देश के बड़े तबके को दूरसंचार सेवाएं देने वाली सरकारी कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनल) का घाटा कम कर उसे संकट से उबारने की कोशिशें की जा रही है, वहीं बीएसएनल की देश भर में स्थित संपत्तियों का गैर कानूनी तरीके से दाखिल-खारिज (सौदा) किया जा रहा है। यह काम दूरसंचार विभाग (डॉट) कर रहा है।
इस मामले में लगाए गए आरोपों की हिमाचल प्रदेश में जांच शुरु हो गई है, लेकिन इससे बीएसएनएल के राजस्व में बड़ा घाटा आया है, नतीजतन संपत्तियों से पैसा उगाहने की सरकारी कोशिशें भी प्रभावित होती नजर आ रही हैं।
सरकारी सूत्रों ने नेशनल हेरल्ड को बताया कि शिमला के जिला कलेक्टर ने संबंधित तहसीलदारों से राजस्व रिकॉर्ड तलब किए हैं ताकि पता चल सके कि दूरसंचार विभाग की संपत्तियां बीएसएनएल को ट्रांसफर करते समय स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान हुआ था या नहीं।
विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि बीएसएनल के पास हिमाचल प्रदेश में करीब 250 संपत्तियां हैं। दरअसल ये सारी संपत्तियां डॉट की मिल्कियत हैं और बीएसएनल इनका सिर्फ प्रबंधन करता है, लेकिन अब पता चला है कि इनमें से करीब 75 संपत्तियों का बीएसएनल के पक्ष में दाखिल-खारिज करा दिया गया है, और इसके लिए किसी स्टाम्प ड्यूटी का भुगतान भी नहीं किया गया है, जिससे राज्य को राजस्व का भारी नुकसान हुआ है।
सूत्रों का कहना है कि हिमाचल प्रदेश के 11 अन्य जिला कलेक्टर भी जल्द ही राजस्व रिकॉर्ड्स की जांच शुरु करने वाले हैं। अधिकारियों का मानना है कि इससे देश भर में फैली करीब 7000 ऐसी संपत्तियों के रिकॉर्ड की जांच शुरु हो सकती है, जिनका प्रबंधन बीएसएनल करता है।
अगर मामले में धांधलेबाज़ी का पता चलता है तो बीएसएनल और डॉट के अधिकारियों के खिलाफ जांच और जुर्माने की कार्रवाई शुरु हो सकती है। सूत्रों के मुताबिक बीएसएनल के कर्मचारी डॉट कर्मचारी और अधिकारी बनकर दाखिल-खारिज करा रहे हैं, और अगर यह साबित होता है तो डॉट और बीएसएनल कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई भी शुरु की जा सकती है।
सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक बीएसएनएल के पास करीब 7000 संपत्तियां हैं और इनमें से ज्यादातर शहरों के पॉश इलाकों में हैं जिनकी कीमत करोड़ों में है। इन संपत्तियों को बेचकर ही बीएसएनएल पैसा उगाह रहा है ताकि घाटे में चल रहे बीएसएनल को उबारा जा सके।
यह भी खुलासा हुआ है कि डॉट के तहत काम करने वाले डिजिटल कम्युनिकेशन कमीशन बीएसएनलएल की संपत्तियों को लीज पर दे रहा है ताकि घाटे में चल रही सरकारी दूरसंचार कंपनी को बचाया जा सके। लेकिन अधिकारियों का कहना है कि ऐसी संपत्तियों को ट्रांसफर कैसे किया जा सकता है जो तकनीकी रूप से बीएसएनएल की हैं ही नहीं, क्योंकि डॉट ने इन संपत्तियों के राजस्व रिकॉर्ड में बीएसएनल के नाम किया ही नही हैं।
शीर्ष अधिकारियों ने नेशनल हेरल्ड को बताया कि जब तक किसी संपत्ति को ट्रांसफर करने के लिए जरूरी स्टाम्प ड्यूटी का भुगतना नहीं किया जाता है, उन्हें किसी और को ट्रांसफर या लीज पर नहीं दिया जा सकता।
दूरसंचार विभाग से सेवानिवृत्त एक अधिकारी ए के कौशिक का कहना है कि डॉट और बीएसएनल के शीर्ष अधिकारियों के शामिल हुए बिना इतना बड़ा घोटाला अंजाम नहीं दिया जा सकता। उन्होंने कहा कि, “साफ है कि सरकारी अधिकारी निजी कंपनियों से मिले हुए हैं और उन्हें फायदा पहुंचाना चाहते हैं।” उन्होंने 2002 में टाटा समूह और विदेश संचार निगम लिमिटेड के बीच हुए सौदे का हवाला दिया जिसमें सिर्फ 1439 करोड़ रुपए में टाटा समूह ने वीएसएनल में 25 फीसदी हिस्सेदारी खरीद ली थी।
कौशिक ने कहा कि, “आज हकीकत यह है कि 25 फीसदी हिस्सेदारी के बावजूद टाटा समूह वीएसएनल की सारी संपत्तियों का प्रबंधन कर रहा है, जोकि सौदे से कहीं अधिक कीमत की हैं।” उन्होंने बताया कि, “ऐसा ही बीएसएनएल के मामले में हो रहा है। जाहिर है कि ऐसा करने से सरकार के पास उतना पैसा नहीं आ पाएगा जितना बीएसएनएल को उबारने के लिए जरूरी है।” गौरतलब है कि बीएसएनल को उबारने की योजना में संपत्तियों से पैसा उगाहना एक बड़ा पहलू है।
दरअसल बीएसएनएल को उबारने की जो योजना बनी है उसके मुताबिक:
बीएसएनएलको उबारने की योजना बीते कई सालों से बन रही थी। बीएसएनएल को वर्ष 2017-18 में करीब 4800 करोड़ का नुकसान हुआ है। बीएसएनएल की वित्तीय हालत इतनी खस्ता है कि इसे अपने खर्च चलाने के लिए लाभ कमाने वाले दक्षिण भारत के अपने सर्किल बैंकों के पास गिरवी रखना पड़े हैं।
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(ये स्टोरी बीएसएनल में जारी धांधलियों के इंवेस्टिगेशन का दूसरा हिस्सा है। पिछली स्टोरी आप उपर दिए लिंक में पढ़ सकते हैं।)
Published: 08 Mar 2019, 8:21 PM IST
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Published: 08 Mar 2019, 8:21 PM IST