असम में एनआरसी की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पूरी कराई गई। लेकिन चूंकि इस दौरान पांच लाख से ज्यादा हिंदुओं के भी सूची से बाहर रह जाने का अनुमान है, इसलिए यह मसला बीजेपी के लिए गले की हड्डी बन गया है। अब बीजेपी सरकार खीझ में इस प्रक्रिया के राज्य समन्वयक रहे प्रतीक हजेला के खिलाफ ही एफआईआर दर्ज करवा रही है। नवंबर में उनका ट्रांसफर मध्यप्रदेश किया जा चुका है।
पांच वर्षों तक प्रतीक हजेला ने असम के ऐतिहासिक राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को अपडेट करने की प्रक्रिया का नेतृत्व किया। यह एक विवादित प्रक्रिया थी। 3.29 करोड़ लोगों ने आवेदन किया और 6.6 करोड़ दस्तावेज जमा किए गए। इस प्रक्रिया को 50,000 से अधिक कर्मचारियों ने अंजाम तक पहुंचाया। लेकिन 31 अगस्त, 2019 को यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद से ही असम-मेघालय कैडर के 1995 बैच के आईएएस अधिकारी प्रतीक हजेला असम सरकार सहित एनआरसी से नाखुश तबके के निशाने पर हैं।
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अंतिम सूची के प्रकाशन के बाद से, जिसमें 19 लाख लोगों को शामिल नहीं किया गया, हजेला के खिलाफ एनआरसी डेटा के साथ छेड़छाड़ करने और धन का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए पांच एफआईआर दर्ज की गई है। एनआरसी अपडेट करने की प्रक्रिया के खिलाफ मोर्चा संभालने वाले मुख्य याचिकाकर्ता असम पब्लिक वर्क्स (एपीडब्ल्यू) ने तीन एफआईआर दर्ज की है। इस संगठन ने हजेला के खिलाफ कुल 22 प्राथमिकी दर्ज करने का इरादा जताया है।
पिछले साल नवंबर में मध्यप्रदेश में स्थानांतरित होने वाले 50 वर्षीय हजेला को एनआरसी के राज्य समन्वयक के रूप में उनकी जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया गया था। लेकिन असम में एनआरसी कार्यालय के करीबी सूत्रों का कहना है कि प्रतीक हजेला के साथ जो कुछ भी हो रहा है वह 'बदले की भावना' से ज्यादा कुछ भी नहीं है।
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7 फरवरी को एनआरसी की अंतिम सूची के डेटा के साथ छेड़छाड़ के आरोप में एपीडब्ल्यू की तरफ से दर्ज कराई गई एक प्राथमिकी के आधार पर असम सीआईडी द्वारा हजेला के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। उसके बाद 12 फरवरी को हजेला का नाम फिर से सुर्खियों में आया। इस बार आधिकारिक एनआरसी वेबसाइट से डेटा के गायब होने के संबंध में उनका नाम उछला था।
वर्तमान एनआरसी समन्वयक हितेश देव शर्मा का कहना है, 'हजेला विप्रो के साथ अनुबंध को नवीनीकृत करने में विफल रहे। इसी वजह से डेटा गायबहो गया।' इस मामले में हितेश देव शर्मा के कार्यालय ने एक पूर्व कर्मचारी के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज कराई है। साल 2014 से 2019 तक प्रतीक हजेला के साथ काम करने के लिए जानी जाने वाली एक 32 वर्षीय महिला पर आरोप है कि उसने दो आधिकारिक ईमेल आईडी का पासवर्ड साझा नहीं किया। पिछले सितंबर में हजेला के खिलाफ एपीडब्ल्यू, गोरिया मोरिया युवा छात्र परिषद और डिब्रूगढ़ में एक व्यक्ति ने प्राथमिकी दर्ज करवाई थी।
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दरअसल जो सोचा, वैसी सूची तैयार नहीं होने के कारण बीजेपी सरकार हजेला से किस तरह खफा है, इसका अंदाजा उसके बयान से भी लगता है। तब सरकार ने बयान जारी कर कहा था कि प्रतीक हजेला 'कुछ खास ताकतों' के इशारे पर काम कर रहे थे और उन्हें जो निर्देश मिले थे, उसके मुताबिक उन्हें ऐसी एनआरसी तैयार करनी थी जिसमें अवैध विदेशी लोगों के नाम भी शामिल हों।
