वैश्विक भुखमरी सूचकांक में पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका से भी भारत पिछड़ गया है। 121 देशों की सूची में 107वें पायदान पर भारत आ गया है। इसके साथ ही भारत का जीएचआई स्कोर भी गिर गया है - 2000 में यह 38.8 था जो 2014 और 2022 के बीच 28.2 - 29.1 के बीच पहुंच गया है।
भूख और कुपोषण पर नजर रखने वाले ग्लोबल हंगर इंडेक्स की वेबसाइट ने जानकारी दी कि चीन, तुर्की और कुवैत सहित 17 देशों ने 5 से कम जीएचआई स्कोर के साथ शीर्ष स्थान हासिल किया है। यह रिपोर्ट आयरलैंड की कन्सर्न वर्ल्डवाइड और जर्मनी की संस्था वेल्ट हंगर हिल्फे जारी करती है। शनिवार को यह रिपोर्ट जारी की गई। पिछले साल भारत 116 देशों में 101वें स्थान पर रखा गया था।
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रिपोर्ट पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया
कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के 8 साल में 2014 के बाद से हमारा स्कोर खराब हुआ है। उन्होंने पूछा, "माननीय प्रधान मंत्री कब बच्चों के बीच कुपोषण, भूख और लाचारगी जैसे वास्तविक मुद्दों का समाधान करेंगे?"
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रिपोर्ट पर सरकार ने क्या कहा?
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने भारत में आंगनवाड़ी और गरीबों के लिए मुफ्ता अनाज कार्यक्रम जैसे विशाल कार्यक्रम का हवाले देते हुए एक कड़ा बयान जारी करते हुए शनिवार को जारी इस रिपोर्ट पर कहा, ‘ भारत की छवि को धूमिल या कलंकित करने के लिए निरंतर किया जा रहा कुटिल प्रयास एक बार फिर स्पष्ट नजर आ रहा है जिसमें देश को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में दिखाने का प्रयास है जो अपनी आबादी की खाद्य सुरक्षा और पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है।” सरकार ने पिछले वर्ष की रिपोर्ट की भी कड़ी आलोचना की थी।
मंत्रालय ने कहा है, “ ऐसा प्रतीत होता है कि गलत सूचना फैलाना ही हर साल जारी किए जाने वाले ‘वैश्विक भुखमरी सूचकांक’ का विशिष्ट उद्देश्य है। वैश्विक भुखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में शामिल अल्पपोषण के अलावा तीन अन्य संकेतक मुख्य रूप से बच्चों से संबंधित हैं जिनमें बच्चों के विकास में कमी, किसी अंग का कमजोर रह जाना और 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर। मंत्रालय का कहना है कि ये संकेतक भूख के अलावा पेयजल, स्वच्छता, आनुवंशिकी, पर्यावरण और भोजन के उपयोग जैसे विभिन्न अन्य कारकों के जटिल संयोग के परिणाम हो सकते हैं।”
बयान में कहा गया है, “बच्चों के मुख्य रूप से स्वास्थ्य संकेतकों से संबंधित संकेतकों के आधार पर भूख की गणना करना न तो वैज्ञानिक है और न ही तर्कसंगत। अल्पपोषित आबादी के अनुपात (पीओयू) का चौथा और सबसे महत्वपूर्ण संकेतक अनुमान दरअसल सिर्फ 3000 प्रतिभागियों के बहुत छोटे नमूने पर किए गए एक जनमत संग्रह पर आधारित है।”
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किस-किस रिपोर्ट को गलत बताएगी सरकार?
जैसे ही यह रिपोर्ट सामने आई सरकार और उसके मंत्री इस रिपोर्ट को गलत बताने में जुट गए। लेकिन अब तक भारत को लेकर गरीबी से जुड़े जो भी रिपोर्ट सामने आए हैं वह परेशान करने वाले हैं। सवाल यह है कि सरकार किस-किस रिपोर्ट को झुठलाएगी और गलत बताएगी?
हाल ही में गरीबी को लेकर विश्व बैंक की एक रिपोर्ट सामने आई थी। रिपोर्ट में दुनिया में गरीबी को लेकर हालत बयान की गई है। रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया गरीबी को खत्म करने को लेकर बहुत पीछे चल रही है। विश्व बैंक की नई रिपोर्ट में पता चला है कि साल 2020 में महामारी की वजह से दुनिया भर में 71 मिलियन लोगों को अत्यधिक गरीबी ओर धकेल दिया गया और इनमें से लगभग 79 फीसदी लोग भारत से थे।
केंद्र सरकार खुद यह बता चुकी है उसने कोविड महामारी के दौरान 80 करोड़ लोगों को अनाज बांटा। इसका मतलब तो यह भी निकाला जा सकता है कि यह वही लोग थे जो कोविड महामारी के दौरान गीरीब के उस स्तर पर पहुंच गए थे कि वह दो जून की रोटी का भी इंताजम नहीं कर पा रहे थे। ऐसे में सरकार को अनाज बांटना पड़ा था, ताकि यह गरीब लोग भूखे न मरे। कोविड के दौरान देश में करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए थे। देश में बेरोजगारी चरम पर है। ऐसे में जो आकंड़े सामने आए हैं वह हकीकत की ओर इशारा कर रहे हैं, लेकिन सरकार मानने को तैयार नहीं है।
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