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राजनीतिक इंतकाम का इतिहास लिखा गया तो मोदी-शाह के साथ योगी का नाम भी मोटे हर्फों में होगा

योगी की पुलिस इन दिनों जिस तरह काम कर रही है, उसमें कुछ भी संभव है। कोविड- 19 महामारी के दौरान लॉकडाउन और अनलॉक में भी पुलिस का खासा ध्यान इस पर है कि सीएए विरोधियों से किस तरह निबटा जाए। 

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सार्वजनिक तौर पर कहा ही था कि उनकी सरकार नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) का विरोध करने वालों से बदला लेगी। किसी निर्वाचित मुख्यमंत्री ने शायद ही पहले ऐसा कहा हो। लेकिन योगी ने न सिर्फ ऐसा कहा बल्कि वह ऐसा कर भी रहे हैं और इसके लिए साक्ष्यों को भी ताकपर रख दिया जा रहा है। इसके एक नहीं, कई उदाहरण हैं।

इस साल मार्च महीने में लखनऊ पुलिस ने राजधानी में बड़े-बड़े होर्डिंग लगा दिए थे जिनमें 53 ऐसे लोगों के नाम, फोटो और पते थे जिन पर 19 दिसंबर, 2019 को लखनऊ में दंगा फैलाने का आरोप लगाया गया था। इस सूची में अन्य लोगों के साथ पूर्व आईपीएस अफसर एस.आर. दारापुरी और एक्टिविस्ट सदफ जाफर के नाम भी थे। इन लोगों को उसी दिन यानी 19 दिसंबर को ही गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें कई हफ्ते जेल में गुजारने पड़े थे। लेकिन होर्डिंग्स वाली सूची में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष शाहनवाज आलम का नाम नहीं था। संभवतः इसकी वजह यह थी कि हिंसा भड़कने से पहले ही उन्हें कई अन्य लोगों के साथ पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था और पुलिस लाइंस ले आई थी। निश्चित तौर पर, जो व्यक्ति पुलिस की हिरासत में हो, वह उसी वक्त बाहर हिंसा में भागीदार कैसे हो सकता है? इस हिंसा के सिलसिले में 19 और 22 दिसंबर के बीच 55 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। लेकिन पुलिस लाइंस में रखे गए अन्य लोगों के साथ शाहनवाज आलम को भी छोड़ दिया गया था।

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लेकिन, यूपी में इन दिनों जैसा राज चलाया जा रहा है, उसमें कुछ भी संभव है। आलम को 29 जून को इसी आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया कि वह 19 दिसंबर को हिंसा भड़का रहे थे। पुलिस कह रही है कि वह तब से ही इस बारे में साक्ष्य जुटा रही थी। लेकिन पिछले साढ़े छह माह के दौरान पुलिस ने न तो उनसे कभी पूछताछ की, न उन्हें कोई साक्ष्य दिखाया। हां, यह जरूर है कि जून के आखिर में दायर चार्जशीट में उनका नाम भी ले लिया गया और वारंट या कोई कारण बताए बिना ही उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया। उनका नाम 19 दिसंबर को हिंसा भड़काने वालों में अचानक कैसे आ गया, इसका उत्तर फिलवक्त तो किसी के पास नहीं है।

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कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कहते हैं कि शाहनवाज उस दिन उनके साथ ही थे। वह सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे कांग्रेसियों के साथ थे। लल्लू व्यंग्यपूर्वक कहते हैं: अगर आलम हिंसा भड़काने वालों के अंग थे, तब तो मैं भी उसका हिस्सा था। अगर शाहनवाज दोषी हैं, तो मैं क्यों नहीं?