पिछले नवंबर में एपीडब्ल्यू ने सीबीआई के साथ एक और प्राथमिकी दर्ज की, जिसमें हजेला पर एनआरसी के लिए केंद्र द्वारा आवंटित धन के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया। एपीडब्ल्यू के अध्यक्ष अभिजीत शर्मा का कहना है, 'अगले 19 एफआईआर को चरणबद्ध तरीके से दर्ज कराने की तैयारी है और आने वाले महीनों में इन्हें दर्ज कराया जाएगा।'
2015 में आईआईटी से इलेक्ट्रॉनिक्स में बीटेक करने वाले प्रतीक हजेला और उनकी टीम ने एनआरसी प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप पेश किया: रिकॉर्ड्स को डिजिटल करने का एक तंत्र विकसित किया गया, ताकि आवेदक इलेक्ट्रॉनिक डेटाबेस परअपनी विरासत का पता लगा सकें और पूर्वजों के मिलते-जुलते नामों या उपनामों के कारण होने वाली परिशानियों से बचने के लिए एक अनूठा कोड उत्पन्न कर सकें।
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सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी का काम पूरा करने के लिए कई बार समयसीमा बढ़ाई थी। इसी क्रम में धीरे-धीरे हजेला की टीम भी बढ़ती गई। हजेला न केवल शीर्ष अदालत के लिए जवाबदेह बन गए, बल्कि उनकी जवाबदेही जनता के प्रति भी बढ़ती चली गई। हजेला के प्रति आम लोगों में कैसी धारणा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अक्टूबर 2018 में बंगाली-बहुल जिले कछार में एक दुर्गापूजा पंडाल में हजेला को राक्षस के तौर पर दिखाया गया था, जिसमें देवी उनका 'वध' करती दिखाई गईं।
इसके एक साल बाद ही हजेला सरकार के निशाने पर आ गए। जुलाई, 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने सत्तारूढ़ बीजेपी द्वारा सीमावर्ती जिलों में एनआरसी नामों के पुन: सत्यापन के लिए दायर एक याचिका को हजेला के कहने पर खारिज कर दिया था। हजेला का तर्क था कि उन जिलों में 27 प्रतिशत सत्यापन पहले ही हो चुका है। इस बात से सरकार इस हद तक क्षुब्ध हुई कि वह न्यायालय के खिलाफ गई और प्रक्रिया की सटीकता पर सवाल उठाने के लिए मसौदा एनआरसी के जिलेवार बहिष्करण डेटा को जारी किया। इस अभ्यास को 'त्रुटिपूर्ण' बताते हुए बीजेपी सरकार ने दावा किया कि बांग्लादेश से लगते सीमावर्ती जिलों में घुसपैठियों की संख्या कहीं अधिक है जबकि स्वदेशी आबादी वाले जिलों में उनकी संख्या कम है।
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अगस्त 2019 में होजाई से बीजेपी विधायक शिलादित्य देव ने विधानसभा में हजेला का मजाक उड़ाते हुए कहा था, “पूरी प्रक्रिया एक व्यक्ति के हाथों में रह गई है जो एनआरसी का राज्य समन्वयक है। उस पर किसी की बात का असर नहीं हो सकता। गृह मंत्रालय, मुख्यमंत्री की बात भी नहीं सुनी जाएगी।”
जाहिर है, हजेला को दोतरफा विरोध का सामना करना पड़ रहा है। एक ओर तो असम के लोगों को लगता है कि इसी व्यक्ति के कारण उनके लिए संकट खड़ा हो गया जबकि केंद्र और राज्य की बीजेपी सरकारों को लगता है कि एनआरसी की प्रक्रिया का परिणाम वैसा नहीं रहा जैसा उसने सोच रखा था। यानी एनआरसी से बांग्लादेशी मुसलमानों की आबादी बच गई और जो लोग इससे बाहर रह गए, उनमें ज्यादातर हिंदू ही हैं।
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