हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला वैसे तो इन दिनों गुलजार रहती है। मैदानों की झुलसाने वाले गर्मी से राहत के लिए पूरे देश से लोग पहाड़ों की रानी की तरफ दौड़े चले आ रहे होते हैं। फिर अभी तो चुनाव भी हैं। लेकिन बेहद हैरान करने वाली बात है कि न तो यहां पर्यटक हैं और न कोई चुनावी हलचल। चुनाव प्रचार के आखिरी दिन भी यानि 30 मई को यहां पसरी खामोशी आश्चर्यजनक है। न कोई पोस्टर-बैनर, न नेताओं और जनता का किसी तरह का जमघट।
चुनाव को लेकर पूरी तरह छायी उदासीनता गंभीर है। पर इसी सन्नाटे में शायद पूरी कहानी छिपी है। हिमाचल में पिछले कुछ समय में जिस तरह के सियासी घटनाक्रम हुए हैं, उनमें शामिल किरदारों को यह जनता का अपनी तरह से शायद दिया जा रहा जवाब है। मतदाताओं की इस खामोशी में एक अंडरकरंट भी है, जो मतदान के दिन किस रूप में सामने आएगा, यह देखने वाली बात होगी।
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हिमाचल प्रदेश में लोकसभा चुनाव से ज्यादा 6 विधानसभा क्षेत्रों में हो रहे उपचुनाव चर्चा का विषय हैं। लोगों का मानना है कि यह उपचुनाव हिमाचल प्रदेश पर अनावश्यक थोप दिए गए हैं। इनकी अभी कोई जरूरत नहीं थी। सरकार गिराने को लेकर जिस तरह की साजिश हुई उससे देवभूमि के लोग खुश नहीं हैं। शायद यही वजह है कि हिमाचल का मतदाता चुनाव को लेकर उदासीन है।
शिमला में भी यही साफ तौर पर दिख रहा है। लोग बिल्कुल खामोश हैं। काफी कुरेदने पर वह जवाब देते हैं। शिमला के कंडाघाट में जनरल स्टोर चला रहे वीरेंद्र सिंह कहते हैं कि महज डेढ़ साल बाद हिमाचल प्रदेश की सरकार को गिराने की जो कोशिश हुई उसकी जरूरत क्या थी। यदि 5 साल यह सरकार पूरे कर लेती तो कौन सी आफत आ जाती। फिर काफी कुरेदने पर वह केंद्र सरकार की तानाशाही की बात करते हैं। कहते हैं कि सब कुछ अडानी को दिया जा रहा है। जो अडानी को पसंद आ जाता है वह केंद्र सरकार उसको दे देती है। फिर वह जियो के कुछ कारनामें गिनाते हैं।
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हिमाचल में अडानी एक मुद्दा है। खास कर शिमला की सेब बेल्ट में। यहां सेब मार्केट का सबसे बड़ा खिलाड़ी अडानी है। साथ ही विदेशी सेब पर इंपोर्ट ड्यूटी न बढ़ाने से पूरी सेब बेल्ट केंद्र की बीजेपी सरकार से नाराज है। इंपोर्ट ड्यूटी न बढ़ने से भारी मात्रा में आ रहे विदेशी सेब के चलते हिमाचल के सेब बागवानों को सही रेट नहीं मिल रहे हैं। यह यहां एक बड़ा मुद्दा है। शिमला में कर्म सिंह कहते हैं कि बीजेपी के शीर्ष नेता झूठ बोलते हैं। बिना नाम लिए शायद उनका इशारा प्रधानमंत्री की तरफ था। वह कहते हैं इतना झूठ बोलने की जरूरत क्या है। हिमाचल में अनावश्यक सरकार गिराने की कोशिश हुई। इतनी भीषण आपदा आई, लेकिन केंद्र से कोई मदद नहीं मिली।
शिमला की पंथाघाटी में मिले बालक राम बताते हैं कि हमारे गांव में भी हिमाचल में आई प्राकृतिक आपदा के वक्त एक-दो लोग बह गए थे। राज्य की सरकार ने अपने स्तर पर तो मदद की, लेकिन केंद्र की सरकार ने कोई पैसा नहीं दिया। बावजूद इसके वह कहते हैं कि बीजेपी को जो भी वोट मिलेगा वह मोदी के नाम पर ही मिलेगा। बालक राम शिमला के बीजेपी सांसद सुरेश से भी नाराजगी जताते हैं। वह कहते हैं कि जीतने के बाद कभी क्षेत्र में उनका चेहरा नहीं दिखा।
