बीते कई दिनों से देश भर में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश में शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शनों के दौरान बड़े पैमाने पर हिंसा हुई और उसके बाद से अब तक जारी पुलिसिया कार्रवाई ने बर्बरता के तमाम रिकॉर्ड को भी नीचा दिखा दिया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में अब तक 16 लोगों की मौत हुई है और सैंकड़ों लोगों को हिरासत में लिया गया है और उनमें से सैंकड़ों को गंभीर धाराओं में जेल भेज दिया गया है। इनमें कई ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता हैं और कई ऐसे वरिष्ठ सामाजि कार्यकर्ता हैं, जिन्हें पुलिस ने प्रदर्शनों से पहले ही हिरासत में ले लिया था। लेकिन उसके बावजूद पुलिस ने उन्हें गंभीर धाराओं में जेल भेज दिया है।
Published: 26 Dec 2019, 8:30 PM IST
इन सब मुद्दो को उठाते हुए मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता और सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के उपाध्यक्ष संदीप पांडे ने प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के नाम एक खुला पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने नागरिकता कानून के खिलाफ देश भर में हुए प्रदर्शनों में केवल उत्तर प्रदेश में इतने बड़े पैमाने पर हुई हिंसा को लेकर सवाल उठाए हैं। उन्होंने लिखा है, “लखनऊ समेत प्रदेश भर में नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा और शासन-प्रशासन के रवैये को लेकर कुछ कहना चाहता हूं। यह सोचने वाली बात है कि देश के दूसरे शहरों में लाखों की भीड़ एकत्र हुई और कोई हिंसा नहीं हुई तो फिर उत्तर प्रदेश में इतनी हिंसा क्यों हुई? अराजक तत्वों की हिंसा के बाद शासन-प्रशासन द्वारा बदले की भावना से जो कार्यवाही की गई है वह तो और भी निंदनीय है क्योंकि एक लोकतंत्र में शासन-प्रशासन से धर्य और विवेक से काम करने की अपेक्षा की जाती है।”
Published: 26 Dec 2019, 8:30 PM IST
संदीप पांडे ने अपने पत्र में लखनऊ के एडवोकेट और रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शोएब और सेवानिवृत आई.पी.एस. अधिकारी एस.आर. दारापुरी, कांग्रेस प्रवक्ता सदफ जाफर समेत कई सामाजिक कार्यकर्ताओं, अध्यापकों और छात्रों को हिरासत में लेने और गिरफ्तार करने पर सवाल उठाते हुए कहा कि “हिंसा अराजक तत्वों ने की है किंतु कार्यवाही ऐसे भी सामाजिक छवि वाले लोगों के खिलाफ की जा रही है जिन्होंने जिंदगी भर शांतिपूर्ण तरीकों से ही काम किया और जिनकी इस देश के संविधान में निष्ठा है। अगर आप अराजक लोगों को छोड़ सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल भेजेंगे तो लोकतंत्र में शांतिपूर्ण तरीकों से संविधान का सम्मान करने वालों के लिए अपना मतभेद व्यक्त करने की जगह समाप्त हो जाएगी और अराजक लोगों का ही बोलबाला रहेगा और आम जनता उन्हीं के प्रभाव में आकर हिंसा के रास्ते पर चल देगी।” बाकी आप समझदार हैं। यदि अपने निर्णय पर पुनर्विचार कर सकें तो समाज में शांति और व्यवस्था के हित में उपर्लिखित कार्यकर्ताओं के खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस लें और सभी निर्दोष लोगों को जेल से रिहा करें।”
Published: 26 Dec 2019, 8:30 PM IST
अपने पत्र में संदीप पांडे ने प्रदेश भर में मुसलमानों के खिलाफ एकतरफा कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि “नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के राष्ट्रव्यापी विरोध के बाद अब कई बीजेपी नेता भी कहने लगे हैं कि मुसलमानों को कोई चिंता करने की जरूरत नहीं हैं। लेकिन उपर्युक्त विरोध-प्रदर्शनों के लिए जो मुकदमे दर्ज किए गए हैं उसमें बहुतायत मुस्लिम नामों की है। उदाहरण के लिए थाना हजरतगंज में दर्ज प्रथम सूचना रिर्पोट सं. 600/2019 में 39 आरोपियों में 3 को छोड़ शेष मुस्लिम हैं, जबकि विरोध-प्रदर्शनों में बड़ी संख्या में गैर-मुस्लिम भी शामिल रहे। इसके अलावा प्रदेश में गोली लगने से मारे गए सभी 16 नौजवान मुस्लिम हैं। यदि शासन-प्रशासन मुसलमानों के खिलाफ पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर कार्यवाही करेगा तो क्या मुसलमानों से अपेक्षा की जा सकती है कि वे सरकार के प्रति आश्वस्त रहें? उम्मीद है आप मेरे पत्र पर कुछ चिंतन-मनन करेंगे।”
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में विरोध-प्रदर्शन में हुई हिंसा के बाद पुलिस पर पूरे प्रदेश में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर एकतरफा कार्रवाई करने के गंभीर आरोप लग रहे हैं। आरोप है कि पुलिस ने कई बेगुनाह मुसलमानों को उठाकर गोली मारी है। इतना ही प्रदेश के कई जिलों से खबरें और ऐसे वीडियो भी सामने आए हैं, जिनमें पुलिस मुस्लिम मोहल्लो में घुसकर लोगों के घरों में घुसकर मारती-पीटती और तबाही मचाती नजर आ रही है।
Published: 26 Dec 2019, 8:30 PM IST
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Published: 26 Dec 2019, 8:30 PM IST