पश्चिम बंगाल में अब तक एक ही व्यक्ति की पहचान दादा के तौर पर होती है और वह हैं पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान सौरव गांगुली। वह एक बांग्ला टीवी चैनल के लिए सालों से एक क्विज शो करते हैं। उसका नाम ही है ‘दादागीरी’। 7 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोलकाता में भारतीय जनता पार्टी रैली के लिए रहेंगे और चर्चा है कि सौरव इस दौरान पार्टी में शामिल हो सकते हैं। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनकर से मिलने के कुछ ही घंटे बाद सौरव ने जब 28 दिसंबर को दिल्ली में फिरोज शाह कोटला स्टेडियम में पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के प्रतिमा अनावरण समारोह में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ भाग लिया था, तब भी इस तरह की चर्चा चल निकली थी। वजह भी है। सौरव भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष हैं। शाह के बेटे जयशाह बीसीसीआई के सचिव हैं।
वैसे, टिकट न मिलने की संभावना और काम न करने के कारण पार्टी में कद घटते जाने की वजह से कई नेताओं ने तृणमल का साथ छोड़ा है। हालांकि सौरव को जानने वाले लोगों का कहना है कि उनकी राजनीति में रुचि नहीं है, फिर भी, मुख्यमंत्री-पद का ऑफर किया जाए, तो किसी के भी मन में लड्डू फूटना स्वाभाविक है।
लेकिन एक बात तो है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बीजेपी को कतई कोई स्पेस नहीं दे रही हैं। उनका हमला बहुत सीधा और तीखा होता हैः ‘यह दानव और दैत्य, रावण और दानव की पार्टी है।’ वह सारी बातों का तुर्की-ब-तुर्की जवाब भी देती हैं।
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हाल में एक रैली में मोदी ने दावा किया कि राज्य में 1.75 करोड़ ग्रामीण परिवारों तक पाइप से पानी पहुंचाने के लिए केंद्र ने राज्य सरकार को 1,700 करोड़ रुपये दिए लेकिन इनमें से सिर्फ 609 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए। मोदी ने कहाः ‘बच गए 1,100 करोड़ रुपये दबा लिए गए... जिन लोगों ने बंगाल की महिलाओं के साथ यह गलत काम किया, क्या उन्हें भुला दिया जाना चाहिए?’ ममता ने तीखा जवाब दियाः ‘झूठ, झूठ और खाली झूठ। कैसे भी चुनाव जीतने के लिए...।’ इस योजना पर काम न हो पाने की वजह भी है। कोविड महामारी के दौरान गांव वाले इंजीनियरों और मजदूरों को घरों में घुसने नहीं दे रहे थे।
प्रधानमंत्री और बीजेपी ने बंगाल में आयुष्मान भारत योजना को लागू न होने देने के लिए तृणमूल सरकार पर कई दफा आरोप लगाए हैं। ममता ने सार्वजनिक रैलियों में कहा है कि उन्होंने एक बेहतर स्वास्थ्य योजना- स्वास्थ्य साथी चलाई थी। इसमें हर परिवार को पांच लाख रुपये तक की मुफ्त चिकित्सा-सुविधा मिलती है। इसी तरह, बीजेपी ने प्रधानमंत्री किसान योजना न चलाने को मुद्दा बनाने की कोशिश की है। लेकिन राज्य सरकार ने 22 लाख आवेदनों की जांच-पड़ताल की, तो केंद्र ने इसे वापस ले लिया। प्रधानमंत्री ने यहां उद्योगों की बंदी को मुद्दा बनाने का प्रयास किया, तो ममता ने सारे तथ्य लोगों के सामने रखेः ‘हमने 2016 में डनलप और जेसॉप को अधिग्रहीत करने का फैसला किया और इसके लिए विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया। लेकिन केंद्र सरकार ने पांच साल से इसकी अनुमति नहीं दी है। मोदी से पूछो कि पांच साल से डनलप फैक्टरी बंद क्यों है? डनलप परिसर में सभा करने से पहले आपको (मोदी को) इसका जवाब देना चाहिए था। आपने अपना काम नहीं किया और मुझे भी करने से रोकते रहे।’ ममता ने यह भी कहा कि ‘डनलप के मालिक पवन रुइया के खिलाफ कई मामले दर्ज हैं, तब भी बीजेपी नेता उनके घर ठहरते हैं। डनलप के कर्मचारियों और मजदूरों को नौकरी और रोटी देने से मना करने वाले रुइया के शरत बोस रोड वाले घर में बीजेपी नेता अतिथि होते हैं।’
