दो करोड़ घर बनाने के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) में कई स्तरों पर गड़बिड़ियां सामने आने लगी हैं और सारे संकेत बताते हैं कि अब सरकार का ध्यान गरीबों के बजाए मध्यवर्ग पर है। एक तरफ मध्य वर्ग को होम लोन पर ब्याज में सब्सिडी दी जा रही है, वहीं झुग्गी वासियों के लिए मकान बनाने पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर नरेंद्र मोदी ने 2014 में प्रचार के दौरान वादा किया था कि अगर उनकी सरकार बनती है तो 2022 तक सब को घर दिया जाएगा। सरकार बन गई और इसके एक साल बाद पीएम मोदी ने जून, 2015 में प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) की घोषणा की। इस योजना में यूपीए सरकार के दौर की तीनों योजनाओं को शामिल कर लिया गया। योजना का लक्ष्य साल 2022 तक दो करोड़ घर बनाने का रखा गया।
योजना शुरु होने के करीब साढ़े तीन साल बाद आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि अब तक 65 लाख से अधिक घरों को मंजूरी दी गई है और इनमें से 12.87 लाख घर बन चुके हैं। लेकिन मंत्रालय की वेबसाइट www.mohua.gov.in पर उपलब्ध स्टेटस रिपोर्ट को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि इसमें यूपीए सरकार के आंकड़ों को भी शामिल कर लिया गया है।
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इस रिपोरेट में तीन जगहों पर स्टार लगाए गए हैं (देखें, ग्राफिक्स)। इसमें लिखा गया है कि इनमें जेएनएनयूआरएम के अधूरे प्रोजेक्ट भी शामिल हैं। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि जो घर बन चुके हैं, उनमें से जेएनएनयूआरएम (यह योजना यूपीए काल में शुरू हुई थी, जिसका पूरा नाम जवाहर लाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूअल मिशन है) के कितने घर शामिल हैं, क्योंकि केंद्रीय आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय की वर्ष 2014-15 की रिपोर्ट के मुताबिक, जेएनएनयूआरएम के तहत 31 दिसंबर, 2014 तक 887 शहरों में 12.26 लाख घरों के निर्माण की मंजूरी दी गई। इनमें से 8,71,818 घरों का निर्माण पूरा हो चुका है और इनमें से 6,64,882 घरों में लोग रहने भी लगे हैं।
अपने लक्ष्य से पिछड़ती योजना को अपने रिपोर्ट कार्ड में दुरुस्त रखन के लिए इस योजना के मूल लक्ष्य को घटाकर आधा कर दिया गया है। यानी पहले जहां 2022 तक दो करोड़ घर बनाने का लक्ष्य था अब उसे घटाकर 2019 तक एक करोड़ घर कर दिया गया है।
प्रधानमंत्री आवास योजना के मूल रूप से चार अंग या कंपोनेंट हैं। इसमें सबसे अहम है- झुग्गीवासियों को पक्के मकान देने के लिए शुरू की गई इन-सिटू स्लम रिडेवलपमेंट स्कीम (आईएसएसआर)। यह योजना यूपीए सरकार के दौर की है। इस योजना के तहत झुग्गीवासियों के लिए उसी जगह पक्के मकान बनाए जाने हैं, जहां वे रहते हैं। योजना में झुग्गियों की जमीन प्राइवेट बिल्डर को दी जाती है। बस्ती में बसे लोगों के लिए अस्थायी आवास का इंतजाम किया जाता है और फिर बिल्डर उस जमीन पर बहुमंजिला आवास बनाता है। बदले में सरकार एक लाख रुपये प्रति घर और झुग्गी बस्ती की जमीन का एक हिस्सा बिल्डर को दे देती है, जिसका वह कॉमर्शियल इस्तेमाल कर सकता है।
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि आईएसएसआर स्कीम के तहत अब तक लगभग 2,200 घर ही बन पाए हैं। ये घर गुजरात में बने हैं। लेकिन इन घरों के लिए मंजूरी यूपीए सरकार में ही मिल गई थी। उसके बाद से गुजरात में कुछ प्रोजेक्ट पर काम चल रहे हैं लेकिन दूसरे किसी राज्य में काम तक नहीं चल रहा है। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा में भी प्रस्ताव तो बनाए गए हैं, लेकिन इन्हें मंजूरी नहीं मिल पाई है (देखेंः ग्राफिक)
