अपनी मांग को लेकर किसान एकबार फिर से सड़कों पर हैं। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, और पंजाब समेत कई राज्यों को किसानों ने दिल्ली कूच का ऐलान कर दिया है। इधर, दिल्ली से लगे सभी सीमाओं को सील कर दिया गया है। दिल्ली के चारों तरफ की सीमाओं पर जबरदस्त किलेबंदी की गई है। शंभू बार्डर पर किसानों को रोकने के लिए आंसू गैस के इस्तेमाल की भी खबरें हैं। इससे पहले सोमवार रात को किसान नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के बीच बातचीत भी हुई, लेकिन इसमें कोई हल नहीं निकल सका। जिसके बाद किसानों ने दिल्ली के लिए कूच कर दिया। चुनाव नजदीक है, ऐसे में किसानों की नाराजगी मोदी सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है। हालांकि सरकार की तरफ से कोशिश हो रही है कि यह आंदोलन जल्दी से जल्दी खत्म किया जा सके। लेकिन बिना मांग पूरी हुए किसान वापस नहीं लौटने वाले। इस बार का आंदोलन भी पिछली बार से कई मायनों में अलग है। यही वजह है कि सरकार परेशान दिख रही है!
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कहा जा रहा है कि इस बार किसान 2021 के अपेक्षा ज्यादा तैयारी से निकले हैं। उनके पास एक सशक्त नेतृत्व भी है। किसानों का यह मोर्चा गैर राजनीति है और इसमें किसान मजदूर मोर्चा के बैनर तले 250 किसान संघ है जो भाग ले रहे हैं। वहीं इस मोर्चे को 150 से ज्यादा यूनियनों का समर्थन भी प्राप्त है। किसान इस बार सरकार द्वारा किए गए उस वक्त के वादों को पूरा कराने का है। चुनाव का वक्त किसी भी सरकार पर सबसे ज्यादा दबाव बनाने का होता है। यही वजह है कि किसानों ने चुनाव से ऐन पहले अपने वादों को याद दिलाने के लिए सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उन्हें पता है कि चुनाव हो जाने के बाद उनकी बातों पर उतनी गौर नहीं की जाएगी।
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किसान पहले की कह चुके हैं कि उनका और मोर्चा और प्रदर्शन दोनों का राजनीति से कोई लेना देना नहीं है। बस वो अपनी हक के लिए फिर से सड़क पर उतरे हैं। बात करें किसान संगठनों की तो, इसके समन्वयक भारतीय किसान यूनियन के सिधुपुर फॉर्म के अध्यक्ष जगजीत सिंह दल्लेवाल हैं। गौरतलब है कि 2021 के प्रदर्शन के दौरान यह संगठन संयुक्त किसान मोर्चा से अलग हो गया था। इस प्रदर्शन में एक और संगठन जिसका नाम केएमएम है, शामिल है। इसका गठन पंजाब के यूनियन किसान मजदूर संघर्ष समिति के संयोजक सरवन सिंह पंडेर ने किया था। 2021 वाले किसान आंदोलन में यह संगठन शामिल नहीं हुआ था। इन्होंने दिल्ली बॉर्डर पर अपना एक अलग मंच बनाया था। केएमएम में देश के 100 से ज्यादा किसान यूनियनें शामिल हैं।
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न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिए कानून किसानों की सबसे अहम मांग है। किसान सरकार पर वादा खिलाफी के भी आरोप लगा रहे हैं।
किसान चाहते हैं कि स्वामीनाथन आयोग की जो भी सिफारिशें थीं उसे लागू किया जाए।
किसान कृषि ऋण माफ करने की भी मांग कर रहे हैं।
लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों को न्याय।
भारत को डब्ल्यूटीओ से बाहर निकालना।
कृषि वस्तुओं, दूध उत्पादों, फलों, सब्जियों और मांस पर आयात शुल्क कम करने के लिए भत्ता बढ़े।
किसानों और 58 साल से अधिक आयु के कृषि मजदूरों के लिए पेंशन योजना (10,000 रुपये प्रतिमाह)।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में सुधार के लिए सरकार की ओर से स्वयं बीमा प्रीमियम का भुगतान करना।
भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 को उसी तरीके से लागू किया जाए और केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को दिए गए निर्देश रद्द हो।
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