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विकास और सुशासन ऐसे मुद्दे हैं जहां ममता शासन पर हमला करना बीजेपी के लिए भारी पड़ रहा है। ममता शासन में निवेश को बीजेपी ने मुद्दा बनाने का प्रयास किया। लेकिन राज्य के वित्तमंत्री डॉ. अमित मित्रा के ट्वीट ने उसकी परतें खोल दीं। उन्होंने लिखाः ‘100 बैंकर्स की बैठक ने बंगाल में निवेश पर मोदी-शाह के नकारात्मक प्रोपेगैंडा का भेद खोल दिया। अप्रैल, 2020 से 21 जनवरी, 2021 के बीच बैंकों ने राज्य सरकार के सहयोग से मध्यम-लघु उद्योग में निवेश के लिए 63,000 करोड़ रुपये दिए। परिणामः केंद्र सरकार के अपने पूंजी/श्रम तुलना के अनुसार, 23 लाख नई नौकरी।’ उन्होंने कहाः ‘सरकार हर एक करोड़ के निवेश पर 44 नई नौकरी की बात करती है। पहले यह दर 36 की थी। मोदी सरकार के ही ढांचे से हमने कई नई नौकरियां पैदा की हैं।’
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निर्वाचन आयोग ने बंगाल में आठ चरणों में चुनाव कराने की घोषणा की है। ममता बनर्जी ने इसे भी सही ही मुद्दा बनाया है। जितने अधिक समय तक चुनाव की प्रक्रिया चलेगी, सरकार से लेकर सभी पार्टियों तक को उतने अधिक संसाधन लगाने होंगे। जाहिर है, इस वक्त सबसे अधिक संसाधन बीजेपी के पास हैं और वह हर तरह से इसका फायदा उठाने का प्रयास करेगी। मोदी और शाह ‘रिकॉर्ड नंबर तक’ तो रैलियां करेंगे ही। बगल के राज्य- असम, में 6 अप्रैल तक मतदान खत्म हो जाएंगे। वहां बीजेपी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) और संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लेकर कमजोर विकेट पर है और इसीलिए इन पर चुप है। लेकिन आशंका है कि असम में चुनाव बाद बंगाल में अगले छह चरणों तक इन्हीं मुद्दों पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का प्रयास करेगी।
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कमजोर विकेट पर होने के बावजूद बीजेपी को लग रहा है कि वह राज्य में अगली सरकार बना ले जाएगी, तो उसकी वजह एक अंधविश्वास है। दरअसल, पिछले चुनावों के एक संयोग के कारण बीजेपी को अपना सूर्य उगता दिख रहा है। 294 सदस्यीय विधानसभा में जिसने भी किसी चुनाव में 200 से अधिक सीटें जीत ली, उसे अगली बार विपक्ष में बैठना पड़ा है। बीजेपी में बहुत अधिक और बेवजह उत्साह की एक वजह यही है। कांग्रेस ने 1972 में 216 सीटें जीती थी। अगली बार 1977 में उसे सत्ता से हटना पड़ा। तब से ही वह यहां सरकार में नहीं आ पाई है। इसी तरह, वाम मोर्चा को 2006 में 233 सीटें हासिल हुई थीं। लेकिन 2011 में उसे तृणमूल कांग्रेस के हाथों सत्ता गवानी पड़ी। 2016 में तृणमूल को 211 सीटें मिलीं। बीजेपी को लगता है कि इसी कारण तृणमूल को इस दफा सरकार बनाने का अवसर नहीं मिलेगा और उसकी लॉटरी लग जाएगी।
वैसे, रोचक यह भी है कि बीजेपी का इस बार नारा हैः इस बार 200 पार। अंधविश्वासी बीजेपी के इस नारे का मतलब निकालते रहें....
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