‘सीओ साहब, आपने अंसल के खिलाफ कोई एफआईआर लिखा है क्या? ...क्यों लिखा आपने? आपको पता नहीं है, ऊपर से आदेश है कोई एफआईआर नहीं लिखा जाएगा। अंसल के खिलाफ सारे फेक एफआईआर लिखे जा रहेहैं। सीएम साहेब के संज्ञान में सभी चीजें हैं। फर्जी है सब, खत्म करिए। मैं गलत काम के लिए नहीं बोलती हूं।’ ये कथित बातचीत है लखनऊ कैंट की सीओ और यूपी सरकार की रसूखदार मंत्री स्वाति सिंह के बीच की।
योगीराज की कार्यशैली को करीब से देख रहे लोगों को इस ऑडियो में भले ही कोई अचरज न लगे, पर यह सवाल लोगों को परेशान कर रहा है कि आखिर स्वाति सिंह का ‘ऊपर’ वाला कौन है जो सिर्फ उन्हें ही नहीं, बल्कि उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या और ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा को एक के बाद एक कारगुजारियों के बाद भी संरक्षण दे रहा है।
स्वाति सिंह और लखनऊ कैंट की सीओ डॉ वीनू सिंह के बीच 14 नवंबर को हुई बातचीत का ऑडियो वायरल हुआ तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जांच डीजीपी को सौंपते हुए रिपोर्ट तलब की। रिपोर्ट आई या नहीं, इसका खुलासा तो स्वयं मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ही कर सकते हैं लेकिन अभी तक यह सार्वजनिक नहीं हुई है। दरअसल, यूपी में सत्ता की डोर भले ही योगी आदित्यनाथ के पास हो लेकिन घोटालेबाज मंत्रियों की नकेल कसने की हिम्मत उन्हें नहीं मिल रही है। वह फटकार रहे हैं। जांच दर जांच का आदेश दे रहे हैं। मुकदमे दर्ज करा रहे हैं। अफसरों को निलंबित भी कर रहे हैं। लेकिन मंत्रियों की सेहत पर कोई असर नहीं हो रहा है।
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सरकार में चल रही गोलबंदी को गोरखपुर के एक बड़े ठेकेदार के दर्द से समझा जा सकता है। वह कहते हैं, योगी के करीबियों को पीडब्ल्यूडी में काम नहीं मिल रहा है। यदि 5 मिनट भी सीएम की बुराई कर दी जाए तो 5 करोड़ का काम मिल जाता है।
भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी बेसिक शिक्षा मंत्री अनुपमा जायसवाल को हटाने के मामले को छोड़ दें तो योगी की हनक कहीं नहीं दिख रही है। 16 अक्तूबर को योगी आदित्यनाथ मऊ जिले के कोपा में एक कार्यक्रम में गए थे। शाम होने के चलते हेलीकॉप्टर नहीं उड़ा तो उन्हें सड़क मार्ग से वाराणसी तक का सफर करना पड़ा। 120 किलोमीटर की दूरी में अनगिनत गड्ढों में हिचकोले खाने के बाद योगी इतने नाराज हुए कि दूसरे दिन पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों को तलब कर लिया। बैठक में योगी ने गोरखपुर-वाराणसी फोरलेन को 30 दिन में दुरुस्त करने का निर्देश तो दिया ही पीडब्ल्यूडी में दो साल में हुए कार्यों की ऑडिट का भी आदेश दे दिया। इस आदेश को डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या और योगी आदित्यनाथ के बीच चल रही अनबन से जोड़कर देखा जा रहा है।
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योगी ने 15 नवंबर तक सभी सड़कों को गड्ढामुक्त करने का निर्देश भी दिया। सड़कों को गड्ढामुक्त करने पर प्रदेश में 100 करोड़ से अधिक खर्च हो गया लेकिन यह कहना मुश्किल है कि गड्ढे कहां नहीं हैं। लेकिन गोरखपुर परिक्षेत्र के चीफ इंजीनियर एसपी सिंह कहते हैं सड़कों को 15 नवंबर से पहले गड्ढामुक्त किया जा चुका है जबकि ग्रामीण सड़कें नवंबर बीतते-बीतते बन जाएंगी।
योगी के तेवर के बाद पीडब्ल्यूडी विभाग के इंजीनियरों के खिलाफ कुंभ मेला को लेकर बनाई सड़कों में भ्रष्टाचार को लेकर मुकदमे दर्ज हुए। कई सड़कों का बिना कार्य के ही भुगतान हुआ तो कई की गुणवत्ता खराब मिली। बलरामपुर में 20 करोड़ के काम में घोटाला मिला जिसके बाद ठेकेदार से 70 लाख की रिकवरी हुई। ऐसे में, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू की इस बात में दम दिखता है कि जिस सरकार में हर परियोजना मंजूरी के लिए कैबिनेट बैठक में भेजी जाती है, उसमें भ्रष्टाचार का आधार बनने वाले इतने बड़े-बड़े फैसले मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाए बगैर कैसे लिए जा सकते हैं। सवाल यह कि होमगार्ड विभाग में घोटालों से जुड़ी फाइलें जला दी जाती हैं, कार्रवाई नहीं होती है। आखिर मुख्यमंत्री खामोश क्यों हैं?
