हरियाणा में पंचायतों में लागू राइट-टू-रिकॉल और 2 लाख से अधिक के कार्य ई-टेंडरिंग से करवाने का सरकार का फरमान भी खट्टर सरकार के गले की फांस बन गया है। सरपंचों ने सरकार को एक बार फिर अल्टीामेटम दे दिया है और कहा कि 21 फरवरी तक सरपंचों की मांग नहीं मानी गई तो निर्णायक लड़ाई का ऐलान किया जाएगा। इस दौरान विधानसभा का बजट सत्र चल रहा होगा। 1 मार्च को सरपंच चंडीगढ़ में मुख्यिमंत्री के आवास का घेराव करेंगे। सरपंचों ने कहा कि इसके बाद भी सरकार नहीं मानी तो अगले चुनाव में वह नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहे।
चंडीगढ़ में आज सरपंचों ने सरकार को दो टूक अल्टीामेटम देते हुए कहा कि अब हमें पंचायती राज एक्टच के तहत मिले संपूर्ण 29 अधिकार चाहिए। देश की संसद और विधानसभाओं की तरह ही ग्राम पंचायत को भी संविधान ने अधिकार दिए हैं। बीजेपी सरकार देश की इस सबसे छोटी सरकार को कमजोर करने की साजिश कर रही है, जिसे किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
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सरपंचों ने चंडीगढ़ में कहा कि राइट-टू-रिकॉल लागू ही करना है तो सबसे पहले सांसदों और विधायकों पर लागू करो। सरपंचों ने कहा कि सरकार पारदर्शिता के नाम पर ई-टेंडरिंग लागू करने की बात कर रही है। वह सरपंचों को चोर समझ रही है, जबकि चोर सरपंच नहीं सरकार के अधिकारी हैं। चुनाव न होने के चलते दो साल अधिकरियों के हवाले रही हरियाणा की पंचायतों में हुए कार्यों की सरकार जांच करा ले। इससे साबित हो जाएगा कि चोर सरपंच हैं या अधिकारी। सरपंचों ने सरकार को खुली चुनौती देते हुए पंचायत मंत्री देबेंद्र सिंह बबली के भाई का भी नाम लेकर उन पर भ्रष्टातचार के आरोप लगाए।
एक सवाल पर सरपंचों ने कहा कि सरकार के इस तरह का फरमान लागू करने के पीछे ग्राम पंचायतों पर एक तरह से कब्जां करना है। सरपंच एसोसिएशन के प्रधान रणबीर समैन ने कहा कि संविधान की 11वीं सूची में ग्राम पंचायतों को प्रदत्त सभी 29 अधिकार दिए जाने चाहिए। ग्राम सभा के अधिकारों को समाप्त करने पर पंचायतों का महत्व ही खत्म हो जाएगा, इसलिए ठेकेदारी प्रथा फिर से लागू नहीं होनी चाहिए। सरपंच एसोसिएशन ने अपनी मांगों के समर्थन में हरियाणा में 20 फरवरी को जगह-जगह जुलूस निकालने की भी घोषणा की है। साथ ही कहा कि 21 फरवरी तक मांगें नहीं मानी गईं और विधानसभा में इन मुद्दों पर चर्चा नहीं की गई तो कड़े निर्णय लिए जाएंगे और 1 मार्च को मुख्यमंत्री के आवास का घेराव किया जाएगा।
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रणबीर समैन ने कहा कि मनरेगा की ऑनलाइन हाजिरी लगाने का नियम भी परेशानी खड़ी कर रहा है, क्योंकि अनेक स्थानों पर नेटवर्क नहीं आता है। इस तरह की हाजिरी में परेशानी होती है। उन्होंथने कहा कि प्रदेश के 90 विधायक ग्रामीण वोटों से ही चुनकर जाते हैं, लेकिन जब ग्रामीणों को उनकी जरूरत होती है तब वे नदारद रहते हैं। एसोसिएशन ने चेतावनी दी कि जो विधायक अपने चुनाव क्षेत्र की अनदेखी कर रहे हैं उन्हें गांवों में घुसने नहीं दिया जाएगा और ऐसे विधायकों का पूर्ण बहिष्कार किया जाएगा। यदि एसोसिएशन की बातें न मानी गईं तो आगामी चुनावों का भी विरोध किया जाएगा।
