कोविड19 के विश्वव्यापी संकट के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक डॉ. टैड्रोस ऐडरेनॉम गैबरेयेसस को एक वीडियो जारी कर कहना पड़ा है कि “अगर आप किसी तरह की मुसीबत में हैं, तो तुरंत घर छोड़ दें और किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंच जाएं।” आखिर क्या है वह मुसीबत जिससे डरकर उन्हें दुनिया के कई देशों में चल रहे लॉकडाउन के बावजूद लोगों को घर छोड़ने की सलाह देनी पड़ी?
दरअसल वह मुसीबत है ‘घरेलू हिंसा’। आंकड़े बता रहे हैं कि कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन के बाद घरों के भीतर का माहौल हिंसक हो रहा है। सिंगापुर की एजेंसी- सीएनए, के अनुसार, वहां लॉकडाउन में घरेलू हिंसा में 33 फीसदी का इजाफा हुआ है, जबकि फ्रांस में घरेलू हिंसा में 36 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। भारत में इस तरह के आंकड़े जुटाना अभी बाकी है।
उत्तर प्रदेश में शुरू किये गए पीआरवी- यानी, पुलिस रिसोर्स व्हीकल को 8 मार्च को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि घरेलू हिंसा की शिकायतों को गंभीरता से लिया जाए। इसमें जीपीएस की सहायता से हिस्ट्री ट्रैक करने के साथ ही 5 से 10 मिनट में मदद पहुंचाना भी शामिल था। पर 17 मार्च के बाद ‘कॉल 112’ का यह नंबर कोविड 19 के दौरान दवा, भोजन आदि जरुरतों संबंधी कॉल्स को प्राथमिकता दे रहा है। उनका मानना है कि शराब की उपलब्धता न होने की वजह से प्रदेश में घरेलू हिंसा में कमी आई है। पर यह सरकारी रजिस्टर है, इसमें वही दर्ज होगा जिसके ऊपर से ऑर्डर आएंगे।
अपने यहां आंकड़ों को लेकर अपनी सरकार पिछले छह-सात साल में जिस तरह का व्यवहार करती आ रही है, उसमें जल्दी कुछ पता लगने की उम्मीद करना भी नहीं चाहिए। लेकिन दुनिया के अन्य हिस्सों में लाॅकडाउन के दौरान भी इस तरह के मामलों में स्थिति अच्छी नहीं है। इसीलिए मलेशिया ने कुछ मनोरंजक पोस्टर जारी कर घर के माहौल को शांत बनाए रखने के उपाय सुझाए तो फ्रांस की सरकार को घरेलू हिंसा में पीड़ित लोगों के लिए अलग होटल में रहने की व्यवस्था तक करनी पड़ी।
अब सवाल उठता है कि आखिर क्यों हो रहा है ऐसा? क्या लोग भूख, बीमारी, प्रदूषण से भी ज्यादा एक-दूसरे से परेशान हैं? मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि काम के लिए बाहर निकलना सिर्फ परिवार की आर्थिक मदद ही नहीं करता बल्कि भावनात्मक मदद भी करता है। इससे हम अपनी ऊर्जा को सकारात्मक तरीके से इस्तेमाल कर तनावमुक्त हो पाते हैं। स्कूल, कॉलेज या ऑफिस जाने का तनाव आपसी रिश्तों को संभाले रखता है।
सेहत की चिंता में घरों में कैद लोगों के पास करने को कुछ नहीं है। हालात वहां और ज्यादा खराब हैं जहां परिवारों में कई तरह की पाबंदियां हैं। मसलन बहुओं को ससुर के सामने पल्लू करना है। छोटे शहरों, कस्बों के साथ ही यह दिल्ली की कच्ची कॉलोनियों और गावों में अब भी न्यूनतम या अधिकतम रूप में मौजूद है। छोटे घर और कायदों में बंधे बड़े परिवारों में लॉकडाउन की कैद ने खीझ भर दी है।
इस खीझ को वरिष्ठ साहित्यकार काशीनाथ सिंह की कहानी ‘संकट’ से समझिए। छुट्टी पर आया फौजी राघो इस बार अपनी छुट्टियां एन्ज्वॉय नहीं कर पा रहा क्योंकि पत्नी सौरी में है, अर्थात उसे बच्चा हुआ है। वह बीवी के हंसने, छींकने, कुछ कहने भर पर उसे पीट देता है। इससे पूरा परिवार परेशान है। दोस्त भी उसे समझाते हैं कि आठ दिन के लिए छुट्टी आए हो और बीवी को पीट रहे हो। पर कोई उसकी उस मनःस्थिति को नहीं समझ पा रहा, जिससे वह गुजर रहा है।
इन दिनों ऐसे लोग काफी हैं जो लॉकडाउन की जबरिया छुट्टियों से तनावग्रस्त हैं। पीतमपुरा निवासी राधिका शर्मा टीचर हैं और पति सरकारी नौकरी में हैं। उनके रिश्ते औरों से बेहतर हैं, पर तनाव बढ़ रहा है- पिता और बेटी के बीच। राधिका कहती हैं, “बेटी बड़ी हो रही है। कितनी ही ऐसी बातों की परमिशन मैंने उसे दे रखी है, जो उसके पापा नहीं देते। ये छोटी बातें हैं, पर बच्चों का मन रह जाता है। उन्हें भी पता है कि पापा के सामने यह सब नहीं करना है। पर अब बच्चों में तनाव गहरा रहा है। वह खुद को रोकते हुए परेशान हो गए हैं। नतीजतन वे हर बात पर विद्रोह कर रहे हैं, जिसे बर्दाश्त कर पाना उनके पापा के लिए मुश्किल हो रहा है।”
रिश्तों में तनाव का स्तर कुछ परिवारों के लिए थाने तक पहुंच रहा है। दिल्ली के वसंत कुंज थाने में 3 अप्रैल को रजोकरी से एक युवक ने फोन किया। उसने बताया कि उसके पिता ने पूरे परिवार का जीना दूभर कर दिया है। वे खाली पड़े-पड़े शराब पीते रहते हैं और सरकार से लेकर परिवार तक सबको कोसते हैं। अब उनके लिए उन्हें बर्दाश्त कर पाना मुश्किल हो रहा है। परिणामस्वरूप पुलिस को पिता को गिरफ्तार करना पड़ा।
एक अन्य घटना में दिल्ली से सटे नोएडा के गांव खांडा में 1 अप्रैल को एक पत्नी ने अपने पति को खाने में आठ नशीली गोलियां खिला दीं। इसके बाद उसकी हत्या कर दी। महिला का पति विक्रम नोएडा सेक्टर 7 में प्राइवेट नौकरी करता था। लॉकडाउन के बाद 50 किलोमीटर पैदल चलकर वह अपने गांव खांडा पहुंचा था। पति-पत्नी दोनों के रिश्ते इतने ज्यादा तनावपूर्ण थे कि दोनों का लॉकडाउन की इस अवधि में साथ रहना मुश्किल हो गया।
इस लॉकडाउन में परिवारों के बीच पनप रहे तनाव और हिंसा के उदाहरण और भी हैं। लॉकडाडन ने अर्थव्यवस्थाओं को ही नहीं, लोगों की मानसिक सेहत को भी गहरा आघात पहुंचाया है। इसके लिए तत्काल उपाय करने की जरूरत है।
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