अब चर्च में नहीं रहते। समाजशास्त्र के छात्र रहे स्टेन स्वामी की शुरुआती पढ़ाई चेन्नई और तमिलनाडु के दूसरे शहरों में हुई। बाद में वे फिलीपींस चले गए। पढ़ाई के सिलसिले में उन्होंने दुनिया के दूसरे देशों की भी यात्राएं की। इसके बाद उन्होंने इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट (बेंगलोर) के साथ काम किया। इसके बाद वे झारखंड चले आए।

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