जब संसद सत्र चल रहा होता है और उसकी कार्यवाही का सीधा प्रसारण संसद टीवी पर होता है और रियल टाइम में ही सोशल मीडिया पर शेयर किया जाता है, तो संसद में बहस के दौरान कही गई कुछ बातों को कार्यवाही के रिकॉर्ड से निकाल दिए जाने का क्या अर्थ है भी या यह अर्थविहीन है।
मंगलवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की अनुपस्थिति में सदन का संचालन कर रहे स्पीकर जगदम्बिका पाल ने जब तक यह ऐलान किया कि बीजेपी सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर द्वारा राहुल गांधी की जाति को लेकर की गई टिप्पणी को संसद की कार्यवाही के रिकॉर्ड से निकाल दिया जाएगा, तब तक तो वह बयान वायरल चुका था। जहां उदारवादी लोग अनुराग ठाकुर के बयान पर घोर आपत्ति दर्ज करा रहे थे, वहीं बीजेपी समर्थक उनके समर्थन में भी उतर चुके थे और तारीफें कर रहे थे। उनका तर्क था कि अगर राहुल गांधी पत्रकारों से उनकी और चैनल मालिकों की जाति पूछ सकते हैं तो अगर लोकसभा में विपक्ष के नेता की जाति अनुराग ठाकुर ने पूछ ली तो क्या गुनाह कर दिया।
अनुराग ठाकुर के बयान का जोरदार विरोध लोकसभा में ही समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने किया था। वे पूर्व केंद्रीय मंत्री के इस कथन बेहद नाराज थे और उन्होंने कहा आखिर किसी भी सांसद की जाति कैसे कोई पूछ सकता है। बुधवार को पत्रकारों से बातचीत में अखिलेश ने एक प्रसंग का हवाला देते हुए कहा, “मैं कभी नहीं भूल सकता कि कैसे समाज की कुछ ताकतें मुझे हवन पूजन से रोक रही थीं। मैं वह दिन कभी नहीं भूल सकता कि कैसे (उत्तर प्रदेश में) मुख्यमंत्री आवास को गंगाजल से धोया गया था। क्या संसद में किसी सदस्य की जाति पूछी जा सकती है?”
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अखिलेश यादव ने अपने बयान में यह भी कहा कि ऐसा लगता है कि शायद अनुराग ठाकुर से कहा गया है कि 99 बार गाली खाकर आओ सदन में तब मंत्री बन सकते हो।
इस पूरे विवाद की आग में घी का काम किया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान ने जो उन्होंने सोशल मीडिया एक्स पर पोस्ट किया। उन्होंने अनुराग ठाकुर के भाषण का गैर संपादित वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा कि “मेरे युवा और उत्साही साथी अनुराग ठाकुर का यह भाषण सुनने लायक है। यह तथ्य और व्यंग्य के मिश्रण के साथ ही और इंडी अलायंस की गंदी राजनीति को उजागर करने की एक शानदार मिसाल है।”
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अनुराग ठाकुर के आपत्तिजनक बयान को प्रधानमंत्री की सहमति मिलना और उस पर मुहर लगाए जाने से उदारवादी लोग और विपक्षी नेता बेहद नाराज हैं। उनका कहना है कि राजधानी दिल्ली में बरसात का पानी एक बेसमेंट में भरने से तीन छात्रों की मौत पर प्रधानमंत्री चुप्पी ओढ़ लेते हैं या कश्मीर में शहीद होने वाले जवानों को लेकर कुछ नहीं कहते, लेकिन अनुराग ठाकुर के आपत्तिजनक 50 मिनट के भाषण को सुनने का उनके पास वक्त है।
यहां सवाल है कि बयान के जिस हिस्से को सदन की कार्यवाही से हटाने का ऐलान कर दिया गया है उसे प्रधानमंत्री द्वारा सार्वजनिक रूप से शेयर करना क्या विशेषाधिकार हनन का मुद्दा नहीं बनता? क्या प्रधानमंत्री ने यह इसका खुलेआम उल्लंघन नहीं किया है? क्या बीजेपी सांसद द्वारा नेता विपक्ष पर की गई अपमानजनक भाषा को प्रधानमंत्री अपनी सार्वजनिक सहमति दे रहे हैं?
