एक राष्ट्र के तौर पर हम स्वतंत्रता के 75 साल पूरे कर रहे हैं। ऐसे में यह वक्त है ठहरकर यह सोचने का कि इन 75 वर्षों की इस यात्रा के दौरान हमने क्या खोया और क्या पाया। महात्मा गांधी आज होते तो देश की आज की हालत देखकर उनके मन में क्या विचार आते? नीचे दी गई समित दास की यह कलाकृति हमारी अंतरात्मा से शायद यही सवाल कर रही है।
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यह भी सोचने का वक्त है कि जवाहरलाल नेहरू जिन्हें गांधीजी ने आजाद भारत की अनजान और मुश्किल भरी यात्रा में देश को रास्ता दिखाने की जिम्मेदारी सौंपी, जिन पंडित नेहरू ने ‘नेशनल हेरल्ड’ और ‘नवजीवन’ अखबारों को शुरू किया और इसे भविष्यदर्शी टैगलाइन दी - आजादी खतरे में है, इसे अपनी पूरी ताकत लगाकर बचाएं, अगर वे आज होते तो उनके दिलोदिमाग में क्या सवाल पैदा होते।
आजादी की सालगिरह पर हमने कुछ जाने-माने भारतीयों से इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश की कि ‘आज हम कितने आजाद हैं?’ उनके विचार देश में एक नई शुरुआत की पृष्ठभूमि तैयार करते दिख रहे हैं। इन विचारों को एक श्रृंखला के तौर पर हम आपके सामने लेकर आ रहे हैं। हम आपको इन विचारों से लेखों के माध्यम से रूबरू कराएंगे।
हम 13 अगस्त से अगले एक सप्ताह तक हम आपके सामने पेश करेंगे निम्नलिखित लेखकों, विचारकों और पत्रकारों के लेख:
साहित्यिक आलोचक और मराठी, अंग्रेजी और गुजराती में लिखने वाले लेखक गणेश देवी का लेख : सिर उठाता राष्ट्रवाद और कमजोर होता लोकतंत्र
कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी का लेख : गायब होती जा रही है आजादी
समकालनी आलोचक और लेखक पुरुषोत्तम अग्रवाल का लेख : जिंदा लाशों को आजादी की क्या जरूरत
पत्रकार और लेख सुधीन्द्र कुलकर्णी का लेख - हम शुरू करेें बहुआयामी स्वतंत्रता की मांग
पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद का लेख : मुश्किल मेें आजादी
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े का लेख: हम अपने भाग्य के विधाता
लेखक नदीम हसनैन का लेख : लोकतंत्र और बहुसंख््यकवाद का भेद
कत्थक नृत्यांगना और लेखिका लीला सैमसन का लेख : हमें जागना होगा, नहीं तो नृत्य थम जाएगा
जेएनयू के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार का लेख : जो आजादी हासिल है, उसे कैसे रखें महफूज
समाजसेवी, पत्रकार और लेख आकार पटेल का लेख: हम अब भी आजाद क्यों हैैं?
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