शहरी स्लम के बारे में 2012 में हुए नेशनल सैंपल सर्वे में पाया गया कि देश में लगभग 33,510 स्लम बस्तियां हैं। इनमें से 13,761 अधिसूचित हैं और 19,749 गैर अधिसूचित। इनमें लगभग 88 लाख झुग्गियां हैं। सर्वे के मुताबिक, अधिसूचित स्लम बस्तियों में 56 लाख और गैर अधिसूचित झुग्गी बस्तियों में 32 लाख झुग्गियां हैं। लेकिन ये आंकड़े बताते हैं कि प्रधानमंत्री आवास योजना में झुग्गीवासियों की जमकर अनदेखी हो रही है। सरकार का पूरा ध्यान मध्यम वर्ग को लुभाने पर है।
आपको ध्यान होगा कि सरकार ने उन लोगों से गैस सब्सिडी छोड़ने की अपील की थी जिनकी सालाना आय 10 लाख या इससे अधिक है। इसलिए आपको यह बात थोड़ी अजीब लग सकती है कि सरकार आवास योजना के लिए ऐसे लोगों को 2.35 लाख रुपये की सब्सिडी दे रही है, जिनकी सालाना आय 18 लाख है, मतलब वे 1.50 लाख रुपये प्रति महीना कमा रहे हैं।
2012 में सरकार द्वारा गठित कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश के शहरों में साल 2012 तक लगभग 1 करोड़ 87 लाख 80 हजार घरों की कमी है। इसमें कमजोर आय वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए 1.05 करोड़, निम्न आय वर्ग (एलआईजी) के लिए 74 लाख और मध्य आय वर्ग के लिए 8 लाख 20 हजार घरों की जरूरत बताई गई थी। मतलब, ईडब्ल्यूएस और एलआईजी श्रेणी के लिए लगभग 96 फीसदी घरों की कमी थी। इसके बाद जो भी योजनाएं बनीं, उनमें ईडब्ल्यूएस औैर एलआईजी को ही महत्व दिया गया। लेकिन जुलाई, 2017 में सरकार ने अचानक फैसला लिया और प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत होम लोन पर मिलने वाली ब्याज सब्सिडी का फायदा मध्यम आय वर्ग (एमआईजी) को भी दिया जाने लगा।
दरअसल, सरकार ने 17 जून, 2015 को क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम की घोषणा की थी। इसमें ईडब्ल्यूएस और एलआईजी वर्ग के लोगों को होम लोन पर 6.5 फीसदी ब्याज सब्सिडी दी जानी थी जो अधिकतम लगभग 2.67 लाख रुपये होती। लेकिन दो साल बाद जुलाई, 2017 को घोषणा की गई कि एमआईजी श्रेणी में 12 लाख तक सालाना कमाने वाले व्यक्ति को होम लोन पर 4 फीसदी और 18 लाख रुपये सालाना कमाने वाले को 3 फीसदी तक ब्याज सब्सिडी दी जाएगी, जो लगभग 2.35 लाख रुपये होगी।
इस सब्सिडी स्कीम पर नजर रखने के लिए मंत्रालय ने एक कमेटी का गठन किया। इस कमेटी की आखिरी बैठक 10 जुलाई, 2018 को हुई। इसमें बताया गया कि एक साल के दौरान एमआईजी श्रेणी के 42,868 लोगों को सब्सिडी दी गई है, जबकि उसके मुकाबले तीन साल के दौरान 1,60,969 ईडब्ल्यूएस और एलआईजी श्रेणी के लोगों को सब्सिडी दी गई।
लेकिन, 31 जुलाई को हुई मॉनीटिरिंग कमेटी में एक और महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया और बैंकों से कहा गया कि वे ईडब्ल्यूएस और एलआईजी श्रेणी के मुकाबले एमआईजी श्रेणी को अधिक लोन दें। 31 जुलाई, 2018 को हुई इस मीटिंग के मिनट्स की प्रति नवजीवन के पास है। इसमें बताया गया कि प्रधानमंत्री आवास योजना- क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम के तहत 2018-19 में 5,10,000 लोगों को ब्याज सब्सिडी दी जाएगी। बैठक में सरकारी बैंकों को निर्देश दिए गए कि वे अपने टारगेट का 60 फीसदी फायदा एमआईजी श्रेणी के लोगों को दें।
इससे चुनावी साल में मध्यम वर्ग को होम लोन सब्सिडी बांटने की सरकार की मंशा साफ दिखती है। इस मकसद को हासिल करने के लिए मंत्रालय की ओर से एमआईजी श्रेणी को सब्सिडी देने के मकसद से 28 नवंबर को 840 करोड़ रुपये नेशनल हाउसिंग बैंक और 10 करोड़ रुपये हुडको को अतिरिक्त बजटीय रिसोर्स के तौर पर जारी किए गए हैं। इन दोनों पत्रों की प्रतियां भी नवजीवन के पास हैं।
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