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टिकरी बॉर्डर पर डटे किसानों का सवाल: सिर्फ 4 घंटे में हो सकती है नोटबंदी, तो कृषि कानून पर फैसले में देरी क्यों?

कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों ने मोदी सरकार से सीधा सवाल किया है। उनका कहना है कि अगर सिर्फ 4 घंटे में नोटबंदी हो सकती है तो फिर कृषि कानूनों में फैसला लेने में देरी क्यों कर रही है सरकार?

फोटो : ऐशलिन मैथ्यू
फोटो : ऐशलिन मैथ्यू 

जोगिंदर नैन का कहना है कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सिर्फ 4 घंटे में नोटबंदी का ऐलान कर सकते हैं, तो वह एक दिन में तीनों कृषि कानूनों को भी रद्द कर सकते हैं।

जोगिंदर नैन हरियाणा की भारतीय किसान यूनियन के नेता हैं। टिकरी बॉर्डर पर बने अस्थाई मंच के किनारे बैठे वे उन वक्ताओं के नाम लिख रहे हैं जिन्हें भाषण देना है। टिकरी बॉर्डर के करीब 10 किलोमीटर लंबे इलाके में किसानों का रैला नजर आ रहा है।

नैन हरियाणा के हजारों किसानों के साथ अपने पंजाब के भाइयों का साथ देने के लिए आए हैं जो पिछले दो महीने से कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं। किसानों की मांग हैं कि इन तीनों कानून को निरस्त किया जाए।

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नैन सीधा सवाल पूछते हैं, “हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का कहना है कि सिर्फ पंजाब के किसान विरोध कर रहे हैं। यह झूठ है। इसमें संदेह नहीं कि आंदोलन पंजाब के किसानों ने शुरु किया है सेकिन हम उनके साथ हैं। गले कुछ दिनों में हरियाणा के और भी किसान इस आंदोलन में शामिल होंगे आप देख सकते हो कि यहां हजारों किसान खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं। क्या प्रधानमंत्री को किसानों की कोई फिक्र नहीं है?”

नैन के पीछे ट्रकों और ट्रकों की कतार नजर आ रही है जिनमें राशन और दूसरा सामान लाकर सड़क किनारे खड़ा किया गया है। मेट्रो ट्रैक के आसपास इन ट्रकों और ट्रैक्टरों को लगा दिया गया है। दाई तरफ ज्यादातर पंजाब के और बाईं तरफ ज्यादातर हरियाणा के ट्रक और ट्रैक्टर खड़े हैं। इस रास्ते पर आगे चलने पर हर फर्लांग पर बाईं तरफ आपको लोग हुक्का गुड़गुड़ाते नजर आ जाएंगे। वहीं दाईं तरफ महिलाएं और पुरुष दोनों ही खाना तैयार करने में लगे दिखेंगे।

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टिकरी बॉर्डर पर ज्यादातर आंदोलनकारी मुख्य सड़क पर ही हैं क्योंकि सिंघु बॉर्डर की तरह यहां खुला मैदान नहीं है। इसीलिए इस इलाके में मुख्य सड़क के अलावा आसपास की लेन में भी किसान ही किसान नजर आते हैं।

गुरुवार 3 दिसंबर को किसानों की सरकारी नुमाइंदों कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के साथ बैठक हुई थी लेकिन बेनतीजा खत्म हो गई। किसान तीनों कृषि कानून को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार सिर्फ संशोधनों का ही संकेत दे रही है।

नैन कहते हैं कि, “हमारी समस्या सुलझाने के बजाए सरकार हमें बांटने की कोशिश कर रही है। वे कहते हैं कि यह किसानों के हक में हैं उनकी आर्थिक आजादी के लिए है। क्या खेती के बारे में उन्हें हमसे ज्यादा मालूम है। वे तो सिर्प कार्पोरेट की सुनते हैं क्योंकि उनसे तो उन्होंने पैसा ले रखा है।”

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इस बीच दिल्ली पुलिस ने ऑल इंडिया किसान सभा के महासचिव हन्नान मुल्ला को धारा 188 के तहत नोटिस जारी कर दिया है। उन पर 20 सितंबर को जंतर मंतर पर कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करने का आरोप है। पुलिस के इस कदम से किसानों में गुस्सा है क्योंकि मुल्ला उन लोगों में शामिल हैं जो सरकार से वार्ता कर रहे हैं। किसानों को नोटिस के समय को लेकर सरकार की नीयत पर शक होने लगा है।

टिकरी बॉर्डर पर बुजुर्ग किसान सभी से शांति बनाए रखने की अपील करते रहते हैं। लेकिन युवा किसानों का मानना है कि बातचीत फिर बेनतीजा ही रहने वाली है। भारतीय किसान संघर्ष समिति के युवा जिला अध्यक्ष विकास सीसर का कहना है कि, “हमें नहीं लगता कि बातचीत से कुछ हल निकलने वाला है। वे सिर्फ समय निकाल रहे हैं और मौका देख रहे हैं कि हमारे ऊपर मुकदमे कायम किए जाएं। दिल्ली के लिए बिजली, पानी और दूसरा सामान टिकरी बॉर्डर से ही जाता है।”

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सीसर कहते हैं, “सरकार कह रही है कि आंदोलन सिर्फ पगड़ीवाले कर रहे हैं जबकि हकीकत में यह सभी किसानों का आंदोलन है। यह एक घमंडी सरकार है। तमाम जगहों के किसान यहां जमा हैं और लगातार आते जा रहे हैं। हमने दुष्यंत चौटाला को इसलिए वोट दिया था क्योंकि वह खुद को किसान का बेटा कहता है, लेकिन अब वह बीजेपी के साथ है कुछ नहीं कर रहा है। एक बार चुनाव जीतने के बाद ये सब हमें भूल जाते हैं।”

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यहां मौजूद दूसरे यूवा आंदोलनकारियों में गुस्सा है। पंजाब के भटिंडा से आई मनिंगर कौर 12वीं की छात्रा है, लेकिन वह अपने भाइयों के साथ आंदोलन में आई है, जबकि पिता खेत संभाल रहे हैं। उसका कहना है कि, “क्लास ऑनलाइन हैं तो मैं कहीं से भी पढ़ाई कर सकती हूं। हमें यहां आना ही था क्योंकि यह हमारी जिंदगी का सवाल है। हम तो खेती से कमाए पैसे पर ही जीवित रहते हैं। हममें से बहुत से लोगों के पास बहुत थोड़ी सी जमीन है। इन कानूनों से छोटे किसान तो बरबाद हो जाएंगे क्योंकि ये कानून तो कांट्रेक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देते हैं और सबसे बड़ी एमएसपी को खत्म करते हैं।”

उसकी बात का बहुत से लोग समर्थन करते हैं जो इन कानूनों की वापसी तक यही डटे रहने के संकल्प के साथ यहां आए हैं।

इसी बीच कहीं से किसान एकता जिंदाबाद के नारे लगने लगते हैं।

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