बैठक में एक सुर से कहा गया कि सरकार को सरपंचों के अधिकार वापस देने चाहिए। सवाल बेहद गंभीर है। पहले ही पंचायतों में 2 साल चुनाव न होने की वजह से उनका कोई प्रतिनिधित्व नहीं रहा। सब कुछ अधिकारियों के हवाले रहा। 2 साल बाद पंचायतों के चुनाव हुए भी 3 महीने गुजर चुके हैं, लेकिन एक पैसे का काम नहीं हुआ है। सरपंचों ने ऐलान कर रखा है कि जब तक सरकार अपना फरमान वापस नहीं लेती है तब तक गांवों में कोई विकास कार्य नहीं होने दिया जाएगा।
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इससे स्थितियां इतनी खराब हो गई हैं कि हरियाणा की आधे से ज्या दा आबादी के मूलभूत कार्य भी नहीं हो पा रहे हैं। मुख्यीमंत्री से लेकर मंत्री तक हरियाणा में जहां भी जा रहे हैं सरपंच उनका विरोध कर रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि 29 जनवरी को सोनीपत के गोहाना में होने वाली अमित शाह की रैली भी सरपंचों के आंदोलन के चलते ही बाधित हुई थी, जिसके चलते केंद्रीय गृह मंत्री का दौरा ही रद्द हो गया था।
सरकार के फैसले के खिलाफ विरोध की यह आग तकरीबन पूरे हरियाणा में फैल गई है। पंचायत मंत्री देबेंद्र सिंह बबली के बयानों ने इस आग में घी का काम किया है। पंचायत मंत्री बबली ने 2 जनवरी को अपने ही विधानसभा क्षेत्र फतेहाबाद जिले के टोहाना में गांव नाढोड़ी में आयोजित एक कार्यक्रम में सरपंच के न पहुंचने पर तैश में आकर उसे राईट-टू-रिकॉल के जरिये बदल दिए जाने की धमकी दे दी थी। मंत्री की धमकी ही सरकार के गले की फांस बन गई। सरपंच इससे और भड़क गए। सरपंचों ने कहा कि ई-टेंडरिंग से मंत्री बबली अपने लोगों को फायदा पहुंचाना चाहते हैं। ठेकेदार कार्यों में गड़बड़ी करके चले जाएंगे और बदनाम सरपंच होंगे।
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15 जनवरी को फतेहाबाद के टोहाना में पंचायतों में ई-टेंडरिंग व राईट-टू-रिकॉल को लेकर हुई बैठक में प्रदेश भर से हजारों पंच-सरपंच पहुंचे। बैठक में सरपंचों ने सरकार के खिलाफ आरपार की लड़ाई का ऐलान कर दिया। सरपंचों ने फैसला किया कि 16 जनवरी से सभी बीडीपीओ कार्यालयों की तालाबंदी करने के साथ ही सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे। सत्ताधारी दल के नेताओं को अपने गांव में नहीं घुसने देंगे। उनके आंदोलन में किसी दल के नेता को मंच पर स्थान नहीं दिया जाएगा।
