हालात

सपा-बसपा गठबंधन कायम रहा तो बुरी तरह कैराना भी हारेगी बीजेपी

गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में मिले नतीजों के बाद अब बीजेपी कैराना को लेकर चिंता में घिर गई है। अगर सपा-बसपा का यह गठबंधन कायम रहता है तो बीजेपी को कैराना में भी हार का मुंह देखना पड़ेगा। 

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया सपा-बसपा का गठबंधन कैराना में भी बिगाड़ सकता है बीजेपी का खेल

यह बात न केवल जमीनी सच्चाई है बल्कि आंकड़े भी इसी तरफ इशारा करते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट बीजेपी के सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद रिक्त हुई है। हुकुम सिंह 2014 में नाहिद हसन को हराकर यहां से सांसद चुने गए थे। उन्होंने नाहिद हसन को 2,86,828 वोटों से हराया था। हुकुम सिंह को कुल 5 लाख 65 हजार 909 वोट मिले थे। नाहिद हसन को 3 लाख 36 हजार मत मिले। तीसरे स्थान पर उनके सगे चाचा कंवर हसन रहे, जिन्हें 1 लाख  60 हजार वोट मिले थे। कैराना से रालोद के करतार भड़ाना को भी लगभग 50 हजार वोट मिले थे।

हाल ही में फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में सपा-बसपा और रालोद ने मिलकर चुनाव लड़ा और बीजेपी पर एकरफा जीत हासिल की। इस उपचुनाव में जो खास बात निकलकर आई वो ये है कि बीजेपी के अपने वोट बैंक में भी भारी गिरावट आ गई है। ऐसे में अगर सपा-बसपा और रालोद का गठबंधन कैरान में भी कायम रहता है तो बीजेपी को यहां से भी हार का मुंह देखना पड़ेगा।

दिवंगत सांसद हुकुम सिंह पिछले दिनों पलायन और अन्य दूसरे सांप्रदायिक मुद्दों को लेकर चर्चा में रहे थे, जिसके चलते उनके साथ-साथ चल रहा धर्मनिरपेक्ष वोटर कट गया। 2014 में जीत के बाद उन्हें केंद्र में मंत्री बनाए जाने की भी चर्चा थी, मगर ऐसा नहीं हुआ। उसके बाद 2016 में कैराना विधानसभा के उपचुनाव में उनके भतीजे अनिल चौहान को नाहिद हसन ने हरा दिया था। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में नाहिद हसन ने एक बार फिर अनिल चौहान को बुरी तरह हरा दिया। साफ दिखता है कि 2014 के कैराना लोकसभा चुनाव में हुकुम सिंह की जीत के बाद उनका कोई प्रत्याशी कैराना में नही जीत पाया है।

नये परिसीमन में सहारनपुर जनपद की दो  विधानसभा सीट नकुड़ और गंगोह भी कैरान में जोड़ दी गई हैं। गंगोह कांग्रेस नेता इमरान मसूद का घर है और नकुड़ से वो चुनाव लड़ते हैं। ये दोनों ही क्षेत्र उनके प्रभाव वाले हैं। यह अलग बात है कि इन दोनों विधानसभा सीट पर बीजीपी के प्रदीप चौधरी और धर्म सिंह सैनी विद्यायक हैं। मगर मसूद परिवार निश्चित तौर पर इन दोनों सीट को प्रभावित करता है। पिछली बार धर्मनिरपेक्ष वोटो में बंटवारा हो गया था, मगर इस बार का माहौल जुदा है।

कैराना लोकसभा सीट एक गुर्जर बहुल सीट है, यहां लगभग 3 लाख गुर्जर हैं। खास बात ये है कि इनमें आधे मुस्लिम गुर्जर हैं। यहां एक प्रसिद्ध नारा काफी लोकप्रिय है- 'गुर्जर -गुर्जर एक समान हिन्दू हो या मुसलमान'। इस नारे के जनक मुनव्वर हसन थे, जो विधायिका के चारों सदनों का प्रतिनिध्त्वि करने वाले पहले भारतीय नेता हैं। इसके लिए उनका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है। मुनव्वर हसन कैरान से सांसद हुआ करते थे, जिनकी एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी। जिसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में मुनव्वर हसन की पत्नी तब्बसुम ने हुकुम सिंह को हरा दिया था।

लेकिन पिछले कुछ समय से हुकुम सिंह इलाके के गुर्जरों को भी दो पक्षो में बांटने में कामयाब हो गए थे। अब हुकुम सिंह के निधन के बाद बीजेपी यहां से उनकी बेटी मृगांका सिंह को चुनाव लड़वाने की बात कर रही है। अगर ऐसा नहीं होता है तो बीजीपी की हार और आसान हो जाएगी। क्योंकि इस लोकसभा सीट पर 40 % मुस्लिम वोट हैं, जिसमें दलित ,जाट और अन्य सेक्युलर वोटों के जुड़ जाने के बाद ज्यादा कुछ नहीं बचेगा।

एक खास बात यह है कैराना में हुकुम सिंह के रहते, यहां से कोई बड़ा बीजेपी नेता कभी बन नही पाया। यूपी सरकार में मंत्री सुरेश राणा इसी लोकसभा क्षेत्र की एक अन्य विधानसभा सीट थानाभवन से विधायक हैं। इस सीट पर उनसे काफी नजदीकी अंतर से हारने वाले पूर्व विधायक और कांग्रेस नेता राव वारिश कहते हैं, "जनता में बीजेपी सरकार के खिलाफ आक्रोश है और आंकड़ो पर ही नहीं, बीजेपी जमीन पर भी एकतरफा हार जाएगी। कैराना के एक युवा मतदाता प्रवेश गुर्जर कहते हैं, "बीजेपी के नेताओं ने तमाम झूठ-प्रपंच गढ़ने के बाद सबसे बड़ा पाप भाईयों में बंटवारे का किया है। हमारे यहां गुर्जर कभी खुद को हिन्दू-मुस्लिम नही समझता था। मगर 2014 में इनके बीच साजिश के बीज बोए गए। बाबू जी (हुकुम सिंह ) की हम बहुत इज्जत करते थे, मगर अब हम नफरत वालों के साथ नहीं जा सकते।”

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