राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के एक बयान पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। मोहन भागवत ने गुरुवार को झारखंड के बिश्नुपुर में हुए एक कार्यक्रम में कहा कि, ‘कुछ लोग सुपरमैन बनना चाहते हैं, देवता...भगवान बनना चाहते हैं।’ मोहन भागवत के बयान को प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना माना जा रहा है।
भागवत ने कहा कि, “क्या प्रगति का कभी कोई अंत होता है... जब हम अपने लक्ष्य तक पहुंचते हैं, तो हम देखते हैं कि अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है... एक आदमी सुपरमैन बनना चाहता है, फिर एक देव और फिर भगवान...लेकिन भगवान कहता है कि वह तो विश्वरूप है। कोई नहीं जानता कि इससे आगे भी कुछ है कि नहीं है। आंतरिक और बाह्य दोनों ही प्रकार के विकासों का कोई अंत नहीं है। यह एक सतत प्रक्रिया है। बहुत कुछ किया जा चुका है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ बाकी है।”
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मोहन भागवत के बयान को सीधे तौर पर पीएम मोदी पर परोक्ष हमला माना जा रहा है। भागवत के बयान के ऐसे मायने इसलिए भी निकाले जा रहे हैं क्योंकि बीजेपी में इस समय कई स्तर पर अंतर्कलह की खबरें आ रही हैं, जिनमें राजनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश प्रमुख है।
भागवत के बयान पर कांग्रेस कम्यूनिकेशन विभाग के प्रमुख जयराम रमेश ने भी कटाक्ष किया है। उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा कि, “मुझे यक़ीन है कि स्वयंभू नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री को इस ताज़ा अग्नि मिसाइल की ख़बर मिल गई होगी, जिसे नागपुर ने झारखंड से लोक कल्याण मार्ग को निशाना बनाकर दागा है।”
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यहां बता दें कि लोकसभा चुनावों के प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने न्यूज चैनल न्यूज 18 के साथ इंटरव्यू में कहा था, ‘जब तक मेरी मां (जीवित) थी तब तक मुझे लगता था कि मैं बायोलॉजिकली पैदा हुआ हूं। लेकिन उनके जाने (मृत्यु) के बाद मैं कन्विंस हो गया हूं कि भगवान ने मुझे भेजा है। यह ऊर्जा एक बायोलॉजिकल बॉडी से नहीं आ सकती है बल्कि इसे भगवान ने दिया है...मैं जब भी कुछ करता हूं तो मुझे लगता है कि भगवान मुझे ऐसा करने के लिए कह रहे हैं।’
लेकिन लोकसभा चुनावों में बीजेपी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिला था और उसकी सीटों की संख्या पिछली लोकसभा के 303 से घटकर इस बार 240 रह गई। चुनाव नतीजे आने के बाद मोहन भागवत का बयान सामने आया था जिसमें उन्होंने कहा था कि, ‘एक सच्चा सेवक अहंकारी नहीं हो सकता।’ तुलसीकृत रामचरित मानस से एक दोहे को उन्होंने वर्णित किया था, ‘सब नर करहिं, परस्पर प्रीति...’ उन्होंने कहा था कि, ‘जो कर्म करता है, पर कर्म में लिप्त नहीं होता, उसमें अहंकार नहीं होता, वही सेवक कहलाने का अधिकारी होता है।’
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मोहन भागवत ने यह भी कहा था कि बीजेपीके प्रचार में मर्यादा और संयम दोनों की कमी थी। उहोंने जोर देकर कहा था कि विपक्षी दलों को विरोधी (या शत्रु) नहीं बल्कि प्रतिद्वंदी या प्रतिपक्ष समझना चाहिए। हालांकि बाद में संघ ने सफाई दी थी कि मोहन भागवत के बयान के निशाने पर नरेंद्र मोदी या बीजेपी नहीं थे। लेकिन संघ के मुखपत्र के तौर पर जानी जाने वाली पत्रिका ऑर्गेनाइजर में प्रकाशित लेखों से स्पष्ट हो गया था कि भागवत का इशारा किसकी ओर था।
संघ विचार रतन शारदा ने लोकसभा चुनाव नतीजे आने के बाद लिखे लेख में कहा था कि आरएसएस कोई बीजेपी की फील्ड फोर्स नहीं है, पार्टी नेता और कार्यकर्ता स्वंयसेवकों तक आए ही नहीं और न ही चुनावी कार्य में उनका सहयोग मांगा।
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यहां यह प्रसंग भी रोचक है कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि बीजेपी उस स्थिति में पहुंच चुकी है कि उसे आरएसएस की जरूरत नहीं हैं। रतन शारदा ने अपने लेख में कहा था कि बीजेपी कार्यकर्ता सेल्फी लेने और सोशल मीडिया पोस्ट करने में लगे रहे जबकि लक्ष्य हासिल करने के लिए कड़ा परिश्रम करना पड़ता है। उन्होंने लिखा था कि, ‘वे तो अपने ही बुलबुले खुश थे, मोदी जी के प्रभामंडल में आनंदित हो रहे थे, उन्हें सड़कों पर लोगों की आवाज नहीं सुनाई दे रही थी।’ उन्होंने आगे कहा था कि मोदी जी ही सभी सीटों पर लड़ रहे हैं इसका सीमित असर ही हुआ।
इसके अलावा हाल में आरएसएस से जुड़ी मराठी भाषा की पत्रिका विवेक में भी कहा गया कि आरएसएस और बीजेपी नेताओं के बीच संवाद की कमी है। पत्रिका ने महाराष्ट्र में बीजेपी के चुनावी प्रदर्शन के लिए अजित पवार की एनसीपी के साथ गठबंधन को दोषी ठहराया है।
वैसे यह पहला मौका नहीं है जब आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों ने पीएम मोदी या बीजेपी की आलोचना की है। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद से तो लगातार यह खबरें आ रही हैं कि संघ और बीजेपी के बीच सबकुछ ठीक नहीं है।
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