26 जून को पेट्रोल का भाव 80.13 रुपये प्रतिलीटर हो गया है जबकि डीजल का 80.19 रुपए प्रति लीटर। पिछले एक साल के दौरान कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत 20 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से लेकर 42 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल पर मंडराती रही है- फिर भी, यह 2014 में 107 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से काफी कम रही है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल कीमतों में कमी का फायदा पिछले छह साल के दौरान भारतीय उपभोक्ताओं को नहीं मिला है।
पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों का लगभग दो तिहाई हिस्सा केंद्र और राज्यों के टैक्स में चला जाता है। लगभग 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सा केंद्र को जाता है और शेष वैट के तौर पर राज्यों को जाता है। वस्तुतः, पेट्रोल पर टैक्स का हिस्सा 64 प्रतिशत तक है। भारत शोधित पेट्रोल और डीजल का निर्यात भी करता है। अपनी शोधन क्षमता और तेल उत्पादक देशों और सुदूर पूर्व के बीच दूरी की वजह से भारत हांगकांग, सिंगापुर और मलेशिया को पेट्रोलियम पदार्थों का निर्यात 40 रुपये प्रति लीटर से भी कम दर पर करता है क्योंकि निर्यात मूल्य में टैक्स शामिल नहीं हैं।
इन वर्षों के दौरान डीलरों का कमीशन लगभग स्थिर रहा है। कीमतों में बढ़ोतरी का सबसे ज्यादा लाभ केंद्र सरकार को मिला है। जीएसटी से अपेक्षित राजस्व नहीं मिल रहा है और लॉकडाउन ने राजस्व उगाहने की गतिविधियों पर रोक लगा दी है, ऐसे में, धन की कमी से जूझ रही केंद्र सरकार ने कुछ राजस्व उगाहने के लिए पेट्रोलियम कीमतों को आसान रास्ता मान लिया लगता है।
लेकिन केरल के वित्त मंत्री थॉमस इसाक ने इसे ’महामारी के पीछे छिपी लूट’ बताते हुए निंदा कर न सिर्फ सवाल खड़े किए हैं बल्कि यह भी पूछा है कि कहीं लगातार मूल्य वृद्धि के पीछे कोई छिपा हुआ षड्यंत्र तो नहीं है। उन्होंने ट्वीट किया है किः तेल कंपनियों का लगातार 17वें दिन भी कीमतों में बढ़ोतरी कर कुल मिलाकर डीजल में 9.50 रुपये और पेट्रोल की कीमतों में 8.50 रुपये की वृद्धि करने के पीछे इरादा क्या है? वे लोग तेल कंपनियों के निजीकरण की तैयारी कर रहे हैं। आखिर, जिबह करने से पहले बकरे को मोटा- ताजा किया ही जाना पड़ता है।
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जैसी कि आम बात है, बीजेपी त्वरित टिप्पणी के तौर पर विपक्ष- शासित राज्यों से लोगों को राहत देने के लिए वैट कम करने के लिए कह रही है। ठीक है कि जून में कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में बढ़ोतरी हुई, पर अपने यहां तो तेल की कीमतें 2014 से ही बढ़ रही हैं। इस तरह कीमतों में लगातार बढ़ोतरी का फायदा राज्यों को हुआ है लेकिन कुछ राज्यों ने ही पेट्रोलियम पर वैट में एकतरफा बढ़ोतरी की है।
2012-14 की अवधि में भी अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतें आसमान छू रही थीं और वह 140 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल तक हो गई थी। लेकिन उस समय लोग और मीडिया सरकार के प्रति जिस तरह आक्रामक थे, इस बार उस तरह नहीं है। बढ़ती कीमतों और अंतरराष्ट्रीय दाम पर इन दिनों किसी चैनल पर प्राइम टाइम बहस नहीं होती। यूपीए सरकार के दौरान बीजेपी समेत तमाम विपक्षी दल इस मुद्दे पर धरना-प्रदर्शन, बयानबाजी लगातार कर रहे थे, पर इस वक्त कांग्रेस को छोड़कर तमाम विपक्षी पार्टियां चुप हैं। जबकि जो हाल है, उससे समझा जा सकता है कि संकट कितना बड़ा है।
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देश में लाखों ट्रक चालकों के संगठन- ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआईएमटीसी) का कहना है कि तेल कीमतों में लगातार बढ़ोतरी और चालकों की कमी की वजह से करीब 65 प्रतिशत ट्रक खड़े हैं। ये चालक लॉकडाउन के दौरान अपने-अपने घर चले गए और अब लौटने को लेकर अनिच्छुक हैं। संगठन के अध्यक्ष कुलतरण सिंह अटवाल ने एक समाचार एजेंसी से कहा भीः ट्रकों का चलना लगातार अलाभकारी होता जा रहा है क्योंकि ट्रक चलाने पर 60 प्रतिशत हिस्सा तो डीजल की कीमतों को जाता है जबकि 20 फीसदी टोल टैक्स में लग जाता है। मांग पहले से ही कम है।
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2014 से पहले आलोचना करते हुए बीजेपी नेता तरह-तरह के बयान दे रहे थे, तरह-तरह से धरना-प्रदर्शन कर रहे थे। उन पुराने बयानों वीडियो क्ल्प्सि के साथ तरह-तरह की टिप्पणियां इन दिनों सोशल मीडिया में छाई हुई हैं। अब प्रकाश जावड़ेकर और स्मृति ईरानी केंद्रीय मंत्री हैं। लेकिन यूपीए सरकार के समय वे कहते थे कि सरकार आम आदमी के दुख-दर्द को लेकर असंवेदनशील है। जावड़ेकर ने तब कहा था कि कोई कारण नहीं है कि पेट्रोल दिल्ली में 34 रुपये और मुंबई में 36 रुपये प्रति लीटर न बिके। वह व्यंग्य में पूछते थे कि आखिर, इनकी कीमतें दोगुनी क्यों है।
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अब प्रधानमंत्री-पद पर विराज रहे तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने कहा था कि मूल्य वृद्धि सरकार की प्रशासनिक विफलता का उदाहरण है। उन्होंने तब उम्मीद जताई थी कि प्रधानमंत्री स्थिति की गंभीरता समझेंगे।
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तब विपक्ष में रहे अभी के केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी दिखाता है कि सरकार को आम आदमी की कोई चिंता नहीं है। अभी केंद्रीय मंत्री का पद संभाल रहे नितिन गडकरी ने तब कहा था कि पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें कम कर सरकार को लोगों को राहत देनी चाहिए। अभी वित्त मंत्री की कुर्सी पर आसीन निर्मला सीतारमण इस बात पर आश्चर्यचकित थीं कि सरकार लोगों का भार क्यों बढ़ाती जा रही है। स्मृति ईरानी, अक्षय कुमार, अनुपम खेर और अमिताभ बच्चन जैसे लोग भी तक काफी ज्ञान बांट रहे थे। इन सभी लोगों को, समझा जा सकता है कि, आज क्यों चुप्पी साधनी पड़ रही है।
ऐसे में, एक देशद्रोही का यह ट्वीट भी शायद ही सरकार को राहत पहुंचा सकेः भाजपा सरकार को अपना वादा पूरा करने पर बधाई दी जानी चाहिए- उसने जीडीपी (गैस, डीजल और पेट्रोल) में बढ़ोतरी का अपना वादा निभाया है।
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