हालात

लॉकडाउन में कैसे होगी सप्लाई, मजदूरों के पलायन से ट्रांसपोर्ट उद्योग पर संकट, माल चढ़ाने वाला भी नहीं मिल रहा

पहले से आर्थिक मंदी झेल रहे ट्रांसपोर्ट उद्योग को देशव्यापी लॉकडाउन के बाद शहरों से लाखों श्रमिकों के रातों-रात पलायन ने हिलाकर कर रख दिया है। मजदूरों के गायब होने से माल ढुलाई करने वाले लाखों ट्रकों में सामान लोड-अनलोड करने वालों की भारी कमी हो गई है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

पूरे देश में 24 मार्च 2020 की रात से बिना पूर्व तैयारी और सोचे समझे घोषित किए गए लॉक डाउन ने भारत की चारों दिशाओं, राज्यों, शहरों, जिलों और गांवो तक दिन-रात खाने-पीने के जरूरी सामान से लेकर तमाम आवश्यक साजो-सामान की ढुलाई में जुटे ट्रक उद्योग पर कई तरह का संकट खड़ा कर दिया है।

पहले से आर्थिक मंदी मुश्किलें झेल रहे इस बड़े क्षेत्र को अब देशव्यापी लॉकडाउन के बाद शहरों से लाखों श्रमिकों के रातों-रात के पलायन ने हिलाकर कर रख दिया है। मजदूरों के गायब होने से ट्रांसपोर्ट कारोबार में आवश्यक वस्तुओं की ढुलाई की प्रक्रिया में जुटे लाखों ट्रकों में सामान लोड-अनलोड करने वालों की कमी ने अचानक विकराल समस्या खड़ी कर दी है।

आवश्यक और अनावश्यक माल के लिए ट्रकों को आवाजाही में केंद्र सरकार की ओर से छूट दिये जाने के ऐलान के बावजूद तनाव और सुरक्षा कारणों से ज्यादातर ट्रक ड्राइवर, हेल्पर्स अभी भी सड़कों पर चलने या माल उठाने को तैयार नहीं हैं। इन हालात से चिंतित विशेषज्ञों को इस विशाल उद्योग पर छाए इस श्रमिक संकट का जल्द समाधान होता नहीं दिख रहा है।

देश में करीब 12.47 लाख से ज्यादा नेशनल परमिट वाले गुड्स ट्रक हैं, जो माल ढुलाई का काम करते हैं। ट्रक ऑपरेटर्स की मानें तो इनमें 4 से 5 लाख ट्रक ऐसे हैं, जो 24 मार्च की रात 8 बजे पीएम मोदी द्वारा लॉकडाउन के ऐलान के बाद या तो आधे रास्ते मे थे या जरूरी सामान लोडिंग के बाद अपने गंतव्य स्थान की ओर रवाना हो चुके थे।

ऑल इंडिया ट्रक ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के अध्यक्ष कुलतरण सिंह अटवाल कहते हैं, "पीएम मोदी ने मौजूदा नाजुक दौर में लॉकडाउन की घोषणा के पहले इस बात पर जरा भी विचार तक नहीं किया कि इतने कठोर कदम के बाद बाजार और मंडियों में लोगों की आम जरूरतों का सामान पहुंचाने देश ङर में निकले ट्रकों में ही यह सामान लदे-लदे खराब हो जाएंगे और फिर इसकी भरपायी कैसे होगी।"

हालांकि, अटवाल कोरोना संकट से इनकार नहीं करते और कहते हैं, "कोरोना संकट का खतरा जितना आम लोगों पर है, उतना ही ट्रांसपोर्ट उद्योग पर भी है। इस महामारी से निपटने में हम सरकार के साथ हैं, लेकिन अगर 130 करोड़ की आबादी के देश में घरों में तीन सप्ताह तक कैद हुए लोगों को खाने-पकाने के सामान की सप्लाई नहीं हुई तो करोना से कहीं ज्यादा लोग भूख और दवाओं की आपूर्ति के बगैर मर सकते हैं।”

लॉकडाउन के आदेश ने जिस तरह देश के विभिन्न राज्यों के बीच सड़क संपर्क तोड़ा और उसकी वजह से विभिन्न राज्यों और वहां की सीमाओं पर पुलिस द्वारा की गई सड़कों की नाकेबंदी ने लाखों ट्रक ड्राइवरों पर मुसीबतों का पहाड़ गिरा दिया, जिन्हें अचानक लिए गए इस फैसले की वजह से जहां-तहां जंगलों और रास्तों में भूखे-प्यासे फंसना पड़ा।

