दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के नर्सिग स्टाफ द्वारा घोषित अनिश्चितकालीन हड़ताल का स्वास्थ्य सेवाओं पर गंभीर असर पड़ने लगा है। हालात को देखते हुए एम्स प्रशासन अब अपनी आपातकालीन सेवाओं में कटौती पर विचार कर रहा है। अगर नर्सों की ये हड़ताल जारी रहती है तो आने वाले दिनों में एम्स की स्वास्थ्य सेवा पूरी तरह चरमरा सकती है।
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हालात को देखते हुए आज एम्स निदेशक रणदीप गुलेरिया सहित देश के प्रमुख चिकित्सा संस्थान के शीर्ष अधिकारियों के बीच एक उच्च स्तरीय बैठक भी हुई, जिसमें स्थिति पर चर्चा की गई। इस बीच एम्स प्रशासन ने नर्सों की हड़ताल को देखते हुए 170 नर्सों को आउटसोर्स करने यानी कि बाहर से मंगाने का फैसला किया है। आउटसोर्स की गई नर्सें अस्पताल में भर्ती रोगियों की देखभाल करेंगी।
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एम्स के मेडिकल सुपरिटेन्डेंट (एमएस) डीके शर्मा ने बताया कि स्थिति को नियंत्रित करने के लिए, प्रशासन ने सभी जूनियर, रेजिडेंट और वरिष्ठ डॉक्टरों को उन नर्सों के बजाय काम करने के लिए कहा है जो वर्तमान में वेतन की मांग सहित कई मांगों को लेकर हड़ताल पर हैं। हालांकि, इसका कोई खास असर नहीं पड़ा है और नर्सों की कमी का असर दिखने लगा है।
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इस बीच, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने अस्पताल प्रशासन को 20 मई, 2002 को पारित दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए चल रही हड़ताल को तत्काल समाप्त कराने का निर्देश दिया है, जिसमें अदालत द्वारा एक आचार संहिता लगाई गई थी, जो एम्स के किसी भी कर्मचारी या फैकल्टी सदस्य को 'किसी भी कारण से' सेवाओं को बाधित करने से रोकता है। एक आदेश में, मंत्रालय ने यह भी धमकी दी थी कि इसके निर्देश का पालन नहीं करने को अपराध माना जाएगा और उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कानून के अनुसार कार्रवाई की जाएगी।
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बता दें कि संविदा पर नर्सिग अधिकारियों को भर्ती करने के अस्पताल के फैसले के खिलाफ और अन्य विभिन्न मांगों को लेकर एम्स की लगभग 5,000 नर्सें सोमवार दोपहर से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं। नर्सों की मांगों में 6ठे वेतन आयोग की विसंगतियों को दूर करना, संविदा पर नए नर्सों की बहाली को रोकना और नर्सों के लिए आवास की व्यवस्था का मुद्दा भी शामिल है। हड़ताल के कारण फिलहाल अस्पताल में आपातकालीन सेवाएं प्रभावित हुई हैं और गंभीर रोगियों की सुध नहीं ली जा रही है।
(आईएएनएस के इनपुट के साथ)
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