यूपी के मेरठ जिला स्थित हाशिमपुरा में 1987 में हुए नरसंहार मामले में बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने इस मामले में बुधवार को निचली अदालत के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें 16 पीएसी (प्रोविंशियल आर्म्ड कॉन्स्टेबुलरी) कर्मियों को बरी कर दिया गया था। हाई कोर्ट ने इन सभी को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। कोर्ट ने फैसले के दौरान कहा कि पीड़ितों को न्याय मिलने में 31 का समय लगा और मुआवजा भी पर्याप्त नहीं मिला।
Published: 31 Oct 2018, 12:05 PM IST
उत्तरप्रदेश राज्य, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और नरसंहार में बचे जुल्फिकार नासिर सहित कुछ निजी पक्षों की अपीलों पर हाई कोर्ट ने 6 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। बता दें कि इस मामले में निचली अदालत ने 16 पुलिसकर्मियों को बरी कर दिया था। इनके खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) और अन्य पक्षकारों ने चुनौती याचिका दायर की थी।
Published: 31 Oct 2018, 12:05 PM IST
बता दें कि मेरठ जिला स्थित हाशिमपुरा में 22 मई 1987 को काफी संख्या में पीएसी के जवान पहुंचे थे। इन जवानों ने वहां मस्जिद के सामने चल रही धार्मिक सभा से मुस्लिम समुदाय के करीब 50 लोगों को हिरासत में लिया था। आरोप है कि पीएसी जवानों ने इनमें से 42 लोगों की गोली मारकर हत्या के बाद उनके शव नहर में फेंक दिए थे। उत्तर प्रदेश पुलिस ने साल 1996 में गाजियाबाद, मुख्य न्यायिक न्यायाधीश की अदालत में आरोपपत्र दायर किया था। आरोपपत्र में 19 लोगों को हत्या, हत्या का प्रयास, साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ और साजिश रचने की धाराओं में आरोपी बनाया गया था। 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया था। इस मामले में आरोपी बनाए गए 16 लोग जीवित हैं। जबकि तीन लोगों की मौत हो चुकी है। 21 मार्च 2015 को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने हत्यारोपी पीएसी के सभी 16 जवानों को संदेह के आधार पर बरी कर दिया था।
Published: 31 Oct 2018, 12:05 PM IST
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Published: 31 Oct 2018, 12:05 PM IST