हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने किसानों को एक तरह से घुड़की भरे अंदाज में कहा है कि वह सीमाएं लांघ चुके हैं। उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि हम सिर्फ इसलिए संयम बरत रहे हैं कि किसान शब्द पवित्र है, लेकिन इन्होंने पवित्रता तोड़ी है। संयम भी एक सीमा तक ही अच्छा लगता है। यह मुट्ठी भर लोग हैं। मुख्यमंत्री ने कई बार आंदोलनकारियों को अपनी हद याद दिलाई। अंत में यह भी कह दिया कि दिल्ली जाने वाला रास्ता भी जल्द खुलेगा। अब मुख्यमंत्री के इस कथन के अर्थ निकाले जा रहे हैं कि आखिर सरकार की मंशा क्या है।
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मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर बुधवार को चंडीगढ़ स्थित हरियाणा निवास में जब मीडिया के सामने आए तो मानो वह किसान आंदोलन पर बोलने के लिए बहुत कुछ तय करके आए थे। ऐसा लग रहा था मानो वह सब कुछ कह देना चाह रहे हैं, जिसकी टीस सरकार को काफी समय से है। सीएम ने कहा कि तीनों कृषि कानूनों में कमियां बताए बिना जिद करके बैठे हैं। किसान शब्द बेहद पवित्र है। लेकिन इस आंदोलन का दुखद पहलू यह है कि इस दौरान हो रही कई घटनाएं आंदोलन को बदनाम कर रही हैं।
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मुख्यमंत्री ने कहा कि अलोकतांत्रिक तरीके से काम करने की मैं निंदा करता हूं। आंदोलनकारी जिस तरह की भाषा इस्तेमाल करते हैं और नोटिस निकालते हैं वह अलोकतांत्रिक है। हम संयम बरते हुए हैं, लेकिन एक सीमा तक यह अच्छा लगता है। संयम भी इसलिए बरत रहे हैं कि किसान शब्द पवित्र है, लेकिन आंदोलनकारियों ने यह पवित्रता तोड़ी है। मीडिया के इस सवाल पर कि संयम की सीमा कहां तक है। सीएम ने स्पष्ट जवाब तो नहीं दिया, लेकिन संकेतों में वह बहुत कुछ कहते नजर आए।
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किसानों के बंद किए गए टोल कब चालू करा रहे हैं, सवाल पर उनका जवाब भी काफी कुछ कह रहा था। तल्ख अंदाज में सीएम ने कहा कि हमने अपने तीनों टोल चालू करवा दिए हैं। शेष टोल केंद्र सरकार के तहत हैं। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से हमने बात की है, जिसमें उनका कहना है कि वह भी जल्द चालू हो जाएंगे। सीएम ने कहा कि आंदोलनकारी किसान नहीं हैं। इनका मकसद हमें सिर्फ बदनाम करना है। यह मुट्ठी भर लोग हैं। इस सवाल पर कि जब आंदोलनकारी किसान नहीं हैं तो इन्हें सरकार ने क्यों इजाजत दे रखी है। सीएम ने कहा कि शांतिपूर्ण आंदोलन की शर्त पर इन्हें अनुमति दी गई है। जींद में इन्होंने लिख कर दिया है कि हम कानून हाथ में नहीं लेंगे।
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अंत में मुख्यमंत्री ने यह भी कह दिया कि दिल्ली जाने वाले रास्ते भी जल्द खुल जाएंगे। अब इस बयान के अर्थ निकाले जा रहे हैं। जाते-जाते सीएम ने दो सरकार समर्थित किसानों के ऐसे कार्यक्रम भी बता दिए, जिनके फाइनल होते ही वह उनमें भागीदारी करने वाले हैं। इसका मतलब यह है कि सरकार टकराव की तरफ बढ़ रही है। किसान आंदोलन को लेकर आज पूरे समय मुख्यमंत्री के अंदाज-ए-बयां के भी मायने तलाशे जा रहे हैं। जाहिर है कि किसान आंदोलन सरकार की एक ऐसी कमजोर नस बन गया है, जिसके चलते सात महीने से वह जमीन पर कोई कार्यक्रम तक नहीं कर पा रही है।
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