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पीएम के इस कदम से जहां मोदी समर्थक उछल रहे हैं वहीं विपक्ष और उनके आलोचक इसे प्रधानमंत्री के स्तर पर बेहद गिरावट वाला कदम ठहरा रहे हैं। राज्यसभा सांसद और कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने प्रधानमंत्री द्वारा इस भाषण को शेयर किए जाने पर गहरी आपत्ति दर्ज कराई है।
उन्होंने एक्स पर लिखा, “यह भाषण जिसे नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री 'अवश्य सुनने' वाला बता रहे हैं, इसमें इनके सांसद ने बेहद ही अपमानजनक, असंवैधानिक और निंदनीय बातें कही है। इसे शेयर करके प्रधानमंत्री ने संसदीय विशेषाधिकार के गंभीर उल्लंघन को प्रोत्साहित किया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने एक सांसद और विपक्ष के नेता से उनकी जाति पूछकर संसदीय चर्चा के स्तर को और नीचे गिराया है। विपक्षी दलों के विरोध पर, अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने सांसदों को आश्वासन दिया कि भाषण के उन अंशों को हटा दिया जाएगा (34:40)। सभी संसदीय मानदंडों से हटकर - संसद की कार्यवाही के रिकॉर्ड से हटाए गए भाषण के अंश को एडिट ओर अपलोड किया जाता है, संसद टीवी ने अनएडिटेड भाषण अपलोड किया, और नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री ने इसे सार्वजनिक रूप से शेयर करते हुए इसकी तारीफ की है। यह भारत के संसदीय इतिहास में एक नई और शर्मनाक गिरावट है। यह गहरी जड़ें जमा चुके बीजेपी-आरएसएस और नरेंद्र मोदी के जातिवाद को दर्शाता है।”
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इसी बारे में दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और स्तंभकार अपूर्वानंद ने भी एक्स पर लिखा है। उन्होंने लिखा है कि, “सभी भारतीय बात का मतलब जानते हैं जब कोई कहता है कि "जो अपनी जाति नहीं जानता!" केवल एक उच्च जाति का व्यक्ति ही इतना नीचे गिर सकता है कि वह ऐसी टिप्पणी करे। आखिरकार वह अपनी जाति और स्थिति के साथ ही उसकी सर्वोच्चता के बारे में भी बेहद आश्वसत है। बीजेपी में ऐसे ही लोग नजर आते हैं।”
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जहां तक बात राहुल गांधी की है तो वे जाति का हवाला सिर्फ सामाजिक न्याय के संदर्भ में देते हैं ताकि लोगों को सशक्त किया जा सके और उनके साथ नाइंसाफी न हो। यह जाति को एक गाली की तरह इस्तेमाल करना या किसी का अपमान करने के लिए इस्तेमाल नहीं करते हैं। और जरूरत इसी फर्क को समझने की है।
इस बारे में सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीति विज्ञानी सुहास पलशिकर ने भी विचार रखे हैं। उन्होंने लिखा है कि, ‘राहुल गांधी को तो ऐसे लोगों को समझाना चाहिए कि अंतर-धार्मिक या अंतर-जातीय विवाहों से जन्म लेने वाले बच्चे जाति और धर्म से आगे बढ़कर समाज के बारे में सोचते हैं। सामाजिक समूहों को एक साथ मिलाने से उनके सहअस्तित्व में काफी आसानी होती है।’
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लोकसभा में अनुराग ठाकुर के ‘हटाए गए’ अपशब्दों का प्रधानमंत्री द्वारा समर्थन किए जाने को लेकर सोशल मीडिया पर और भी तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। मसलन लोग पूछ jहे हैं कि "एक घृणित भाषण का प्रधानमंत्री द्वारा समर्थन करने के परिणामों के बारे में सोचा है क्या कि यह कितना क्रूर हो सकता है। वहीं कुछ ने लिखा है कि लगातार हो रही रेल दुर्घटनाओं पर एक भी ट्वीट नहीं लेकिन आपत्तिजनक भाषण को शेयर कर रहे हैं।
लोगों ने यह भी पूछा कि क्या आप भूल गए कि आप प्रधानमंत्री हैं? आपकी प्राथमिकताएँ किस प्रकार की हैं? विपक्ष के नेता की जाति के बारे में पूछना क्या आपके लिए हास्य है?
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