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शिमला में नाम न छापने की बात कहते हुए एक बड़े अधिकारी कहते हैं कि इस चुनाव में लोगों की कोई रुचि नहीं है। लोगों ने सोच लिया है कि बस मतदान वाले दिन जिसको वोट देना है उसको जाकर डाल देंगे। फिर वह ओपीएस की बात करते हैं। वह कहते हैं कि एक सरकारी कर्मचारी 60 साल में रिटायर होने के बाद अपनी सामाजिक सुरक्षा चाहता है। बीजेपी की सरकारें यह भी उसे नहीं देना चाहतीं। यह नौकरियां खत्म कर रहे हैं। अग्निवीर लागू कर दी। अब 4 साल बाद युवा सेना से रिटायर होकर आएगा तो क्या करेगा। वह अपराध ही तो करेगा। हथियार चलाने में वह प्रशिक्षित होगा तो अपराध के सिवाय क्या करेगा। फिर वह हल्के मूड में मंडी से बीजेपी प्रत्याशी कंगना रनौत को लेकर कहते हैं कि कंगना ने चुनाव को नॉन सीरियस बना दिया है। ऐसे तो फिर कांग्रेस को राखी सावंत को चुनाव में उनके खिलाफ उतारना चाहिए था।
शिमला से एमएलए हरीश जनार्था कहते हैं कि चुनाव को लेकर हम पॉजिटिव हैं। पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और ठियोग से विधायक कुलदीप सिंह राठौर कहते हैं कि हमारी तरफ से जनता चुनाव लड़ रही है। शिमला लोकसभा क्षेत्र में आते सोलन के गंज बाजार में 70 साल से पैतृक शू स्टोर चला रहे अशोक कहते हैं कि हिमाचल प्रदेश में 5 साल के लिए चुनी गई सरकार को डेढ़ साल में गिराने की क्या जरूरत थी। हिमाचल में आई प्राकृतिक आपदा के वक्त केंद्र सरकार की ओर से कोई मदद न मिलने को वह गलत मानते हैं। वह कहते हैं कि शिमला लोकसभा में सिरमौर जिला चुनाव का डिसाइडिंग फैक्टर होगा।
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सोलन के माल रोड में मिले पंकज अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को बड़ा मुद्दा मानते हैं, लेकिन वहीं मिले श्याम लाल कहते हैं कि धर्म के नाम पर आप किसी को ब्लैकमेल नहीं कर सकते। लोगों के लिए रोजी-रोटी बड़ा सवाल है। फिर हिमाचल प्रदेश में आई प्राकृतिक आपदा में केंद्र से कोई मदद न मिलने की वह बात करते हैं। वह खुद सवाल करते हैं कि केंद्र की बीजेपी सरकार जो कर रही है क्या वह ठीक है। हिमाचल प्रदेश में 1 जून को अंतिम चरण में हो रहे मतदान के लिए चुनाव प्रचार के अंतिम दिन यानि 30 मई की शाम को सोलन के मॉल रोड में प्रियंका गांधी के रोड शो में भारी भीड़ उमड़ी। दुकानों के बाहर और रेस्टोरेंट और दफ्तरों की बालकनी में खड़े लोग प्रियंका गांधी का इस्तकबाल कर रहे थे। लोग यह भी बता रहे थे किस तरह सोलन के ढोडो ग्राउंड में प्रियंका गांधी की हुई पिछली रैली में ऐतिहासिक भीड़ उमड़ी थी।
बेरोजगारी, मंहगाई, अग्निवीर और ओपीएस के साथ हिमाचल प्रदेश की अपर बेल्ट यानी शिमला में सेब पर केंद्र द्वारा इंपोर्ट ड्यूटी न बढ़ाना एक बड़ा मुद्दा है। सेब बागवान शिमला में एक डिसाइडिंग फैक्टर होते हैं। हिमाचल में आई सदी की सबसे भीषण प्राकृतिक आपदा में केंद्र की बीजेपी सरकार की ओर से मदद के नाम पर फूटी कौड़ी न देना भी लोगों के जेहन में है।
इन सबसे उपर हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा की एक सीट के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस के 6 बागी विधायकों की बीजेपी प्रत्याशी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग के बाद राज्य की सरकार को बीजेपी की ओर से की गई गिराने की कोशिश सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है। देवभूमि के लोगों के लिए इस तरह की यह पहली घटना थी। लोग सब देख कर हैरान थे। हिमाचल के लोग सामान्यतया इस तरह की सियासत को पसंद नहीं करते।
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राज्य की सरकार ने भी इसे मुद्दा बना दिया है। उसका कहना है कि हिमाचल की जनता बेईमानों का कभी साथ नहीं देती। हिमाचल देवी-देवताओं की भूमि है। यहां के लोग ईमानदार हैं। वर्तमान चुनाव यह तय करेगा कि ईमानदारी जीतनी और बेईमानी हारनी चाहिए। कांग्रेस के छह पूर्व और तीन आजाद विधायकों ने खुद को बीजेपी की राजनीतिक मंडी में बेचा है, इसलिए उन्हें जनता सबक सिखाएगी। सरकार का कहना है कि यह चुनाव मुख्यमंत्री की कुर्सी या सरकार बचाने का नहीं, लोकतंत्र को बचाने का है। जनता का वोट 1 जून को तय करेगा कि लोकतंत्र की ताकत जनबल है या धनबल है।
