भारतीय हॉकी टीम को पेरिस ओलंपिक में जब बेल्जियम और आस्ट्रेलिया के साथ पूल मिला तो इसे ‘पूल ऑफ डैथ’ कहा गया। लाजमी भी था क्योंकि मौजूदा पीढी ने तो कभी ओलंपिक में आठ बार की चैम्पियन भारत को आस्ट्रेलिया से जीतते देखा ही नहीं था। लेकिन पेरिस ओलंपिक के आखिरी पूल मैच में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मिली 3-2 से जीत ने पिछले 52 साल के इंतजार को ही खत्म नहीं किया बल्कि कई अहम मुकाबलों में शर्मनाक हार से मिले जख्मों पर भी मरहम लगा दिया।
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इसी आस्ट्रेलिया ने भारत को उसकी धरती पर 2010 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों के फाइनल में 8-0 से हराया था तो दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में बैठे दर्शकों का दिल टूट गया था। बर्मिंघम में 2022 राष्ट्रमंडल खेलों के फाइनल में जब आस्ट्रेलिया ने 7-0 से जीत दर्ज की तो दिल्ली की यादें ताजा हो गईं। इससे पहले टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने से पहले पूल मैच में भारत को आस्ट्रेलिया ने 7-1 से हराया था। गोलकीपर पी आर श्रीजेश, कप्तान हरमनप्रीत सिंह, मिडफील्डर मनप्रीत सिंह समेत 11 खिलाड़ी टोक्यो में उस टीम में थे और आज पेरिस में उन्होंने राहत की सांस ली होगी।
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ओलंपिक के इतिहास की बात करें तो भारत इस मैच से पहले 11 मैचों में सिर्फ तीन बार आस्ट्रेलिया को हरा सका था और सिडनी ओलंपिक 2000 में पूल मैच 2-2 से ड्रॉ खेला था। वहीं विश्व कप में भारत को आस्ट्रेलिया पर एकमात्र जीत 1978 में ब्यूनस आयर्स में मिली है। पांच सितंबर 1960 को रोम ओलंपिक में क्वार्टर फाइनल मैच में 84वें मिनट में रघबीर सिंह भोला के गोल के दम पर भारत ने आस्ट्रेलिया को हराया था। फाइनल में भारतीय टीम पाकिस्तान से एक गोल से हार गई थी।
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इसके बाद 1964 में टोक्यो खेलों में प्रीतपाल सिंह के दो और मोहिंदर लाल के एक गोल की मदद से भारत ने सेमीफाइनल में आस्ट्रेलिया को 3-1 से शिकस्त दी थी। इस बार फाइनल में भारत ने पाकिस्तान को हराकर खिताब जीता। वहीं 1972 के म्युनिख ओलंपिक में भारत ने पूल मैच में आस्ट्रेलिया को 3-1 से हराया और तीनों गोल मुखबैन सिंह ने दागे थे। भारत ने इन खेलों में कांस्य पदक जीता था।
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इसके बाद से लगातार ओलंपिक में आस्ट्रेलियाई टीम का भारत पर दबदबा रहा। उसने 1968 मैक्सिको खेलों में भारत को सेमीफाइनल में, 1976 मांट्रियल खेलों में पूल चरण में, 1984 लॉस एंजिलिस, 1992 बार्सीलोना, 2004 एथेंस और 2021 टोक्यो ओलंपित खेलों में भारत को पूल चरण में हराया। इसके अलावा 1976 और 2000 ओलंपिक में मुकाबले ड्रॉ रहे थे।
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पेरिस ओलंपिक में भारत का आगे का सफर कैसा रहता है, यह तो वक्त ही बतायेगा लेकिन इस जीत को भारतीय हॉकी के इतिहास में हमेशा याद रखा जायेगा। विरोधी के रसूख से डरे बिना बेखौफ खेलने वाले युवा खिलाड़ियों को, अपना आखिरी टूर्नामेंट खेल रहे महान गोलकीपर को, मोर्चे से अगुवाई करने वाले कप्तान को और खिलाड़ियों को मानसिक रूप से मजबूत बनाने वाले कोच को भी यह शानदार जीत याद रहेगी।
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