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प्रेस काउंसिल सदस्य का इस्तीफा, कहा- पत्रकारों के अधिकार और पत्रकारिता के मानकों की रक्षा नहीं करती संस्था

इस्तीफे में गुप्ता ने कहा है कि, “मीडिया बेहद संकट के दौर से दोचार है और हर पत्रकार इस बात को जानता है। लेकिन मीडिया को इस संकट से उबारने में हम कोई मदद नहीं कर पा रहे हैं। मेरे इस्तीफा देने का एक कारण यह भी है।”

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य बी आर गुप्ता ने यह कहते हुए इस्तीफे दे दिया कि मीडिया संकट के दौर से गुजर रहा है , इसके बावजूद काउंसिल पत्रकारों की मदद करने में अक्षम रहा है। बी आर गुप्ता बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष हैं। उन्हें 30 मई 2018 को तीन साल के लिए प्रेस काउंसिल में सदस्य के तौर पर नियुक्त किया गया था। हालांकि काउंसिल के अध्यक्ष सी के प्रसाद ने अभी बी आर गुप्ता का इस्तीफा मंजूर नहीं किया है।

अपने इस्तीफे में गुप्ता ने कहा है कि, “मीडिया बेहद संकट के दौर से दोचार है और हर पत्रकार इस बात को जानता है। लेकिन मीडिया को इस संकट से उबारने में हम कोई मदद नहीं कर पा रहे हैं। मेरे इस्तीफा देने का एक कारण यह भी है।”

उल्लेखनीय है कि प्रेस काउंसिल का गठन 1966 में इस मकसद से हुआ था कि प्रेस की स्वतंत्रता और उच्च मानक बने रहें। काउंसिल एक वैधानिक और अर्ध न्यायिक संस्था है जो प्रेस और मीडिया पर नजर रखती है और अगर कोई प्रेस मानकों का उल्लंघन करती हैं तो शिकायतों का निस्तारण भी करती है।

बी आर गुप्ता ने कहा है कि, “मीडिया प्रोफेशनल्स के मानकों और प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर समस्या है। अगर प्रेस काउंसिल इस बारे में मदद नहीं कर सकता और पत्रकारिता के मानकों की उस वक्त रक्षा नहीं कर सकता जब वह संकट में हो, तो फिर ऐसी संस्था में रहने का क्या फायदा। यही एक फोरम है। मैं मानता हूं कि यह सभी मीडिया का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं, और सिर्फ प्रिंट मीडिया की ही संस्था है, फिर भी हम इस बारे में कुछ नहीं कर पाए। सिर्फ भत्ते लेने के लिए काउंसिल की बैठक में जाना और चले आने से कोई फायदा नहीं। ऐसे में मैंने तय किया है कि मैं अब ऐसा नहीं कर सकता अगर मैं मीडिया की भलाई के लिए कुछ नहीं कर सकता। इसीलिए मैं इस्तीफा दे रहा हूं।”

गुप्ता का कहना है कि प्रेस काउंसिल कम से कम कुछ उपाय तो सुझा ही सकता है। उन्होंने कहा कि, “अगर हम किसी से अच्छा भोजन बनाने को कहेंगे तो जाहिर है उसे सामग्री भी उपलब्ध कराएंगे। इसी तरह अच्छी पत्रकारिता के लिए क्या योजना होना चाहिए इसकी कोई प्रक्रिया तो हो। बैठकों में हम सिर्फ बैठते हैं और कुछेक शिकायतों को देखकर काम खत्म कर देते हैं। जबकि प्रेस काउंसिल का उद्देश्य कुछ और ही था।”

गुप्ता बताते हैं कि, “हम अपनी जिम्मेदारियां नहीं निभा पा रहे हैं क्योंकि हम पर दबाव हैं, इसका तो यही अर्थ है कि हमारे यहां सबकुछ सही नहीं है। न तो मीडिया में और न ही इसे नियंत्रित करने वाली संस्था में। मेरी किसी से कोई जाती दुश्मनी नहीं है, लेकिन मैं अपने काम के प्रति इंसाफ नहीं कर पा रहा हूं। 30 मई हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है, ऐसे में मुझे स्मरण होता है क आखिर हम कब पत्रकारिता के साथ इंसाफ करेंगे। पत्रकार किसके पास जाकर अपनी कहानियां बताएंगे। हम लोगों के बारे में लिखते हैं जो ज्यादा प्रभावित होते हैं।”

उन्होंने कहा कि वह खुद पर सवाल उठा रहे हैं कि आखिर इस संकट से कैसे निकला जाए। उन्होंने कहा कि वे मानते हैं कि हर कोई अदालत के चक्कर लगाएगा। उन्होंने कहा कि , “जब प्रेस की आजादी पर सवाल उठता है तो लोग कोर्ट जाते हैं, जब वेतन नहीं मिलता है तो लोग कोर्ट जाते हैं। लोकतंत्रा का अदालतों पर निर्भर होना समस्या है। यह अलग किस्म का संकट है।”

प्रेस काउंसल के कामकाज के बारे में बात करते हुए काउंसिल के पूर्व सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार प्रॉन्जॉय गुहाठकुरता ने कहा कि, “बी आर गुप्ता के इस्तीफे से आश्चर्य नही हुआ। हालांकि प्रेस काउंसिल एक कानून के तहत बनाया गया है, और इसके पास किसी को सजा देने और जुर्मान लगाने के कोई अधिकार नहीं हैं। काउंसिल जो कुछ कहती है वह सिर्फ नैतिक होता है। फिलहाल ऐसा लगता है कि मौजूदा अध्यक्ष ने पत्रकारों के अधिकारों को लेकर अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लिया है।”

ठकुरता कहते हैं कि जब अर्णब गोस्वामी का मुद्दा आया तो काउंसिल ने स्वत: संज्ञान ले लिया था, लेकिन कश्मीर के मुद्दे को अनदेखा कर दिया। उन्होंने कहा कि प्रेस काउंसिल का पक्षपातपूर्ण रवैया एकदम साफ है।

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