अगर हिमाचल प्रदेश पूरे देश को लोकतंत्र बचाने के लिए दिशा दिखा सकता है तो 1 जून का समय बिल्कुल सही है। सरकार का कहना है कि जनता के वोट से चुनकर आये विधायकों को दिल्ली में बैठी सरकार नोट के दम पर खरीद ले तो वोट का क्या मूल्य है। चुने हुए विधायकों को खरीदना जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है। इस समय सवाल किसी पार्टी का नहीं, उनको सबक सिखाने का है, जिन्होंने जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है।
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हिमाचल में सरकारी कर्मचारियों को ओपीएस देने के बाद एनपीएस में उनका दिया गया अंशदान केंद्र के पास फंसे 9000 करोड़ रुपए भी एक मुद्दा बन गया है। आचार संहिता लागू होने से पहले 18 साल से ऊपर की बेटियों और महिलाओं को 1500 रुपए पेंशन प्रति माह देने की योजना लागू करने के विरोध में जयराम ठाकुर के चुनाव आयोग जाने पर भी लोग सवाल कर रहे हैं। लोग बीजेपी सांसदों से यह भी सवाल पूछ रहे हैं कि आपदा के वक्त तीनों बीजेपी सांसदों की जुबान प्रधानमंत्री के सामने मदद के लिए क्यों नहीं खुली। ये सभी वह सवाल हैं, जो 2014 और 2019 में हिमाचल की चारों सीट जीतने वाली बीजेपी के सामने इस बार खड़े हो गए हैं। मुकाबला यहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही है। दोनों के बीच कोई थर्ड प्लेयर नहीं है। साफ-सुथरी राजनीति में विश्वास रखने वाले हिमाचल के मतदाता प्रदेश में सियासी उठापटक से खासे नाखुश हैं। ये पूरा एपीसोड बीजेपी के लिए सेल्फ गोल की तरह लग रहा है।
शिमला लोकसभा सीट पर पिछले 3 चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस को मात दी है। इस हार का सिलसिला तोड़ने के लिए इस बार कांग्रेस ने 6 बार सांसद रहे केडी सुल्तानपुरी के बेटे और कसौली से विधायक विनोद सुल्तानपुरी को उतारा है। बीजेपी ने पिछली बार जीते सुरेश कश्यप पर फिर से दांव खेला है। बीजेपी का यह दांव भी उसके लिए उल्टा पड़ता दिख रहा है। सुरेश कश्यप के प्रति लोगों में नाराजगी दिख रही है। उनकी लोगों से दूरी एक मुद्दा बन गई है। प्राकृतिक आपदा के वक्त लोगों की गुहार के बाद भी वह उनके बीच नहीं पहुंचे थे। सिर्फ मोदी के नाम का उन्हें सहारा है, जो इस बार चमक खोता दिख रहा है। लोगों का कहना है कि पिछले चुनावों की तुलना में मोदी मैजिक इस बार कम है।
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इस सीट में पड़ने वाले 17 विधानसभा में से 13 में अभी कांग्रेस विधायक हैं, जबकि 3 पर बीजेपी और 1 निर्दलीय विधायक है। सोलन जिले की 5 विधानसभा सीटों पर बीजेपी का एक भी विधायक नहीं है। इसी तरह सिरमौर जिले की 5 सीटों में से 2 सीटों पर बीजेपी के विधायक हैं। शिमला जिले की 7 में से 6 सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं। शिमला जिले में बीजेपी के पास अकेली चौपाल सीट है, जबकि शिमला जिले की रामपुर सीट मंडी संसदीय हलके का हिस्सा है। शिमला लोकसभा सीट परंपरागत तौर पर कांग्रेस का गढ़ रही है। मगर 2009, 2014 और 2019 के तीन चुनाव में लगातार कांग्रेस की हार हुई है। शिमला से आखिरी बार साल 2004 में कांग्रेस के धनीराम शांडिल चुनाव जीते थे। 2009 और 2014 में बीजेपी के वीरेंद्र कश्यप और 2019 में सुरेश कश्यप सांसद चुने गए थे। यहां से 1957 से अब तक 17 बार हुए चुनाव में 13 बार कांग्रेस, 3 बार बीजेपी और एक बार भारतीय लोक दल का सांसद चुना गया है।
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