देश में कोविड टीकाकरण अभियान के पहले चरण में न्यायाधीशों और वकीलों को शामिल किये जाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि उसे केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित प्राथमिकताओं को बदलने का कोई कारण नहीं दिख रहा है। हालांकि, पीठ ने केंद्र सरकार और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण को निर्देश दिया कि वह प्रैक्टिसिंग वकील अमरेंद्र सिंह द्वारा प्रस्तुत याचिका पर एक प्रतिनिधित्व (रिप्रेजेंटेशन) के रूप में विचार करे।
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दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.एन. पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने कहा कि सरकार की अपनी प्राथमिकताएं हैं और टीकाकरण की प्राथमिकता को बदलने का कोई कारण नहीं दिखता है। याचिका में मांग की गई थी कि सरकार का लक्ष्य पहले चरण में लगभग 30 करोड़ लोगों का टीकाकरण करना है, जिसमें तीन करोड़ हेल्थकेयर और फ्रंटलाइन वर्कर्स और 27 करोड़ 50 वर्ष से अधिक उम्र के गंभीर बीमारियों से जूझ रहे बुजुर्ग शामिल हैं। इस चरण में जजों और वकीलों को भी शामिल करना चाहिए।
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वकील अमरेंद्र सिंह द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि महामारी के प्रकोप के कारण कई अधिवक्ताओं को अभूतपूर्व समय का सामना करना पड़ रहा है। याचिकाकर्ता ने कहा कि सरकार न्यायाधीशों, अधिवक्ताओं और कानूनी बिरादरी के अन्य कर्मचारियों के जीवन, स्वास्थ्य और कल्याण की परवाह किए बिना अपने पहले टीकाकरण अभियान में पूरी कानूनी बिरादरी को शामिल करने में विफल रही है।
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इससे पहले 19 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) ने भी कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को न्यायाधीशों, न्यायिक कर्मचारियों और कानूनी बिरादरी के सदस्यों को फ्रंटलाइन वर्कर्स की श्रेणी में शामिल करने के लिए पत्र लिखा था और गुहार लगाई थी कि टीकाकरण कार्यक्रम के लाभों का विस्तार करते हुए उन्हें भी वैक्सीन दी जानी चाहिए।
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बता दें कि भारत में राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान का पहला चरण 16 जनवरी को शुरू हुआ था और देश भर में अब तक लगभग 45 लाख लोगों को वैक्सीन लगाई जा चुकी है। पहले चरण में लगभग 30 करोड़ लोगों का टीकाकरण करना है, जिसमें तीन करोड़ हेल्थकेयर और फ्रंटलाइन वर्कर्स और 27 करोड़ 50 वर्ष से अधिक उम्र के गंभीर बीमारियों से जूझ रहे बुजुर्ग शामिल हैं।
(आईएएनएस के इनपुट के साथ)
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