केंद्र सरकार या कहें कि बीजेपी ने दिल्ली के सराय काले खां चौक का नाम बिरसा मुंडा चौक रख दिया है। ऐसा बिरसा मुंडा की 15 नवंबर को 150वीं जयंती के मौके पर किया गया। बिरसा मुंडा आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी थे और झारखंड के साथ ही समूचे आदिवासी समाज में उन्हें भगवान का दर्जा दिया जाता है। बिरसा मुंडा ने महज 25 बरस की उम्र में अंग्रेजी शासन के खिलाफ बिद्रोह का बिगुल बजा दिया था जिसपर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था और युवावस्था में ही उनकी हिरासत में मौत हो गई थी।
बीते 4 साल से 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाने लगा है, क्योंकि इसी तारीख को बिरसा मुंडा का जन्मदिन माना जाता है। हाल ही में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सभी विश्वविद्यालयों को उनका जन्मदिन मनाने का निर्देश दिया था। शुक्रवार को हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में केंद्रीय शहरी विकास मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने ऐलान किया कि दक्षिणी दिल्ली के पूर्वी छोर पर बने बस अड्डे के चौराहे को सराय काले खां के बजाए बिरसा मुंडा चौक के नाम से जाना जाएगा।
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इस घोषणा के पीछे राजनीतिक मंशा साफ नजर आती है क्योंकि झारखंड में अभी दूसरे दौर का मतदान और महाराष्ट्र में सभी सीटों पर 20 नवंबर को मतदान होने वाला है। बिरसा मुंडा को झारखंड में नायक का दर्जा हासिल है। ऐसे में इस घोषणा को बीजेपी द्वारा बिरसा मुंडा की विरासत को राजनीतिक हथियार बनाने की कोशिश के तौर पर ही देखा जा रहा है।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेने ने सराय काले चौक बिरसा मुंडा के नाम पर रखे जाने का विरोध किया है। उनका कहना है कि ऐसा करके बीजेपी ने झारखंड के स्वतंत्रता सेनानी और नायक का अपमान किया है। हेमंत सोरेन ने एक्स पर सराय खाले खान चौक की फोटो शेयर कर लिखा है कि यह भगवान बिरसा मुंडा का अपमान है। उन्होंने लिखा है कि, “ये है वह बस स्टॉप - वह चौक जिसका नाम हमारे भगवान बिरसा मुंडा पर रखा गया है। यह अपमान नहीं है तो और क्या है ? क्या राजधानी दिल्ली में हम आदिवासियों के आराध्य के सम्मान के लिए, उनके प्रतिष्ठा एवं हमारी आस्था के अनुरूप क्या कोई और उपयुक्त स्थान नहीं था ? - क्या सेंट्रल विस्टा का नाम हमारे भगवान पर नहीं रखा जा सकता था ? यह झारखंडियों समेत देश के सभी आदिवासियों/मूलवासियों का अपमान है। हम केंद्र सरकार से माँग करते हैं की इस कदम को तुरंत वापस ले - और हमारे भगवान हमारे नायक को उनके प्रतिष्ठा, हमारे आस्था के अनुकूल स्थान दें।”
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इसके अलावा ट्राइबल आर्मी के संस्थापर हंसराज मीणा ने भी केंद्र सरकार के इस कदम पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा है कि इस तरह बीजेपी ने प्रतीकात्मक और राजनीतिक रूप से लोगों का ध्यान असली मुद्दों से हटाने की कोशिश की है। हंसराज मीणा ने मांग की है कि अगर ऐसा ही है तो केंद्र सरकार को बिरसा मुंडा की बड़ी प्रतिमा किसी प्रमुख स्थान पर स्थापित करनी चाहिए।
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बीजेपी के इस कदम का झारखंड के आदिवासियों ने भी खुला विरोध किया है। उनका आरोप है कि बीजेपी उन मुद्दों से लोगों का ध्यान भटका रही है जिसमें आदिवासियों की जमीन, जंगल और खानों को अपने पसंदीदा पूंजीपतियों को सौंप रही है। उनका आरोप है कि बीजेपी सरकार एक खास तरीके से सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों को खत्म कर रही है जिनसे आदिवासोयं को रोजगार मिलता था। उधर झारखंड महासभा ने दावा किया है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित 40 फीसदी शैक्षिक और 50 फीसदी गैर आरक्षित पद खाली पड़े हैं।
इस बीच इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में केंद्र सरकार के अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि सराय काले खां आईएसबीटी (इंटर स्टेट बस टर्मिनस) को 14वीं सदी के सूफी संत काले खां के नाम से ही जाना जाता रहेगा। इसका तो सीधा अर्थ है कि सड़क किनारे बने सिर्फ एक बस स्टॉप को बिरसा मुंडा बस स्टैंड के नाम से जाना जाएगा? लोगों को इसी बात पर आपत्ति है।
इस बात पर भी कोई स्पष्टता नहीं है कि चौराहे या बस स्टॉप का नाम बदलने का फैसला किसने किया; क्या सरकार को ऐसा कोई प्रस्ताव मिला था, और अगर हां तो किसने दिया था। यह भी साफ नहीं है इस बारे में किस तरह के विचार-विमर्श हुए जिसके आधार पर नाम बदलने का फैसला लिया गया।
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इंडियन एक्सप्रेस ने दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के सूत्रों के हवाले से कहा है कि आप ने सवाल उठाया है कि क्या चौराहे का जल्दबाजी में नाम बदलने से पहले उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था। सूत्रो के मुताबिक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कोई 'नामकरण प्राधिकरण' नहीं है, क्योंकि इसका गठन नहीं किया गया था। AAP सूत्रों ने दावा किया कि यह प्राधिकरण सड़कों, गलियों, पार्कों और संस्थानों के मौजूदा नामों में बदलाव को मंजूरी देने के लिए तो अधिकृत है, लेकिन चौराहों या बस अड्डों के नामों के लिए नहीं।
दिल्ली नामकरण प्राधिकरण की वेबसाइट पर एक दिशा-निर्देश है, जिसमें कहा गया है कि जहां तक संभव हो, मौजूदा नामों को नहीं बदला जाना चाहिए। इसमें यह भी कहा गया है कि सड़कों और पार्कों का नाम व्यक्तियों के नाम पर रखते समय, सिद्धांत यह होना चाहिए कि दिल्ली में व्यक्तियों का योगदान हो और जहां तक संभव हो, वे दिल्ली के निवासी रहे हों। एनडीएमसी क्षेत्र (नई दिल्ली नगर निगम) लुटियन जोन में है, जिसका प्रशासन सीधे केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) की सरकार का अधिकार क्षेत्र वहां तक नहीं पहुंचता है। हालांकि, सराय काले खां दिल्ली सरकार के पीडब्ल्यूडी के अंतर्गत आता है।
दिशा-निर्देशों में यह भी कहा गया है कि नाम बदलने का प्रस्ताव सोसायटी अधिनियम के तहत पंजीकृत निकाय या समूह से आना चाहिए। महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें राजनीतिक दलों का उल्लेख नहीं किया गया है।
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