पंचायत मंत्री कहते हैं कि विरोध करने वाले सरपंच इक्का-दुक्का और चले हुए कारतूस हैं। इस पर सरपंचों ने कहा कि पंचायत मंत्री देख लें कि सरपंच चले हुए कारतूस नहीं, बल्कि तोप हैं। यह बयान भी पंचायत मंत्री ने ई-टेंडरिंग का विरोध करने वाले संरपंचों के लिए दिया था। खाप पंचायतें भी सरपंचों के आंदोलन में साथ खड़ी हो गई हैं। सर्व खाप के राष्ट्रीय प्रवक्ता सूबे सिंह समैण ने कहा कि विकास का सारा पैसा पंचायतों के खाते में जाना चाहिए। मौजूदा सरकार टकराव की स्थिति बनाने की जगह पंचायतों को उनके अधिकार दे। 16 जनवरी को सरपंचों ने राज्यन के 43 बीडीपीओ दफ्तरों में प्रदर्शन के साथ ही ताले जड़ दिए। अगले दिन 17 जनवरी को राज्य3 के 60 बीडीपीओ दफ्तरों में ताले जड़ दिए गए। सरपंचों का आंदोलन राज्यो के 22 जिलों में से 18 जिलों तक फैल गया है।
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हरियाणा की ग्राम पंचायतों का विरोध अब सिर्फ ई-टेंडरिंग के विरोध तक सीमित नहीं रह गया है। सरपंच अब पंचायती राज एक्ट के तहत मिले संपूर्ण अधिकार देने की मांग कर रहे हैं। पढ़े-लिखे सरपंच अब सरकार के किसी झांसे में आने के लिए तैयार नहीं हैं।
24 अप्रैल 1993 को संविधान (73वें संशोधन) अधिनियम 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ था। इसमें राज्ये सरकार की जिम्मेीदारी तय की गई थी कि पंचायतों को स्वशासन की संस्था के रूप में काम करने के लिए वह संविधान की 11वीं अनुसूची में सूचीबद्ध 29 विषयों के संबंध में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की योजनाएं तैयार करेगी। कर, ड्यूटीज, टॉल, शुल्क आदि लगाने और उसे वसूल करने का पंचायतों को अधिकार होगा। राज्यों द्वारा एकत्र कर, ड्यूटी, टोल और शुल्कों का पंचायतों को हस्तांतरण करना होगा। इस तरह 73वें संविधान संशोधन में जमीनी स्तर पर जन संसद के रूप में ऐसी सशक्त ग्राम सभा की परिकल्पना की गई है, जिसके प्रति ग्राम पंचायत जवाबदेह हो। हरियाणा के सरपंचों को यही लगता है कि सरकार ई-टेंडरिंग और राईट-टू-रिकॉल के जरिये ग्राम पंचायतों की इस परिकल्पोना को खत्मट करने पर आमादा है।
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हरियाणा विधान सभा ने वर्ष 2020 में विधानसभा में ग्राम पंचायतों के लिए एक 'राइट टू रिकॉल' बिल पास किया था। इसके तहत अब गांवों में काम ना करने वाले सरपंच को कार्यकाल पूरा होने से पहले ही हटाने का अधिकार ग्रामीणों को दे दिया गया। इस बिल में किए गए प्रावधान के मुताबिक सरपंच को हटाने के लिए गांव के 33 प्रतिशत मतदाता अविश्वास प्रस्तांव लिखित में संबंधित अधिकारी को देंगे। यह प्रस्ताव खंड विकास और पंचायत अधिकारी तथा सीईओ के पास जाएगा। इसके बाद ग्राम सभा की बैठक बुलाकर दो घंटे के लिए इस पर चर्चा करवाई जाएगी। चर्चा के बाद तुरंत बाद गुप्त मतदान करवाया जाएगा, जिसमें यदि 67 प्रतिशत ग्रामीणों ने सरपंच के खिलाफ मतदान किया होगा तो सरपंच पदमुक्त हो जाएगा। सरपंच के खिलाफ अविश्वातस प्रस्तााव उसे चुने जाने के एक साल बाद ही लाया जा सकेगा। पूर्व मुख्यामंत्री और विधानसभा में नेता विपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि राईट-टू-रिकॉल यदि लागू करना है तो पहले विधायकों और सांसदों के लिए लागू करो।
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