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योगी ने 17 अक्तूबर को लखनऊ में हुई बैठक में खुद बस्ती, संतकबीर नगर और देवरिया जिले में बिना काम कराए करोड़ों के भुगतान का मामला उठाया था। अधिकारियों ने जांच तो शुरू की लेकिन सिर्फ योगी के गढ़ में। शेष प्रदेश में सड़कों को लेकर कोई जांच नहीं शुरू हो सकी। संतकबीर नगर में बिना काम हुए ही अधिकारियों ने ठेकेदारों को 21 चेक दे दिए। करीब 20 करोड़ से अधिक के ऐसे ही भुगतान के मामले की पड़ताल एसआईटी कर रही है। आदर्श ठेकेदार समिति के अध्यक्ष शरद कुमार सिंह का कहना है कि प्रदेश में पहली अप्रैल से लेकर 31 अगस्त, 2019 के बीच 400 करोड़ से अधिक के काम हुए हैं। पर, पीडब्ल्यूडी के प्रमुख अभियंता सिर्फ गोरखपुर-बस्ती मंडल के जिलों में जांच करा रहे हैं। कायदे से तो जांच पूरे प्रदेश में समान रूप से होनी चाहिए।
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ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा के विभाग में भले ही फिलहाल पीएफ घोटाले की गूंज हो लेकिन विभाग कारगुजारियों को लेकर बदनाम है। ऊर्जा विभाग में कर्मचारी भविष्य निधि के करीब 2,600 करोड़ रुपये के गलत तरीके से निजी संस्था डीएचएफएल में निवेश को लेकर मंत्री की भूमिका पर गंभीर सवाल हैं। सूत्रों के मुताबिक, ईओडब्ल्यू की शुरुआती जांच में साफ हो चुका है कि पीएफ के निवेश के लिए कोई टेंडर नहीं हुआ था। महज कोटेशन के जरिए डीएचएफएल में 2,268 करोड़ रुपए लगा दिए गए।
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि डीएचएफएल में पहला निवेश 17 मार्च, 2017 को हुआ। इसके बाद 24 मार्च, 2017 को बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की मीटिंग हुई। इसमें 17 मार्च के निवेश पर सहमति जताई गई। अगर 24 मार्च, 2017 को ही बोर्ड बैठक में इस प्रस्ताव पर सवाल उठ जाता तो शायद बिजली कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई के 2268 करोड़ रुपए न फंसते। मंत्री श्रीकांत शर्मा के करीबी माने जाने वाले देवरिया जिले के बहरज से बीजेपी विधायक सुरेश तिवारी की फर्म पर बिजली विभाग के कार्यों में करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार के आरोप हैं। विधायक की फर्म एसटी इलेक्ट्रिकल्स ने गोरखपुर में 200 करोड़ से अधिक के काम में भ्रष्टाचार किया है। एक मामले में कैंट थाने में मुकदमा भी दर्ज है। मुख्यमंत्री ने इस मामले में बिजली निगम के तीन अधिकारियों को निलंबित भी किया लेकिन 24 घंटे में उनकी बहाली हो गई।
पूर्व सपा सांसद कुंवर अखिलेश सिंह कहते हैं कि एक तरफ मुख्यमंत्री मंत्रियों के विभाग में गोलमाल पर कार्रवाई कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ मंत्रियों की ताकत पर कोई असर नहीं हो रहा है। यह साबित कर रहा है कि यूपी में भले ही योगी मुख्यमंत्री हों लेकिन रिमोट किसी और के हाथ में है।
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