दरअसल सरकार के 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा के साथ यह नहीं बताया गया कि जो वाहन या ट्रक रास्ते में हैं, उन पर यह लॉकडाउन लागू होगा या नहीं! इससे पैदा हुई अफरातफरी का नतीजा यह हुआ कि हजारों की तादाद में ड्राइवर और हेल्पर डर के मारे रास्ते में ही ट्रक को लावारिस छोड़कर अपने घरों की ओर भागने को मजबूर हो गए। कई ट्रकों में करोड़ो का सामान, दवाएं, दवा बनाने वाला कच्चा माल, मेडिकल उपकरण, साबुन, मास्क बनाने का कच्चा माल, और जल्दी खराब होने वाली साग-सब्जियां और फल लदे थे।

लॉकडाउन की अचानक घोषणा के बाद कश्मीर से कन्याकुमारी और नागालैंड से दिल्ली-अमृतसर तक हजारों किमी के सफर पर निकले ट्रक ड्राइवर और हेल्परों के सामने सबसे ज्यादा मुसीबत रास्ते में ढाबों के बंद होने से खाने-पीने की आई। लॉकडाउन के बाद हाईवे के ढाबों के साथ ही पेट्रोल पंपों को भी राज्यों की पुलिस और प्रशासन द्वारा जबरन बंद कराया गया।

कलकत्ता से वर्धमान के बीच एनएच नंबर 2 पर एक ढाबा है- शेरे पंजाब। यहां पर नियमित तौर पर रोजाना सैकड़ों ट्रक ड्राइवर भोजन-पानी के लिए रुकते हैं। वहां फंसे ट्रक ड्राइवर और हेल्परों ने फोन पर बताया कि उन्हें चाय और भोजन तो दूर पीने का पानी तक नसीब नहीं हो पाया। दूसरा संकट यह है कि राजमार्गों पर मोटर मैकेनिक से लेकर टायरों में हवा भरने वालों की भी दुकानें लंबे समय तक के लिए बंद कर दी गईं।

दिल्ली में टांसपोर्ट संगठनों के कामकाज से जुड़े नवीन गुप्ता कहते हैं, "राजमार्गों और सड़कों पर ट्रकों से जबरन लिफ्ट मांगने वाली बेकाबू भीड़ और भूखे प्यासे लोगों के हिंसक होने और कई ट्रकों से अनाज, फल और दूसरे बेशकीमती सामान की लूटपाट व छीना झपटी की चिंताजनक घटनाओं से देशभर में ड्राइवरों और हेल्परों की जान पर खतरा बढ़ गया है। उनका कहना है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से इस दिशा में तत्काल कदम उठाने के लिए आग्रह किया जा चुका है।

यात्री ट्रेनों के पहिए पिछले कई दिनों से जहां के तहां जाम हो जाने के बाद ट्रकों पर बढ़ी निर्भरता के बावजूद सरकार की ओर से ट्रक और गुड्स ट्रांसपोर्टर्स के साथ कोई बात तक नहीं की गई। पंजाब की सबसे बड़ी सामानों की मंडी गोविंदगढ़ के निकट खन्ना में ट्रक ट्रांसपोर्ट यूनियन के अध्यक्ष अमरजीत सिंह खटरा कहते हैं, "हालात यहां तक खराब हो चुके हैं कि लोगों को लाखों रोजगार देने वाला ट्रांसपोर्ट सेक्टर कंगाली के कगार पर खड़ा हो चुका है। जो माल उठाया, वह लेबर के अभाव में अनलोड नहीं हो रहा और जो नए माल के आर्डर मिल रहे हैं, उन्हें लादने के लिए भी श्रमिक नहीं मिल रहे। इससे ट्रकों के जरिये आमदनी ठप होने से टांसपोर्ट उद्योग ही रसातल में जाने के कगार पर है।”

उत्तर भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में सरकारी अनाज के ट्रकों की आवाजाही के अलावा सब कुछ ठप पड़ा है। चारधाम यात्रा के मुख्यद्वार ऋषिकेश और हरिद्वार से आम जरूरतों की वस्तुओं के माल और जरूरी चीजों की आपूर्ति सरकार की घोषणा के बावजूद पूरी तरह ठप है। गढ़वाल ट्रक ओनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष दिनेश बहुगुणा कहते हैं, "लॉकडाउन के कारण सारे आढ़तियों की दूकानों और गोदामों पर ताले लगे हैं। सैकड़ों की तादाद में ट्रक और बसें जहां के तहां खड़ी हैं। आने वाले दिनों में पर्वतीय क्षेत्रों और यात्रा मार्गो में माल आपूर्ति में और भी मश्किलें आएंगी क्योंकि गुड्स वाहनों में माल चढ़ाने-उतारने वाले मजदूर यहां अपने ठिकानों को छोड़कर अपने गांवो की ओर पलायन कर चुके हैं।

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