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शाहनवाज को 29 जून को 8:30 बजे शाम के आसपास जब पुलिस ने एक तरह से ‘अगवा’ किया, उस वक्त मानवाधिकार कार्यकर्ता आशीष अवस्थी भी उनके साथ थे। अवस्थी बताते हैं: हम लोग पार्टी की बोलेरो जीप में थे जब पुलिस ने गोल्फ लिंक अपार्टमेंट गेट पर हमारा रास्ता रोका। उन लोगों ने कोई कागजात नहीं दिखाया। उन्होंने सिर्फ शाहनवाज को पकड़ा और उन्हें पुलिस जीप में बिठा लिया। उन लोगों ने पार्टी जीप भी ले ली। हमने सोचा कि चूंकि शाहनवाज यूपीसीसी अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष हैं और इन दिनों स्थानीय पुलिस को कांग्रेस को परेशान करने के निर्दश हैं, इसलिए पुलिस उन्हें ले जा रही है। बाद में हमें पता चला कि उन्हें दिसंबर में सीएए विरोधी प्रदर्शन के लिए गिरफ्तार किया गया है।

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यह सब राजनीतिक बदले की कार्रवाई के तहत किया जा रहा है, यह दूसरों के मामले में पहले भी साफ हो चुका है। सदफ जाफर और पूर्व आईपीएस अफसर एस आर दारापुरी के मामले में भी पुलिस यह साबित करने में विफल रही है कि वे हिंसा भड़काने में शामिल थे। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 4 जनवरी, 2020 को उन्हें जमानत देते हुए कहा था कि सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हिंसा में उनकी भागीदारी के संबंध में कोई स्पष्ट साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है और पुलिस अभी और साक्ष्य जुटाने का प्रयास कर रही है क्योंकि मामले की जांच अभी जारी है। वैसे भी, दारापुरी का कहना है कि पुलिस ने उन्हें 18 दिसंबर से ही घर में बंद रखा हुआ था।

लेकिन योगी की पुलिस इन दिनों जिस तरह काम कर रही है, उसमें कुछ भी संभव है। कोविड- 19 महामारी के दौरान लॉकडाउन और अनलॉक में भी पुलिस का खासा ध्यान इस पर है कि सीएए विरोधियों से किस तरह निबटा जाए। तब ही तो उसने जून के तीसरे हफ्ते से ही इन लोगों को वसूली के नोटिस भेजना आरंभ कर दिया और चेतावनी दी कि ये पैसे जमा नहीं हुए तो कुर्की की कार्रवाई भी की जा सकती है। तथ्य यह भी है कि इस तरह की वसूली के खिलाफ हाईकोर्ट में पहले से ही मुकदमा चल रहा है और इसकी अगली सुनवाई हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में जुलाई के दूसरे हफ्ते में है। पुलिस इस मामले में भी मनमाने ढंग से नोटिस भेज रही है।

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रिहाई मंच के अध्यक्ष और अधिवक्ता मोहम्मद शोएब भी 19 दिसंबर, 2019 को अपने घर पर नजरबंद थे लेकिन वसूली का नोटिस उन्हें भी मिला है। इसी तरह, रंगकर्मी दीपक मिश्रा (दीपक कबीर) को भी वसूली का नोटिस मिला है। दीपक का कहना है कि वसूली के लिए लगाई गई विवादास्पद होर्डिंग्स में उनकी भी तस्वीर थी। जब उन्होंने इसका उत्तर दिया तो अफसरों ने उसे स्वीकार नहीं किया जबकि किसी भी मामले में आरोपी पक्ष को अपनी बात रखने का अधिकार संविधान में है।

प्रसिद्ध शायर मुनव्वर राना की बेटी सुमैया राना को भी पुलिस से नोटिस मिले हैं। राना का कहना है कि इसके साथ ही उन्हें जान से मारने की धमकियां भी मिल रही हैं। अज्ञात लोग अलग-अलग नंबरों से उन्हें कॉल कर रहे हैं। उन्होंने कॉल नंबर डिटेल के साथ पुलिस से इस बारे में शिकायत भी की लेकिन एफआईआर दर्ज करना तो दूर, पुलिस ने अर्जी तक को स्वीकार नहीं किया।

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