भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को 1 अप्रैल को उस वक्त धक्का लगा, जब तीन दिन पहले छोड़े गए संचार उपग्रह जीसैट-6ए से अंतरिक्ष एजेंसी इसरो का संपर्क टूट गया। जीसैट-6ए को जियोसिन्क्रोनस उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) से 29 मार्च को अंतरिक्ष में भेजा गया था। इसरो ने एक बयान में कहा, "प्रक्षेपण के काफी समय बाद उपग्रह रविवार को जब जियोस्टेशनरी यानी भू-स्थिर कक्षा में प्रवेश के अंतिम दौर में था, तभी उससे संपर्क टूट गया।"
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बेंगलुरू से करीब 180 किलोमीटर दूर कर्नाटक के हसन में अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रमुख नियंत्रण केंद्र (एमसीएफ) के कुशल संचालन में उपग्रह को कक्षा में प्रवेश कराने का इरादा था।
इसरो की ओर से जारी बयान में कहा गया, "उपग्रह के साथ संपर्क स्थापित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।"
आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा में इसरो की रपट से प्रोग्राम का कॉपीबुक लांच किए जाने के बाद जीएसएलवी-एमक-2 द्वारा 29 मार्च को उपग्रह को जियोसिनक्रोनस स्थानांतरण कक्षा में स्थापित किया गया जिसके बाद इसे तीन कक्षा प्रक्षेपण के बाद अंतिम रूप से जियोस्टेशनरी कक्षा में प्रवेश दिलाना था।
इसके बाद ही संचार संपर्क दोबारा स्थापित किया जा सकता है और उपग्रह को वांछित कक्षा में स्थापित किया जा सकता है।
10 साल तक कार्य करने वाले इस उपग्रह का भार 2 हजार किलोग्राम है। इसके प्रक्षेपण का मुख्य मकसद उपग्रह आधारित मोबाइल एप्लीकेशंस के उपयोग में आने वाली प्रौद्योगिकी विकसित करने का एक मंच हासिल करना था।
इससे पहले 2015 में छोड़े गए जीसैट-6 की कमी को पूरा करते हुए जीसैट-6ए बिंदुवार संचार के लिए प्रौद्योगिकी प्रदान करने में मदद करने वाला था।
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